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चोरी-डकैती के लिए जेल जाने वाले ‘ऑटो टी राजा’ कैसे बने हजारों बेसहारों के मसीहा?

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जेल जाना केवल एक सज़ा नहीं बल्कि सामाजिक बहिष्कार है. जेल को सुधारगृह भी कहा जाता है लेकिन हकीकत तो ये है कि जेल की कैद काटने के बाद ना तो जेल जाने वाला व्यक्ति समाज को स्वीकार कर पाता है और ना समाज उसे. शायद ये इसलिए भी है क्योंकि ऐसे लोग समाज में घुलने की फिर से हिम्मत नहीं कर पाते लेकिन ऑटो टी राजा ने ये हिम्मत दिखाई. राजा ने बुराइयों में लिप्त होने के बाद जेल की सजा काटी लेकिन फिर ज़िंदगी में आने का अपना मकसद भी समझा और बहुत से लोगों के लिए मसीहा बन गए.

साधरण परिवार का बिगड़ा बच्चा

‘टी राजा’ एक बच्चा जिसके पिता एक साधारण से टेलीफोन लाइनमैन थे. हर मां बाप की तरह इन्होंने भी बेटे को अच्छा बनाना चाहा लेकिन नियति ने ऐसा खेल रचा कि ये बच्चा कुछ उस तरह का बनने लगा जिसे समाज राक्षस कह कर बुलाता है. बचपन से ही इसे चोरी करना, शराब पीना और जुआ खेलने आदि जैसी बुरी आदतों ने घेर लिया. बढ़ती उम्र के साथ बुरी आदतें भी बढ़ने लगीं. अपने सहपाठियों के पैसे चुराया करता जिस वजह से एक दिन इसे स्कूल से निकाल दिया गया. माता पिता इसकी इन आदतों से परेशान रहने लगे और ये माता पिता के बार बार टोकने से परेशान होने लगा. आखिरकार एक दिन टी राजा ने घर छोड़ने का मन बना लिया और आ गया चेन्नई. इस बड़े शहर में ना इसे कोई पूछने वाला था ना संभलने वाला, दो साल तक ऐसे ही सड़कों को घर मान कर सोता रहा. यहां भी पेट पालने के राजा को चोरी डकैती जैसे रास्ते अपनाने पड़े और यही रास्ते इसे जेल तक ले गए.

जेल जाना पड़ा

जेल में कुछ समय बिताने के दौरान राजा को अहसास हुआ कि उन्होंने खुद को कितना असहाय बना लिया है. इस दौरान वह खुद से ही एक जंग लड़ रहे थे. जेल जैसी गंदी जगह पर रहते हुए टी राजा खुद को इतना बेबस महसूस कर रहे थे कि अंत में इन्हें ईश्वर के आगे हाथ फैलाने पड़े. इन्होंने प्रार्थना की कि अगर ये सही सलामत यहां से बाहर निकल जाते हैं तो इसके बाद की अपनी तमाम जिंदगी ये ईमानदारी का काम करते हुए बिताएंगे. ईश्वर ने इनकी सुन ली और ये जेल से छूट गए. यहां से निकलने के बाद राजा ने फैसला किया कि अब वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए चोरी चकारी नहीं बल्कि काम करेंगे. इसके बाद इन्होंने शादी कर ली.  शरीर से हाष्ट पुष्ट और लंबे चौड़े दिखने वाले राजा ने पहले बॉडीगार्ड के रूप में काम किया. फिर माता पिता से कुछ पैसे उधार लेकर इन्होंने एक ऑटो खरीदी तथा उसे चलाना शुरू कर दिया. ऑटो चलाने के बाद ही इनका नाम टी राजा से ऑटो टी राजा हो गया.

दूसरों का दर्द महसूस करने पर मिला रास्ता

ऑटो चलाने के दौरान ऑटो राजा को शहर भर में घूमना होता था. इसी दौरान इन्होंने सड़क किनारे बेसुध पड़े एक व्यक्ति को देखा, जिसके तन पर एक कपड़ा तक नहीं था. वह व्यक्ति अंतिम सांसें गिन रहा था. यही वो क्षण था जिसने टी राजा की जिंदगी का मकसद ही बदल दिया. उन्होंने सोच लिया कि अब वह जरूरतमंदों की मदद करेंगे. हालांकि जिस स्थिति में राजा तब थे वहां से ऐसा कोई भी फैसला लेना आसान नहीं था लेकिन फिर भी संसाधनों और पैसों की कमी के बावजूद जरूरतमंदों की सेवा में लग गए. समय के साथ राजा के मन में सेवा की भावना बढ़ती रही और 1997 में इन्होंने अपने घर के सामने एक छोटी सी जगह में “न्यू आर्क मिशन ऑफ इंडिया” की स्थापना की.

बेसहारों की मदद को बनाया अपने जीवन का लक्ष्य

अपनी इस संस्था के द्वारा राजा सड़कों पर रह रहे लोगों की सेवा करने लगे. वो लड़का जो कभी अपनी आदतों से हर किसी को दुखी करता था, मार पीट, चोरी डकैती, शराब और जुए जैसी बुरी आदतों से घिरा हुआ था वह आज दूसरों को सहारा देने लगा था. राजा अपने ऑटो से सड़कों पर ज़िंदगी बिताने को मजबूर लोगों को अपने घर ले जाने लगे. वह उनके जख्मों को साफ करते, उन्हें नहला धुला कर खाना खिलाते. ऐसा नेक काम करने के बावजूद राजा अपने मां बाप की नजरों में अच्छे नहीं बन पाए थे. बल्कि उल्टा उन्हें पागल समझ बुरा भला कहा जाने लगा. पड़ोसी भी इन पर ताने कसते थे लेकिन राजा को इन सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता था. उन्हें इस नेक काम में अपनी पत्नी का साथ मिल चुका था और वह इसी में बहुत खुश थे. समय के साथ कई अन्य लोग इनकी इस मुहिम में सहयोग करने के लिए आगे आए. कई लोगों ने मदद की पेशकश की, कई लोगों ने इन मज़बूर लोगों को खिलाने के लिए पैसे दान किए और कुछ ने उनके इलाज व देखभाल की व्यवस्था की.

और फिर हजारों लोगों का सहारा बन गए राजा

राजा को जरूरतमंदों और बेसहारा लोगों की मदद करते हुए 20 साल से भी ज़्यादा हो चुके हैं. समय के साथ जब खर्च बढ़ा तो कई लोग मदद के लिए आगे आने लगे. इसके बाद राजा ने ‘होम फॉर होप’ की नींव रखी. इस संस्था की स्थापना के बाद तो जैसे टी राजा को पंख मिल गए. आज के समय में राजा की इस संस्था में एक डॉक्टर, साइकेट्रिस्ट और आठ नर्सें हैं जो हमेशा जरूरतमंदों का ख्याल रखते हैं. होम फॉर होप में अभी 800 से ज़्यादा लोग रह रहे हैं जिसमें लगभग 100 अनाथ बच्चे हैं. जरूरतमंदों की दवा और खाने पीने की व्यवस्था के साथ साथ राजा इन बच्चों की परवरिश भी बहुत अच्छे से कर रहे हैं. वह इन्हें स्कूल भेजते हैं और पढ़ाई के लिए प्रेरित करते हैं जिससे कि इनका भविष्य अंधकार में ना डूबे. बता दें कि अभी तक होम फॉर होप 11000 से ज़्यादा लोगों की मदद कर चुकी है. ऑटो टी राजा को उनके इस नेक काम के लिए एनडीटीवी मैन ऑफ द ईयर और सीएनएन-आईबीएन रियल हीरोज जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जा चुका है. हालांकि इन्हें लोगों की दुआओं के रूप में जो पुरस्कार मिल रहे हैं उनका मुकाबला दुनिया का कोई अन्य पुरस्कार नहीं कर सकता.

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