ये कहानी है बाबा हरभजन सिंह की. नाथू ला का वो हीरो, जो मरने के बाद भी देश की पहरेदारी कर रहा है. भारत के जांबाज हरभजन सिंह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन नाथूला दर्रा से करीब 10 किलोमीटर दूर 13 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर मौजूद एक मंदिर हमेशा उनकी मौजूदगी का एहसास कराता है. भारत-चीन बॉर्डर पर तैनात भारतीय सैनिकों का मानना है कि आज भी बाबा हरभजन सिंह देश की पहरेदारी कर रहे हैं.
अमर सपूर बाबा हरभजन की कहानी
बाबा हरभजन का जन्म 30 अगस्त 1946 को जिला गुजरांवाला (वर्तमान पाकिस्तान में) के सदराना गांव में हुआ था. हरभजन सिंह ने सन 1955 में डी.ए.वी. हाईस्कूल, पट्टी से मैट्रिक पास किया था. इसके बाद जून सन 1956 में हरभजन सिंह अमृतसर में एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना की सिग्नल कोर में शामिल हो गए. जानकारी के मुताबिक 30 जून, 1965 को इन्हें कमीशन प्रदान कर 14 राजपूत रेजिमेंट में तैनात कर दिया गया.
इसके बाद इन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में भी भाग लिया था. शायद इसके बाद इनका स्थानांतरण 18 राजपूत रेजिमेंट के लिए कर दिया गया. उपलब्ध जानकारी को सही मानें तो 9 फरवरी 1966 को हरभजन सिंह भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट में एक सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे. सन 1968 में बाबाजी 23वीं पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में तैनात थे. इसी साल 4 अक्टूबर 1968 को घोड़ों के एक काफिले को तुकु ला से डोंगचुई ले जाते समय सैनिक हरभजन सिंह का पैर फिसल गया और ये गहरी खाई में जा गिरे.
महज़ 22 साल की उम्र में हो गई थी मौत
माना जाता है कि पानी के तेज बहाव में वो लगभग 2 किलोमीटर तक दूर चले गए. शायद खाई में गिरने और नाले में बहने के कारण 22 साल की उम्र में इनकी मौत हो गई. इसके बाद सिपाहियों ने इन्हें बहुत ढूंढा, लेकिन ये कहीं नहीं मिले. फिर कुछ दिन बाद हरभजन सिंह अपने एक साथी सैनिक प्रीतम सिंह के सपने में आए और उन्हें अपनी मौत की जानकारी दी. उन्होंने सैनिक को ये भी बताया कि उनका शरीर अभी कहां है.
कथित तौर पर उनकी यूनिट ने सिपाही के बताए अनुसार खोजबीन शुरू की. आखिरकार थोड़ी मेहनत के बाद वीर सिपाही का पार्थिव शरीर ठीक उसी जगह अपनी राइफल के साथ पड़ा मिला, जहां उनके साथी सैनिक के सपने में बताया गया था. दावा किया जाता है कि सपने में बाबा हरभजन सिंह ने अपने साथी सैनिक से एक समाधि बनाने का अनुरोध किया था. ऐसे में सेना के अधिकारियों ने छोक्या छो नामक स्थान पर उनकी समाधि का निर्माण कराया. इसके बाद 11 नवंबर 1982 को एक नया मंदिर इस स्थान पर बना दिया गया.
बाबा हरभजन सिंह ‘नाथूला के हीरो’ कैसे?
बाबा हरभजन सिंह मैमोरियल मंदिर आज सिक्किम की राजधानी गंगटोक से लगभग 52 किमी दूर नाथुला और जेलेप्ला पास के बीच 13,123 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. आमतौर पर त्सोंगो झील या नाथुला पास की यात्रा के साथ इस मंदिर को शामिल किया जाता है. बाबा हरभजन सिंह को समर्पित इस मंदिर में हरभजन सिंह के जूते और बाकी सैनिक का सामान आज भी रखा है. जिसकी वहां तैनात सैनिकों द्वारा देखभाल की जाती है.
कहा जाता है कि अपनी मौत के बाद भी बाबा हरभजन सिंह अपनी ड्यूटी पर तैनात रहे. वहीं, मान्यता है कि मौत के बाद से ही उनकी आत्मा भारत-चीन बॉर्डर की निगरानी करती है. वहीं, उन्होंने अपनी तैनाती के दौरान चीन की घुसपैठ के बारे में भारतीय सैनिकों को सतर्क भी किया है. यहां तक कि भारतीय सेना ने आज भी एक सजग सैनिक के तौर पर उनकी सेवाओं को जारी रखा हुआ था. कुछ साल पहले ही वह अपने पद से रिटायर हुए हैं.