उस दिन तारीख थी. 29 मई 1953 और घडी में सुबह के साढ़े 11 बज रहे थे. जगह थी दुनिया की सबसे ऊँची चोटी. उस जगह से जहां तक नज़र जाती वहां तक सिर्फ बर्फ और बादल ही नज़र आ रहे थे और नीचे मीलों तक फैले दर्रे थे. इसके पूर्व में लहोत्से, मकालू और दुर्गम कंचनजंघा थी तो पश्चिम में चो-ओयु और अन्य अविजित हिमशिखर. और इन सबके बाद वहां जो सबसे जानलेवा चीज थी वो थी हड्डियों तक महसूस होने वाली ठंड.
सागरमाथा पर फतह का झंडा गाड़ने वाले इंसान की कहानी
इस वक्त से पहले तक ऐसी जगह पर इंसान का टिक पाना लगभग असम्भव था. दुनिया कि सबसे ऊंची चोटी भी इसी घमंड में फूल रही थी कि उस पर कोई जीत प्राप्त नहीं कर सकता. लेकिन ठीक इसी समय दो इंसान लगभग रेंगते हुए उस चोटी की तरफ बढ़ते नज़र आए. हां! उन्हें रेंगते हुए ही कह सकते हैं क्योंकि जिन कठिनाइयों से जूझते हुए और जिस थकान को अपने ऊपर ओढ़े वो दोनों यहां पहुंचे थे.
उस हालत में इंसान का ठीक से चल पाना भी मुहाल था. लेकिन इतनी थकान के बाद भी यहां पहुंचते ही दोनों के दिल से निकली खुशी मुस्कराहट बन कर उनके होंठो पर रेंग गयी. वो दोनों खुश भी क्यों न होते, वे दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर कदम रखने वाले पहले इंसान जो बन गए थे. उन्होंने हिमालय पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट या नेपाली भाषा में कहें तो सागरमाथा पर फतह का झंडा गाड़ दिया था.
उनमे से एक जो छोटे कद का था उसने भारत, नेपाल और संयुक्त राष्ट्र के झंडे गाड़कर फतेह का ऐलान कर दिया. वो इंसान था तेनजिंग नोर्गे और उसके साथ जो दूसरा विदेशी आदमी था उसे दुनिया एडमंड पर्सिवल हिलेरी के नाम से जानती है. इसके साथ ही भारत जो अभी हाल ही में आजाद हुआ था वो दुनिया के बीच तेनजिंग की इस उपलब्धि द्वारा अपने एक अनोखे रूप के लिए पहचाना जाने लगा.
तेनजिंग नोर्गे का जन्म कब हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है
असल में तेनजिंग नोर्गे का जन्म कब हुआ इसका कोई प्रमाण नहीं है, क्योंकि उनके माता पिता ने उस तारीख को याद नहीं रखा. लेकिन फसलों व मौसम के अनुसार उनका जन्म मई के अन्त में हुआ था. उनके जन्म का वर्ष था 1914. और उन्होंने 29 मई को माउंट एवरेस्ट पर कदम रखा था, इसलिए उनका जन्मदिन भी 29 मई को ही मनाया जाने लगा. उनके पिता घांग ला मिंगमा याक पालने वाले थे. उनकी माँ का नाम डोक्यो किन्जम था.
उनकी मां उनके पर्वतारोहण तक जीवित थीं. अपने माता-पिता के 13 बच्चों में वह 11वीं संतान थे, जिनमें से अधिकांश की मृत्यु हो गई थी. पहले तेनजिंग को उनके माता पिता ‘नामग्याल वागंडी’ के नाम से पुकारते थे. असल में तिब्बत का एक चलन है कि वहां बच्चों का नाम लामा रखते हैं. नामग्याल के माता पिता इसी मकसद से उसे ले कर रोंगबुक मठ पहुंचे. वहां एक महान लामा उपस्थित थे. जब तेनजिंग के माता पिता ने लामा से तेनजिंग के नाम के विषय में पूछा तो लामा ने ग्रंथों में देख कर बताया कि इसका नाम तेनजिंग नोर्गे रखा जाना चाहिए.
तेनजिंग का मतलब होता है धर्म में विश्वाश रखने वाला और नोर्गे का मतलब होता है धनवान, भाग्यवान. इस तरह तेनजिंग नोर्गे का मतलब हुआ धनी धर्मसमर्थक. इसके साथ ही लामा ने एक और भविष्यवाणी की कि यह बच्चा संसार भर में प्रसिद्द होगा. उस लामा से पहले भी एक और लामा तेनजिंग को ले कर ऐसी भविष्यवाणी कर चुके थे. तेनजिंग के माता पिता बच्चे के इस नए नाम और उसे ले कर हुई भविष्यवाणी से बहुत खुश थे.
माता-पिता चाहते थे कि तेनजिंग बड़ा हो कर एक लामा बने
तेनजिंग के माता-पिता चाहते थे कि तेनजिंग बड़ा हो कर लामा बने. इसीलिए वे तेनजिंग को एक मठ में ले गए जहाँ उसका मुंडन हुआ तथा आगे की शिक्षा दीक्षा के लिए उन्हें वहीं रख लिया गया. यह निश्चित था कि वो लामा बन जाते लेकिन नियती ने उनका चयन किसी अभेद लक्ष्य को भेदने के लिए किया था. कुछ दिन मठ में रहने के बाद ऐसी घटना हुई जिसने तेनजिंग का जीवन पूरी तरह से बदल दिया. एक दिन मठ के लामा किसी बात के लिए तेनजिंग से नाराज हो गए तथा गुस्से में उन्होंने लकड़ी की फट्टी से तेनजिंग के मुंडे हुए सर पर प्रहार कर दिया.
चोट के कारण तेनजिंग बुरी तरह बिलबिला उठे और घर भाग गए. घर आ कर उन्होंने सारी बात अपने माता पिता को बताई और कहा कि वो दोबारा मठ नहीं जाएंगे. माता पिता ने उनकी ये बात मान ली और वो फिर से मठ नहीं गए. इस तरह वो लामा बनते बनते रह गए. तेनजिंग नोर्गे ने लिखा है कि अगर उस दिन उनके माता पिता उनके मठ ना जाने की बात को ना मानते तो ना जाने क्या हुआ होता.
तेनजिंग ने ये भी लिखा कि जब वो इस घटना का जिक्र अपने मित्रों के सामने करते तो उनके मित्र हंसते हुए कहते कि शायद लामा ने तुम्हारे गांजे सर पर छड़ी मारी थी इसीलिए तुम पहाड़ों के पीछे इतने पागल हो गए.
भारत सरकार ने 1959 में ‘पद्मभूषण’ देकर सम्मानित किया
तेनजिंग नोर्गे को भारत सरकार ने 1959 में ‘पद्मभूषण’ देकर सम्मानित किया था. 1954 में ‘हिमालयन माउन्टेनियरिंग इंस्टिट्यूट की दार्जलिंग (प. बंगाल) में स्थापना की गई और तेनज़िंग नोर्गे को उसमें निदेशक बनाया गया. उनका निक नेम ‘टाइगर ऑफ स्नोज’ रखा गया था. 1978 में उन्होंने ‘तेनज़िंग नोर्गे एडवेन्चर्स’ नाम की कम्पनी बनाई, जो हिमालय में ट्रेकिंग कराती थी. 2003 में उनके पुत्र जैमलिंग तेनज़िंग नोर्गे इस कंपनी को चला रहे थे, जो 1996 में एवरेस्ट विजय प्राप्त कर चुके हैं. भारत को विश्व पटल पर एक नयी पहचान दिलाने वाले तेनज़िंग नोर्गे 9 मई, 1986 में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए. वो भले ही चले गए लेकिन उनका नाम दुनिया की चोटी पर कदम रखने वाले पहले भारतीय के रूप में हमेशा याद किया जायेगा.