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84 वर्ष का वो हत्यारा जिसने एक ऐसा रिकार्ड बना दिया जिसे तोड़ने की कल्पना भी नहीं की जा सकती 

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हर अपराध की सजा है और हर अपराधी को वो सजा भुगतनी ही पड़ती है. अपराध करते समय सजा का ध्यान कोई नहीं रखता, गर्म खून, जोश, बाहुबल, दबंगई इत्यादि का नाम ले कर हर कोई अपना सिक्का चलाना चाहता है, किन्तु इसी जोश में किए गए अपराधों की सजा जब भुगतनी पड़ती है तो इंसान की हालत सड़क के किनारे बैठे उस भिखारी की तरह हो जाती है, जिस बेचारे को उसकी मृत्यु के बाद सिवा नगर निगम की गाड़ी के और कोई नहीं उठाता. और यदि सजा भुगतते हुए उसकी उम्र सैंकड़ा पार कर जाए फिर तो सिवाय अफ़सोस के कुछ बचता ही नहीं.

सबसे अधिक उम्र के कैदी की कहानी

80 के दशक की बात है. उत्तर प्रदेश महाराजगंज में एक व्यक्ति था बृज बिहारी. बृज बिहारी ने हमेशा से एक ही सपना देखा था, और वो सपना था महाराजगंज के जगन्नाथ मंदिर के महंत बनने का. इसी सपने का पीछा करते हुए बृज बिहारी ने अपने जीवन के 84 वर्ष बिता दिए. हमेशा शाकाहारी भोजन खाया, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शादी भी नहीं की किन्तु इन सब के बावजूद भी सपना था कि हकीकत में बदलने का नाम ही नहीं ले रहा था. 

इसी बीच मठ के नए महंत के रूप में उनका नाम उछला लेकिन यहां भी भाग्य उनका साथ न दे सका. नया महंत चुना गया भगवंत पांडेय के पुत्र रामानुज दास को. उन्हें मंदिर का दायित्व सौंप दिया गया. बृज बिहारी का तो मानों सपनों का बना बनाया महल ढह गया. इस चोट को बिहारी बर्दाश्त न कर सका और उसने कुछ ऐसा करने का फैसला किया जो किसी को अचंभे में डाल सकता था. 15 जून 1987 को वो दिन आ गया जब बिहारी ने अपने पन्द्रह समर्थकों को इकट्ठा किया और रामानुजदास पर हमला बोलने निकल पड़ा.

84 वर्ष में हत्यारा क्यों बना बृज बिहारी?

84 वर्ष की आयु तक या तो इंसान ईश्वर को प्यारा हो गया होता है या फिर रामधुन करते हुए अपने अंत समय की प्रतिक्षा कर रहा होता है किन्तु वहीं बृज बिहारी एक हत्या के लिए कमर कस के निकला था. दोनों गुटों के बीच युद्ध हुआ और बृज बिहारी की मनोकामना पूरी हुई. रामानुजदास बृज बिहारी के हाथों मारे गए इसके साथ ही तीन और लोगों की हत्या का इल्जाम भी बृज बिहारी पर आया. बिहारी पर केस चला.

अब आप अपने देश में केस का हाल तो जानते ही हैं, केस चलता रहा. आरोपी अपने बचाव के लिए दलीलें देते रहे और पुलिस उन दलीलों को खारिज करवाने के लिए सबूत पेश करती रही. वर्षों तक चलने वाले इस केस का फैसला 2009 के दिसंबर में आया और इसी के साथ आरोपियों की हार हुई. वे सभी आरोपी अब अपराधी बन गए थे जिन्हें सजा मिलना निश्चित था. बृज बिहारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाइ गयी.

जेल में कम अस्पताल में ज्यादा समय बिताया

जब बिहारी को सजा सुनाई गयी तब तक वो उम्र का सैंकड़ा पार कर चुके थे. साथी कैदी जानते थे कि वो हत्या के जुर्म में अंदर आया है लेकिन उसकी उम्र का ख्याल करते हुए सब उसके प्रति दयाभाव रखते थे. साथी कैसी बृज बिहारी को बाबा कह कर बुलाते थे. इस उम्र तक बृज बिहारी की सेहत भी जवाब दे गयी थी इसलिए उन्होंने अपनी सजा के दौरान जेल की कोठरी में कम और अस्पताल में ज्यादा समय बिताया.

जब बृज बिहारी अस्पताल में भर्ती किए जाते तो उनकी नित्य क्रियाओं में साथ के मरीज उनकी सहायता करते. उनकी हालत इस तरह की हो गयी थी कि वो रोटी भी नहीं चबा पाते थे. बिहारी की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए अक्टूबर 2010 में महाराजगंज जिले के कलक्टर ने उत्तरप्रदेश के राज्यपाल को बिहारी की दया याचिका भेजी.

मरने से उसने पहले गांव जाने की इच्छा जाहिर की

26 मई 2011 को इलाहबाद कोर्ट ने बृज बिहारी समेत उसके 10 अन्य साथियों की जमानत मंजूर कर ली गयी. लेकिन कोई ऐसा बचा ही नहीं था जो इनकी जमानत दे सके क्योंकि उनके करीबी रिश्तेदारों समेत उनका भतीजा भी साथ ही जेल में बंद था. फिर कुछ समय बाद उनके भतीजे घनश्याम पांडे के पुत्र अवनीश पांडे ने दो अन्य स्थानीय लोगों के साथ बृज बिहारी की जमानत दे कर उन्हें मुक्त कराया. 

बृज बिहारी ने रिहाई के बाद कहा था कि उसने जो भी किया उसके लिए वो पछता रहा है. फिर चाहे सारी उम्र महंत के पद के पीछे भागना हो या फिर उस पद के लिए लिया गया बदला. मरने से उसने पहले अपने गांव जाने की इच्छा जाहिर की. फिर उसी भगवान से प्रार्थना की जिसके सामने उसने हत्याएं की थीं.

ऐसा रिकार्ड बना दिया जो अब तक टूट नहीं सका है

जब बृज बिहारी जेल से रिहा हुआ तब उसकी उम्र 108 वर्ष थी और इसी के साथ उसने एक अजीब रिकार्ड बना दिया. असल में बृज बिहारी जेल से रिहा होने वाला विश्व भर में सबसे अधिक उम्र का कैदी है.

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