दौर चाहे पुरुष प्रधान हो या फिर महिला सशक्तिकरण का, बिना स्त्री-पुरुष के साथ के हम समाज की कल्पना नहीं कर सकते. इसीलिए तो कहा जाता है कि स्त्री और पुरुष एक गाड़ी के दो पहिये हैं. ऐसे में आम तौर पर तो एक पहिये से गाड़ी चलाने की कल्पना नहीं की जा सकती लेकिन दुनिया के एक कोने में ऐसा एक अनोखे गांव भी है जहां ये बात सिर्फ कल्पना ही नहीं बल्कि हकीकत बन जाती है. जी हां, इस गांव में केवल और केवल महिलाओं का ही साम्राज्य है. तो चलिए जानते हैं इस अनोखे गांव के बारे में जहां केवल महिलाएं ही महिलाएं हैं:
सम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं महिलाएं
इस कहानी को आग बढ़ाने से पहले ये जान लेना जरूरी है कि इस गांव की महिलाएं किसी तरह के ज़िद के कारण ऐसे नहीं रह रही हैं बल्कि ये इनके सम्मान की लड़ाई है. ये कहानी है केन्या के एक ऐसे गांव की जहां सिर्फ महिलाएं ही रहती हैं. यहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है. कोई पुरुष इस गांव में ना घुस पाए इसके लिए गांव के चारों तरफ कंटीली तार लगाई गई है. अगर कोई पुरुष यहां जबरदस्ती घुसने की कोशिश करता है तो गांव की महिलाएं उन्हें अपने अंदाज में सजा देती हैं.
पुरुषों से दूरी बनाने की ये है असली वजह
आपके दिमाग में ये सवाल जरूर घूम रहा होगा कि आखिर इन महिलाओं ने अपने गांव के लिए ऐसा नियम क्यों बनाया है. इस सवाल का उचित जवाब ‘द गार्जियन’ की एक रिपोर्ट ने दिया है. रिपोर्ट के अनुसार इस गांव में रहने वाली अधिकतर महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हैं. इन सभी ने अपने जीवन में बहुत प्रताड़नाएं झेली हैं.
अधिकारों की बात करने पर प्रताड़ना मिली!
इन्हीं प्रताड़नाओं से तंग आकर इन महिलाओं ने अपना एक अलग ही गांव बसा लिया. इस गांव की स्थापना करने वाली रेबेका लोलोसोली को भी महिलाओं के लिए अलग गांव बनाने का विचार तभी आया जब वह खुद पुरुष प्रताड़ना का शिकार हुईं. रेबेका बताती हैं कि जब वह अपने गांव की महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बता रही थीं तब पुरुषों को उनकी ये बात जरा पसंद नहीं आई. पुरुषों ने ये सोचा कि रेबेका गांव की महिलाओं को भड़का रही हैं. इसके बाद उनके गांव के पुरुषों ने उन्हें बहुत मारा.
अपनी अलग ही दुनिया में रहती हैं ये महिलाएं
रेबेका कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहीं. जिस गांव से रेबेका थीं वहां महिलाओं के पास किसी तरह का अधिकार नहीं था. ना तो उन्हें अपनी बात रखने का हक था ना ही खुद से कुछ करने का. रेबेका को ये सब बदलना था. इसीलिए उन्होंने महिलाओं के लिए एक अलग गांव बसाने का फैसला किया.
सबसे पहले रेबेका ही अपना घर छोड़ कर यहां रहने आईं. उन्होंने यहां महिलाओं का एकछत्र राज स्थापित किया. उनको देख कर उनकी तरह प्रताड़ित अन्य महिलाएं भी अपने बच्चों के साथ यहां आ कर बसने लगीं. यहां औरतों को ये बताया जाता है कि उनके क्या अधिकार हैं. इसके साथ ही बच्चियों को लड़ना सखाया जाता है जिससे कि वे अपनी रक्षा खुद कर सकें.
ब्रिटिश सैनिकों ने भी नहीं बख्शा
इसी गांव की जेनी नामक महिला बताती हैं कि वो सन 1990 था जब सबसे पहले 15 महिलाएं इस गांव में रहने आईं. ब्रिटिश सैनिकों ने इन सभी महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया था. जेनी खुद उन ब्रिटिश सैनिकों की हवस का शिकार बन चुकी हैं. उन्होंने बताया कि एक दिन वह गांव के बाहर अपने जानवरों को चराने गई थीं.
वहीं तीन ब्रिटिश सैनिकों ने जेनी पर हमला कर दिया. बारी बारी वे तीनों सैनिक जेनी पर भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़े और एक एक कर के उसके साथ दुष्कर्म किया. असहाय और अकेली जेनी कुछ ना कर सकी. उसे काफी गहरी चोटें भी आईं. जेनी के साथ इससे भी बुरा तो तब हुआ जब उसने अपने साथ हुई इस अनहोनी के बारे में अपने पति से बताया. इस बारे में जानने के बाद उसके पति ने उल्टा उसे ही डंडों मारा.
जेनी दर्द से तड़पती रही. जब प्रताड़ना की हद हो गई तब जेनी अपने बच्चों के रेबेका द्वारा बसाये हुए गांव में चली आई. अब इस गांव में 47 महिलाएं और 200 बच्चे रहते हैं. अगर किसी का बेटा होता है तो उसे इस गांव में 18 साल की उम्र तक रहने की इजाजत दी जाती है. इसके बाद उसे गांव छोड़ना पड़ता है.
लोग फीस देकर घूमने आते है ये गांव
अच्छी बात ये है कि अब ये गांव एक तरह का टूरिस्ट प्लेस बन चुका है. जिससे यहां की महिलाओं का भरण पोषण अच्छे से हो जाता है. यहां कई देशों से पर्यटक आते हैं. यहां घूमने के लिए आने वाले पुरुषों को गांव में आने की इजाजत है लेकिन इसके लिए उन्हें फीस देनी पड़ती है.
गांव की महिलाएं समबुरू परंपरा के कपड़े और आभूषण तैयार करके उसे बाजार में बेचती हैं. पर्यटकों के बीच भी इन परंपरागत आभूषणों और कपड़ों की खूब डिमांड रहती है.