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हेन्रिख हिम्म्लर: हिटलर का वो साथी, जिसने पोटाशियम साईनाईट कैप्सूल चबा कर आत्महत्या कर ली थी

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हम चाहते हैं आप यह लेख पढ़ने से पहले कुछ पल के लिए अपनी आंखें बंद करें, और महसूस करें कि आप एक लकड़ी के छोटे से बैरक में बंद हैं, जहां आपके साथ और भी सैकड़ों लोग भेड़ बकरियों की तरह बंद हैं. यहां सोने खाने की व्यवस्था तो दूर सही से सांस लेना भी दुर्लभ है. यहां आपसे आपकी क्षमता से पांच गुना ज़्यादा काम लिया जा रहा है, और काम ना कर पाने की स्थिति में आपको तरह तरह की भयानक यातनाएं दी जा रही हैं.

गहराई से इतना महसूस करते ही आपके पसीने छूट जायेंगे. मगर अभी तो महज़ एक शुरुआत है अभी आपको कुछ और भी महसूस करना है. आप महसूस करिए अपनी नाक से हो कर आपकी धमनियों से आपके फेफड़े और दिल में पहुंचती उस ज़हरीली गैस को जो आपकी नसों को मरोड़ रही है, आपकी सांसें बंद हो रही हैं, आप बेहद बुरी तरह से तड़प रहे हैं. ऐसा महसूस करते ही आप बेचैन हो उठेंगे, आंख खुलते ही देखेंगे कि आपका बदन पसीने से पूरी तरह तर है. जिनमें अभी भी इस भयंकर अहसास को महसूस कर सकने की शक्ति है वो देखें कि हर तरफ लाशें ही लाशें हैं. जो ज़िन्दा बचे हैं उनकी देह मानव कंकाल के सिवाय कुछ भी नहीं हैं. ना रहने की व्यवस्था, ना स्वच्छता का नाम-ओ- निशान, ना खाने को भोजन, ना ठण्ड से बचने का कोई उपाय.

यहूदियों के सर्वनाश के लिए चलायी गई मुहीम ‘होलोकास्ट’ की कहानी

अब आप आंखें खोल सकते हैं और अपने परमेश्वर से इस बात के लिए शुक्रिया कह सकते हैं कि आप सौभाग्यशाली हैं, जो आपको इस तरह की कल्पना मात्र से डर लगता है. क्योंकि ऐसे लाखों लोग भी रहे हैं जिन्होंने ये सारी यातनाएं खुद पर सही हैं, जिन्होंने इस भयंकर नरसंहार को अपनी सूखी और उदासीन आंखों से देखा है. यहूदियों के सर्वनाश के लिए चलायी गयी मुहीम, जिसे ‘होलोकास्ट’ का नाम दिया गया के तहत लाखों यहूदियों, दासों, जिप्सियों, कम्युनिस्टों तथा समलैंगिकों को गैरजरूरी घोषित करके मौत के घाट उतार दिया गया. आदमी को सताने के विभिन्न औजारों का इज़ाद, गैस चैम्बर, घातक सूइयां, जीवित आदमी, औरतों तथा बच्चों पर तरह-तरह के भयंकर प्रयोग, क्या नहीं किया गया होलोकास्ट के दौरान.

होलोकास्ट के भुक्तभोगी विक्टर फ्रैन्कल अपनी किताब “Man’s Search for Meaning” में लिखते हैं, ‘कोई भी सपना कितना भी भयंकर क्यों न हो यातना शिविर की हमारे आसपास की सच्चाई से भयंकर नहीं हो सकता है. होलोकास्ट के आदेश हिटलर का नाम कौन नहीं जनता, किसने हिटलर की तानाशाही के बारे में नहीं सुना. हिटलर के ही आदेश पर होलोकास्ट लागू किया गया जिसके कारण 60 लाख यहूदियों को अपनी जान गंवानी पड़ी और इससे दुगने लोगों को भयंकर पीड़ादायक यातनाओं का शिकार होना पड़ा. इंसान ने अपने जीवन में बहुत सी त्रासदियों को झेला है, मगर होलोकास्ट से भयानक स्थिति आज तक कभी नहीं हुई. यहूदियों के कत्लेआम का दर्द जब भी दुनिया के सामने आता है तब तब हिटलर की सूरत नज़र आती है.

जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर का करीबी ‘हेन्रिख हिम्म्लर’ कौन था?

मगर अकेले हिटलर के दम पर यह कदापि संभव नहीं था. यह सच है कि इस वीभत्स घटना की सारी योजना हिटलर ने ही तैयार करते हुए ‘फाइनल सलूशन ऑफ ज्यूइश क्वैश्चन’ के ऑर्डर दिए थे. मगर इस नरसंहार में हिटलर के बहुत से करीबी लोगों का हाथ रहा जिनमें सबसे ऊपर ‘हेन्रिख हिम्म्लर” का नाम रहा.

हेन्रिख हिम्म्लर, एक स्कूल अध्यापक का बेटा जिसके दिमाग में हमेशा से एक बड़े अधिकारिक पद पर बैठने की सनक थी. इसी मंशा से वो अपने पिता से आग्रह कर के उनके शाही संपर्कों से 11वीं बवेरियन बटालियन में प्रिशिक्षण हेतु भी गया परन्तु जर्मनी की हार के बाद युद्ध समाप्त होते ही उसे ये आकांक्षा त्याग देनी पड़ी. एक के बाद एक विफलताओं से तंग आकर हिम्म्लर ने अपनी आकांक्षाओं का अंत करते हुए मुर्गीपालन का काम शुरू किया. मगर शायद उसकी नियति उससे कुछ बेहद बुरा करवाने का मन बना चुकी थी तथा वो 1925 में एसएस में शामिल हुआ, बवेरिया में उसका पहला पदस्थापन एसएस-गौफ्युहरर (जिला नेता) के रूप में हुआ.

1933 तक, एसएस के 52,000 सदस्य हो गए. संगठन ने सख्त सदस्यता लागू करते हुए यह सुनिश्चित किया कि सभी सदस्य हिटलर के आर्यन हेर्रेन्वोल्क (आर्य प्रधान नस्ल) के हों. 1933 में हिमलर को पदोन्नति देकर एसएस-ओबेरग्रुप्पेंफ्युहरर  बना दिया गया. इससे वह वरिष्ठ एसए कमांडर के समकक्ष हो गया. हिमलर इस बात पर सहमत था कि एसए और उसके नेता अर्नस्ट रोहम जर्मन सेना और नाज़ी के समक्ष एक खतरा बन रहे हैं.

यहूदियों के क्रूर नर संहार में हेन्रिख हिम्म्लर की भूमिका क्या थी?

हिमलर के उकसाने पर, रोहम के खात्मे के लिए हिटलर सहमत हो गया. रोहम सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के खात्मे के आदेश दिए गए, साथ ही हिटलर के कुछ निजी शत्रुओं को भी ख़त्म करने का आदेश दिया गया (जैसे कि ग्रेगोर स्ट्रासर और कुर्त वोन श्लेइकर). ये काम 30 जून 1934 को किये गये, जो नाईट ऑफ़ द लौंग नाइफ़ के नाम से जाना जाता है. अगले दिन, एसएस एक स्वतंत्र संगठन बन गया, जो सिर्फ हिटलर के प्रति जवाबदेह था, और हिमलर का राइखफ्युहरर-एसएस का खिताब एसएस का औपचारिक सर्वोच्च पद बन गया.

यहूदियों के नर संहार में हिम्म्लर की भूमिका ‘नाईट ऑफ दी नाईव्स’ के पूरा होते ही एस एस द्वारा यातना शिविर और संहार शिविर बनाये जाने लगे. जिसके अंतर्गत यहूदियों, जिप्सियों, कम्युनिस्टों और दूसरे सांस्कृतिक, नस्लीय, राजनीतिक या धार्मिक व्यक्तियों को जिन्हें नाज़ी, या तो अंटरमेंस्च या शासन विरोधी मानते, यातना शिविरों में डालना शुरू किया. 22 मार्च 1933 को हिमलर ने दचाऊ में ऐसे पहले शिविर का आरंभ किया जाने लगा. हिमलर की मुलाकात पुस्तिका से पता चलता है कि 18 दिसम्बर 1941 को हिमलर की भेंट हिटलर के साथ हुई थी. उस दिन की मीटिंग में यह सवाल खड़ा किया गया था कि, “रूस के यहूदियों के साथ क्या किया जाय?” और उसके बाद प्रश्न का उत्तर था, “अल्स पार्टीसानेन ऑस्जुरोटन” (उन्हें पक्षपाती मानकर उनका सफाया किया जाय”).

हिटलर के बजाय हिमलर ही यातना शिविरों का निरीक्षण किया करता था

अब हिटलर के बजाय हिमलर ही यातना शिविरों का निरीक्षण किया करता था. इन निरीक्षणों के परिणामस्वरुप, हिम्म्लर ने हत्या का एक नया और भी अधिक पीड़ादायक उपाय खोज निकाला, जिससे गैस चैम्बरों का इस्तेमाल शुरू हुआ. यातना तथा संहार शिविरों में विरोधियों को बंद किया जाता तथा जो काम करने में असक्षम होते, जैसी कि विकलांग अथवा बच्चे उन्हें यातनाएं दे कर मौत के घाट उतर दिया जाता.

ये सभी शिविर हिम्म्लर की देख रेख में थे. पोज़न में दिया हुआ हिम्मिलर का भाषण 4 अक्टूबर 1943 को, हिमलर ने पोज़न शहर में एसएस की एक गुप्त बैठक में स्पष्ट रूप से यहूदी जनता के खात्मे का उल्लेख किया. इस भाषण में वह हंसते हुए यहूदियों के पूर्णरूप से संहार करने की बात ऐसे कहता है जैसे ये बहुत ही मामूली सा काम हो.

पूरे भाषण में यहूदियों के संहार के बारे में बात करते हुए हिम्म्लर अंत में यह कह कर भाषण ख़तम करता है कि अगर यहूदी हमारे देश जर्मन का हिस्सा बने रहे तो हम उस हाल में पहुंच जायेंगे जो कभी 1916-17 के दशक में हमारा हुआ करता था. भाषण में हिम्मिलर की हिंसात्मक मानसिकता साफ़ तौर पर देखी गयी, और उसकी इसी मानसिकता के चलते हिम्म्लर के संरक्षण में लगभग आठ लाख यहूदियों और अन्य विरोधियों की हत्या का संयोजन किया गया. द्वितीय विश्व युद्ध और हिम्म्लर जून 1942 में जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया.

हेन्रिख हिम्म्लर का लक्ष्य सिर्फ़ और सिर्फ़ दुश्मन का सर्वनाश करना था

हिम्म्लर की उपलब्धियों को ध्यान में रख कर जीते हुए क्षेत्रों का संरक्षण उसे इस लक्ष्य के साथ सौंप दिया गया कि वो सोवियत व्यवस्था को पूरी तरह नष्ट कर देगा. अब हिम्म्लर का लक्ष्य सिर्फ़ और सिर्फ़ दुश्मन का सर्वनाश करना था भले ही उसे इसके लिए कुछ भी करना पड़ता. हिम्म्लर ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अपने वैज्ञानिकों को यहां तक आदेश दिए कि वो ऐसे मच्छरों को बॉयोलॉजिकल हथियार के रूप में प्रयोग करे जिसे वो दुश्मन खेमों में भेज कर दुश्मन सिपाहियों को मलेरिया का शिकार बना सकें. 

1942 में हिम्म्लर के करीबी साथी रेइनहार्ड हेड्रिक की प्राग के करीब एक हमले के बाद चेक विशेष सेना के हाथों मारे जाने के प्रतिशोध में लिडिसे गांव की महिलाओं और बच्चों सहित पूरी आबादी की ह्त्या कर दी. हेन्रिख का अंत 1944 में हिम्म्लर ने किन्हीं कारणों से हिटलर (जो हिम्म्लर को अपना सबसे बड़ा वफादार मानता था तथा उसे वफादार हिम्म्लर कह कर संबोधित करता था ) के साथ विश्वासघात किया जिसके फलस्वरूप हिटलर ने हिम्म्लर को गद्दार घोषित करते हुए उसे उसके सभी पदों से निष्काषित कर दिया. हिम्म्लर ने अपना नाम और वेशभूषा बदल कर बचने की कोशिश की और साथ ही सभी फर्जी पहचानपत्र भी बनवाए. मगर उसके सभी पहचानपत्रों का क्रम से होना ही उसे शक़ के घेरे में खड़ा कर गया. हिम्म्लर को शक़ के आधार पर 22 मई को मेजर सिडनी एक्सेल द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. अन्य जर्मन अपराधियों के साथ उस पर भी मुकद्दमा चलाया गया.

मगर पूछताछ पूरी होने से पहले ही उसने अपने दांतों में छुपाया पोटाशियम साईनाईट कैप्सूल चबा कर आत्महत्या कर ली. मरते-मरते उसने अपने आखरी शब्दों, ‘इच बिन हेन्रिख हिम्म्लर (मैं हैन्रिख हिम्म्लर हूं)’ के साथ समर्पण कर दिया. इंसानियत का सबसे बड़ा दुश्मन खुद इंसान ही रहा है, इंसान पर जब भी कहर बरसा है तो उसका कारण खुद इंसान ही रहा है. इस धरती पर अगर कोई खूंखार जानवर है तो वो खुद इन्सान ही है.

हिटलर की मंशा को पूरा करने के लिए हिम्म्लर जैसे कई लोगों ने अपनी दरिंदगी को दर्शाते हुए 60 लाख लोगों को मौत के घाट उतर दिया जिनमें 15 लाख बच्चे थे. और इन सब के बावजूद उन्हें हासिल हुई तो सिर्फ़ मौत. ऐना फ्रेंक जो 13 साल की उम्र में नाजियों द्वारा किये हमले में मारी गयी. उन्होंने अपनी डायरी (‘द डायरी ऑफ ऐना फ्रेंक) में अपना वो सारा डर, वो यातनाएं और समकालीन व्याप्त भय का पूरा विवरण लिखा है. हम विश्व में शांति बनाये रखने हेतु इश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वो ऐसा दौर फिर कभी भूल कर न हमें दिखाए.

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