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अत्तिला हूण: वो योद्धा जिसने हूण साम्राज्य को विश्व विजेताओं की क़तार में खड़ा किया था

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शायद मैं तब दसवीं में पढ़ रहा था, जब पहली बार रामजीदास पुरी जी का लिखा उपन्यास ‘आखिर जीत हमारी’ पढ़ा था. ये उपन्यास उस समय की पृष्ठभूमि पर लिखा गया था जब भारत दानव प्रवृति वाले हूण आक्रमणकारियों के हमले से जूझ रहा था. मैं इनका नाम पहली बार सुन रहा था इसी कारण बड़ी जिज्ञासा हुई थी इनके बारे में और अधिक जानने की. दुर्भाग्य से उस वक्त न इंटरनेट की सुविधा थी और न ही गूगल का साथ था. परिणाम स्वरूप हूणों के बारे में जानने की इच्छा भी उपन्यास के ख़तम होते ही समाप्त हो गयी.

बीतते समय के साथ मैंने ये जाना कि हूण एशिया की एक जाति है जो एक काबिले की तरह पनपी और देखते ही देखते ईसा की चौथी और पांचवीं शताब्दी तक पूरे विश्व में अपना प्रताप फैला किया. लूट मार करना, अपनी पूरी ताक़त लगाकर अन्य देशों पर हमला कर के उनका विध्वंश कर देना, हमला ना करने के बदले राज्यों से कर वसूल करना, ये सब हूणों का मुख्य कार्य था. हूण एक खानाबदोश और घुमक्कड़ी नसल मानी गयी है.

मंगोलियों के बाद सबसे ज्यादा आतंक हूणों का ही रहा है. इतिहासकार ‘एडवर्ड गिबन’ के अनुसार ‘हूण प्रजाति अपनी बर्बरता और निर्दयिता के लिए जानी जाती थी. मगर इतना प्रताप और वैभव होने के उपरांत भी हूण वैसा अधिकार ना स्थापित कर सके जैसा वो कर सकते थे. इसका कारण था उनका हद से ज्यादा लालची होना. धन के लोभ में वो अपने द्वारा हराई गयी सेना के परचम तले भी दूसरों से युद्ध करते थे. उनमें जातीय गौरव नाम मात्र भी ना था. हमेशा वह अपना समूचा पराक्रम छोटी-छोटी लड़ियों में व्यर्थ कर देते.

एशिया से यूरोपियन देशों तक हूण साम्राज्य का परचम लहराने वाला कौन?

यदि यही हाल रहता तो शायद हूण साम्राज्य का उदय होने से पहले ही इनका अंत हो जाता. परन्तु जब हूण आपस में लड़ मर कर समाप्त होने के कगार पर थे तभी हूणों के एक ऐसे राजा का उदय हुआ जिसने एशिया से यूरोपियन देशों तक हूण साम्राज्य का परचम लहराया. हूण साम्राज्य को विश्व विजेताओं की क़तार में खड़ा करने वाला शख़्स था, ‘अत्तिला हूण’. इतिहासकारों के अनुसार अत्तिला का जन्म 405-06 ई. में डेन्यूब नदी से उत्तर की ओर हूणों के एक शक्तिशाली परिवार में हुआ था. अत्तिला का पिता मुंदजुक तत्कालीन सम्राट ऑक्टर और रुगा का भाई था.

अत्तिला और उसके बड़े भाई ब्लेदा की परवरिश बाक़ी के भद्दे और अनपढ़ हूणों की तरह नहीं हुई तरह नहीं हुई थी. उन्हें तीरंदाज़ी के साथ साथ घुड़सवारी और घोड़ों की अच्छी तरह से देखरेख करना सिखाया गया. वह गौथिक और लेटिन भाषा समझ सकता था और शायद पढ़ भी सकता था. इसके साथ ही उसे युद् धकौशल भी सिखाया गया. समय के साथ साथ अत्तिला युद्ध कौशल की तत्कालीन सभी विद्याओं में निपुण होता गया.

अत्तिला अपने समय का सबसे ज्यादा क्रूर शासक था इसी कारण इतिहासकरों ने इसे ‘भगवन का कोड़ा’ नाम दिया. 433 ई. में जब रुगा और ऑक्टर कांस्टेंटिनोपल के विरुद्ध हो रहे युद्ध में मारे गए तब हूण साम्राज्य की बागडोर अत्तिला और ब्लेदा के हाथों में आगयी जो अत्तिला की मृत्यु तक उसके अधिकार में रही.

अत्तिला ने अपनी सारी ताक़त लगा कर अपने पड़ोसी राज्यों और खास कर पश्चिमी और पूर्वी रोमन साम्राज्य पर लगातार आक्रमण करने शुरू कर दिए. कुछ ही समय में अत्तिला ने रोमानस की जड़ें हिला कर रख दीं और रुगा द्वारा रोमानस के खिलाफ़ चलाये अभियान को पूरा कर दिया. अत्तिला से रोम साम्राज्य इस तरह भयभीत हुआ कि उसने अत्तिला को शांति बनाए रखने के बदले 700 पौंड मूल्य का सोना वार्षिक कर के रूप में देना शुरू कर दिया. रोम द्वारा की गयी यह संधि अत्तिला की मृत्यु तक कायम रही.

रोमन राज्यों पर बरसा था ‘भगवान का कोड़ा’ जिसका नाम था ‘अत्तिला हूण’

रोमन लेखक प्रिस्क्स के अनुसार अत्तिला हूण साम्राज्य पर अपना अकेले का अधिपत्य चाहता था. इसीलिए उसने ब्लेदा के अधिकारों को हड़पने के लिए उसकी हत्या कर दी. कुछ का कहना ये भी है कि ब्लेदा एक युद्ध के दौरान मारा गया मगर जैसे भी हो 445 ई. में ब्लेदा की मृत्यु हो गयी और अत्तिला हूण सम्राज्य का अकेला शासक बन गया. शासन हाथ में आते ही अत्तिला उस का सबसे शक्तिशाली सैन्य कमांडर बन गया. 450 ई. के पश्चात्‌ अत्तिला पूर्वी साम्राज्य को छोड़ पश्चिमी साम्राज्य की ओर बढ़ा. पश्चिमी साम्राज्य का सम्राट तब वालेंतीनियन तृतीय था.

सम्राट की बहन जुस्ताग्राता होनोरिया ने अपने भाई के विरुद्ध जा कर हुनिश राजा के हाथों सहायता करने की मांग के साथ अत्तिला को अपनी अँगूठी भेजी थी. होनोरिया द्वारा अंगूठी भेजा जाना विवाह का प्रस्ताव नहीं परन्तु इसे विवाह का प्रस्ताव मान हूणराज ने इसे स्वीकार करते हुए दहेज़ स्वरूप उसका आधा राज्य मांगा.

होनोरिया का प्रस्ताव मानने के बाद अत्तिला अपनी सेना के साथ गाल को रौंदता, मेत्स को लूटता, ल्वार नदी के तट पर बसे और्लियां जा पहुंचा. मगर सम्राट वालेंतीनियान तृतीय अत्तिला की योजना को भांप चुका था. परिणाम स्वरूप उसकी सेना ने पश्चिमी गोथों और नगरवासियों की सहायता से हूणों को नगर का घेरा उठा लेने को मजबूर किया. दो माह पश्चात् जून, 451 में अत्तिला ने फिर से हमला किया. यही वो समय था जब इतिहास की सबसे भयंकर खूनी लड़ाइयों में से एक लड़ी गई. दोनों सेनाएं सेन नदी के तट पर त्रॉय के निकट परस्पर मिलीं.

भीषण युद्ध हुआ, अत्तिला ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी, मगर फिर भी उसे जीवन की एकमात्र हार का सामना करते हुए मैदान छोड़ना पड़ा. पर अत्तिला चुप बैठने वाला आदमी नहीं था. अगले साल सेना लेकर शक्ति केंद्र स्वयं इटली पर उसने धावा बोल दिया और देखते-देखते उसका उत्तरी लोंबार्दी का प्रांत उजाड़ डाला. उखड़े, भागे हुए लोगों ने आर्द्रियातिक सागर पहुंच वहां के प्रसिद्ध नगर वेनिस की नींव डाली. सम्राट वालेंतीनियन ने भागकर रावेना में शरण ली. इस युद्ध के बाद उसके और हूणों के नाम से यूरोपीय जनता थरथर कांपने लगी.

अत्तिला की अगुवाई में यूरोप तक हूणों ने अपना खूनी आधिपत्य कायम किया

हंगरी में बसकर तो उन्होंने उस देश को अपना नाम दिया हो, उनका शासन नार्वे और स्वीडेन तक चला. चीन के उत्तर-पूर्वी प्रांत कासू से उनका निकास हुआ था, और वहां से यूरोप तक हूणों ने अपना खूनी आधिपत्य कायम किया. उन्हीं की धाराओं पर धाराओं ने दक्षिण बहकर भारत के गुप्त साम्राज्य को भी कमर तोड़ दी.

अत्तिला भले ही एक क्रूर शासक था. परन्तु उसका रहन-सहन एक दम सादा था. प्रिस्क्स के मुताबित एक बार जब वह अत्तिला के निमंत्रण पर उसके यहां भोजन पर पहुंचा तो उसने देखा कि अतिथि के सत्कार में उसके आगे सोने की थाली और चांदी के गिलास में भोजन परोसा गया है. मगर स्वयं अत्तिला लकड़ी से बनी प्लेट और लकड़ी के ही कप में खा पी रहा था. आत्तिला का पहनावा भी बेहद सादा था. वह अपना सारा सोना अपनी सेना में बांट देता जिनमें सोने की बहुत भूख थी. अत्तिला की दिल में थोडा बहुत रहम भी था.

यह तब सिद्ध हुआ जब पोप लिओ प्रथम ने रोम की रक्षा के लिए मिंचिओ नदी के तीर पड़ाव डाले अत्तिला से प्रार्थना की तब कुछ पोप के अनुनय से, कुछ हूणों के बीच प्लेग फूट पड़ने से अत्तिला ने इटली छोड़ देना स्वीकार कर लिया. भले ही वह क्रूर था. मगर फिर भी आप एक महान योद्धा और एक शासक की इस तरह की मृत्यु के बारे में आप नहीं सोच सकते जिस तरह अत्तिला मरा हुआ पाया गया. 453 ई. में जब अत्तिला पूर्वी रोमन पर हमला करने की योजना बना रहा था उससे ठीक पहले एक और शादी करने का फैसला किया तथा इल्डीको नामक सुन्दर औरत से शादी कर ली. अपनी शादी के दिन अत्तिला ने खाना खाया तथा देर रात तक शराब पी.

सुबह जब दिन चढ़ जाने के बाद भी वह अपने शयनकक्ष से बाहर नहीं आया तो पहरेदार दरवाज़ा तोड़ कर अन्दर घुस गए. कक्ष के भीतर उन्होंने पाया कि अत्तिला को मरा हुआ था, और इल्डीको उसके सिरहाने बैठी रो रही थी. उसके शरीर पर एक भी घाव मौजूद नहीं था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी सदमे अथवा रक्तचाप के दौरान उसके नाक से बहुत सारा खून बहा है. कुछ का मानना था कि इसमें इल्डीको का हाथ है, और कुछ इसे एक दुर्घटना मान कर रह गए. अत्तिला के सैनिकों ने अपने चेहरों पर खून पोत कर और घोड़े पर बैठ कर उसके शव के छाकर लगते हुए अपने राजा की मृत्यु का दुःख प्रकट किया. उस रात अत्तिला के शरीर को सोने-चांदी और लोहे के ताबूत में बंद किया गया तथा उसे गहनों और अन्य खजानों से सजा कर नदी में दफना दिया गया.

अत्तिला बेशक़ एक क्रूर शासक था मगर साथ साथ वह एक वीर योद्धा भी था

जिन नौकरों ने उसके शव को दफ़नाया था. उन्हें मार दिया गया जिससे किसी को ये ना पता लग सके की अत्तिला का शरीर कहां दफ़न है. कोई नहीं जनता की उसकी लाश कहां दफनाई गयी. बस एक अनुमान है कि इसे हंगरी के आसपास ही दफनाया गया है. अत्तिला बेशक़ एक क्रूर शासक था मगर इसके साथ साथ वह एक वीर योद्धा भी था. इतिहासकरों ने जहां उसे ‘भगवन का कोड़ा’ नाम दिया है. वहां इस बात की भी पुष्टि की है कि कई जगहों पर अत्तिला ने अपने साधारण और नर्म दिल होने का उदाहरण भी दिया है. आप सब अत्तिला के बारे में क्या सोचते हैं?

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