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गुलाब के पौधे! धीरज की कलम से निकली वैलेंटाइन डे की कहानी

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“हैप्पी रोज़ डे हीरो” कॉलेज की पार्क के बीचों बीच अपनी असाइनमेंट फाइल पर झुके विनीत के सर पर एक गुलदस्ते से मारते हुए श्रेया ने कहा था.

“अरे वाह, सेम टू यू मेरी जान.” विनीत की नजरें अब फाइल से हट कर गुलदस्ते पर जा टिकी थीं.

“सेम टू यू से काम नहीं चलेगा. बताओ मेरा रोज़ कहां है?” श्रेया ने विनीत के चारों तरफ नजर घुमाते हुए कहा था.

विनीत जानता था कि कोई बहाना नहीं काम आने वाला इसीलिए उसने सच बोलना ही सही समझा. उसने श्रेया का हाथ पकड़ कर उसे नर्म घास पर बिठाते हुए कहा “जाना, मैं सच में भूल गया था. ये फाइल बनाने की टेंशन में सच में मुझे याद नहीं रहा.”

“हां हां, अब तुम्हें कहां याद रहेगा, मैं पुरानी जो हो गई हूं. ऊपर से मैं तुम्हें आसानी से मिल गई थी इसीलिए कद्र नहीं तुम्हें.” वैसे ये डायलॉग विनीत का था लेकिन मौका देख कर आज श्रेया ने इस पर अपना हक़ जमा लिया. ऐसा नहीं कि विनीत सच में ऐसा सोचता था बस वो भूल गया था और ये बात श्रेया भी जानती थी इसीलिए उसने मज़ाक में कहा था. मगर सच तो ये था कि श्रेया को थोड़ा बुरा तो ज़रूर लगा था. लगे भी कैसे न ये चौथा साल था उनके प्यार का. क्लास में सबसे पहले लव बर्ड यही दोनों तो थे. ये कॉलेज का तीसरा दिन था जब दोनों ने एक दूसरे को गौर से देखा और देखते ही देखते एक हो गए. न विनीत को ज़्यादा मेहनत करनी पड़ी न श्रेया ने ज़्यादा नखरे दिखाए. ऐसा लगा मानों दोनों ने खुद को सालों तक एक दूसरे के लिए ही संभाले रखा था.

अच्छी बात ये थी कि दोनों प्यार में थे मगर सनक में नहीं. दोनों होशियार थे, बात और हालात दोनों को समझते थे, एक दूसरे के सामने ऐसे होते जैसे इंसान आईने के आगे. दोनों को एक दूसरे से सीखने को भी बहुत मिलता था, इसका कारण था कि दोनों बेमेल थे. जो बात विनीत को पसंद होती वो श्रेया को नहीं और जो श्रेया को होती वो विनीत को नहीं. मगर इस पर दोनों झगड़ने की बजाए उस नापसंद के साथ अडजेस्ट करना, उसे समझना शुरू कर देते. इस तरह वो जान पाते कि जिसे वो सालों से नापसंद कर रहे थे उसे भी पसंद करने की वजह हो सकती है. खैर कुल मिला कर उनका प्यार उनकी उम्र और तजुर्बे से काफी बड़ा था.

दोनों लड़ते भी थे लेकिन अलग कभी नहीं होते थे. उन्होंने इन चार सालों के दौरान कॉलेज में रहते हुए अपना फ्री टाइम कभी अकेले नहीं बिताया, भले वो एक दूसरे से कितना भी नाराज़ हों. प्यार में नाराज़गी अंचार में खटास की तरह है. आप अंचार को बिना खटास के सोच ही नहीं सकते और कहीं खटास ज्यादा हो गई तब भी बेकार. इसीलिए बहुत संतुलित रखना पड़ता है नाराज़गी को. अब उसी दिन का देख लीजिए श्रेया के पास नाराज़ होने का अच्छा खासा मौका था लेकिन वो चाह कर भी नहीं हो पाई.

“तुम्हारे दिमाग में भी फालतू बातों की घास उगती रहती है. ऐसा कुछ नहीं है. मैं बस भूल गया था. वैसे भी यार हर साल एक ही बात को दोहराने में मज़ा नहीं आता और फिर नया किया भी क्या जाए.” विनीत थोड़ा रुड होते हुए बोला.

“ठीक है फिर इस बार से हम लोग अपना अपना बर्थडे भी नहीं मनाएंगे. वो भी तो साल में एक बार आता है. तुम एनिवर्सरी पर भी मुझे विश ना करना, ओके.” अपने फूलों के गुलदस्ते को विनीत की फाइलों पर पटकते हुए श्रेया उठ कड़ी हुई.

“अरे यार वो अलग बात है. सुनों तो.” विनीत ने जल्दी जल्दी सारा सामान समेटा और पांव पटकते जा रही श्रेया के पीछे पीछे चल दिया लेकिन आखिरकार उसे रुकना ही पड़ा क्योंकि श्रेया गर्ल्स रेस्टरूम में घुस चुकी थी. कुछ देर इंतजार करने के बाद विनीत ये सोच कर क्लास रूम की ओर बढ़ चला कि श्रेया आखिर आएगी तो वहीं.

दिन गुज़र रहा था मगर श्रेया मानने को तैयार ही नहीं थी. एक तरफ जहां सारे कपल्स अपने इस वेलेंटाइन वीक की शुरुआत पर प्यार से भरे थे वहीं श्रेया का चेहरा गुस्से से तमतमाया था. उसे गुस्सा विनीत के भूलने पर नहीं आरहा था, उसके गुस्से का कारण था विनीत का रूखा और बेतुका सा जवाब. विनीत को सबसे ज्यादा डर श्रेया की उदासी से लगता था. उसका चेहरा उदासी में किसी बंजर ज़मीन सा लगता जिसे आंसुओं की बूंदें तक ना नसीब होतीं. वो एक दम गुमसुम हो जाया करती थी. विनीत उसके उजाड़ बंजर चेहरे पर मुस्कान के फूल खिलाने की हर संभव कोशिश कर चुका था लेकिन यहां तो जैसे ज़मीन ने फिर से लहलहाने का खयाल ही मन से निकाल दिया था. प्रेम के इस भाग में प्रेमी किसान हो जाता है. फसल की कोई उम्मीद न देख मायूस विनीत क्लास रूम से उठ कर चला गया.

वेलेंटाइन वीक की शुरुआत और ये रोज़ डे रोज के डे से भी बुरा रहा. श्रेया के दिमाग में तरह तरह की बातें आ रही थीं. वो सोच रही थी कि जब विनीत चार साल में ही कह रहा है कि क्या नया किया जाए तो फिर आगे तो इसे सब और बोर लगने लगेगा. वो खुद ही से सवाल कर खुद को ही जवाब दे रही थी. इस उपापोह में कॉलेज का पूरा दिन बीत गया था. श्रेया ने हल्का सा नज़र घुमा कर विनीत की सीट की तरफ देखा लेकिन वो वहां नहीं था. विनीत तब से वापस क्लास में लौटा ही नहीं था. वो ऐसे नहीं करता था. श्रेया के नाराज़ होने पर वो तब तक मनाता था जब तक वो मान ना जाती.

अकसर इंसान प्यार में इसलिए ही रूठता है कि उसे मनाया जाए. विनीत आज बदला सा लग रहा था. श्रेया भी क्लास से निकल गई उसने पूरे कैम्पस में देखा मगर विनीत उसे कहीं नज़र नहीं आया. श्रेया बेचैन सी होने लगी क्योंकि विनीत इस तरह कभी नहीं करता था. उसने उसके दोस्तों से भी पूछा मगर किसी को नहीं पता था विनीत कहा गया है. कॉलेज से छुट्टी का टाइम हो गया था. बेल बज गई सारे बच्चे एक एक कर कैम्पस से निकलते रहे मगर विनीत उनमें दिखाई न दिया. हार कर श्रेया भी ये सोचते हुए घर की तरफ चल पड़ी कि वो घर जा कर फिर विनीत के यहां जाएगी.

बहुत तरह की उलझनें और सवाल लिए श्रेया घर पहुंची. श्रेया के पापा को गार्डनिंग का शौक था तो उन्होंने अपने घर के पिछले हिस्से में एक छोटा सा गार्डन बनाया था. बिना किसी से बात किए श्रेया अपने कमरे की तरफ चलती चली गई. उसका कमरा भी घर के पिछले हिस्से में ठीक उस छोटे से गर्दन के सामने था. उसे देखते ही अमरुद की टहनी से लटके पिंजरे में से टुटु बोला “श्रेया श्रेया.” टुटु उसका तोता था. उसने एक नज़र गार्डन की तरफ घुमाई मगर हमेशा की तरह उसने टुटु का जवाब नहीं दिया. श्रेया कुछ सोच ही रही थी कि उसे अहसास हुआ गार्डन में कुछ बदला बदला है. उसने फिर से गार्डन में देखा वहां एक लाइन से लाइन से गुलाब के चार पौधे लगे थे. ये पहले यहां नहीं थे.

“मम्मी, ये नए पौधे किसने लगाए हैं?” श्रेया अपने कमरे के दरवाजे से मुड़ी और मम्मी के कमरे की तरफ भागी.

“अरे तू ने ही तो भेजा था अपने दोस्त को. बता रहा था तुम लोगों को कोई टास्क मिला है. तेरी कॉपी भी रख गया है. वो सामने टेबल पर पड़ी है. खाना दूं ?” वो कॉपी ठीक पापा के सामने पड़ी थी. श्रेया पूरी बात भले नहीं समझी हो मगर इतना तो समझ गई थी कि उसका वो दोस्त विनीत ही था और उसने पक्का इस कॉपी में कुछ रखा होगा. उस ‘कुछ’ वाली कॉपी को पापा के सामने देख कर श्रेया हड़बड़ा गई.

“न न, नहीं भूख नहीं है.” इतना कह कर श्रेया कॉपी उठाने आगे बढ़ी.

“अरे बेटी थोड़ा खा लो कुछ.” पापा ने अपनी फाइलों से नज़र उठाते हुए कहा. इतनी देर में श्रेया ने कॉपी उठा ली थी.

“न न, नहीं पापा ज़रा भी मन नहीं.” श्रेया एक दम घबरा गई थी. ठंड के मौसम में भी उसके माथे पर पसीना था.

“बेटा ठीक तो हो. और ये पसीना क्यों…” पापा की बात पूरी होने से पहले ही श्रेया अपनी कमरे की तरफ भाग गई.

उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और धड़कते दिल के साथ कॉपी खोली. कॉपी खोलने के बाद कुछ पन्ने पलटते ही श्रेया ने देखा कि वहां कुछ पन्नों पर गुलाब की कटिंग्स लगाई हुई हैं और उसके आगे कुछ लिखा है. श्रेया को ये चिंता भी थी कि अगर ये सब पापा देख लेते तो क्या होता, लेकिन इस चिंता से ज़्यादा उसे वो लिखा हुआ पढ़ने की बेचैनी थी. उसने पढना शुरू किया.

प्यारी श्रेया

मैंने आज बहुत गलत बात कही. हालांकि मेरी इस बात के पीछे कोई मतलब नहीं था लेकिन जिस तरह और जिस समय में ये कही गई वो बिलकुल सही नहीं था. इसके बाद मैंने सोचा कि हम अपने बर्थडे से ज़्यादा अपने किसी प्रिय का बर्थडे सोच कर उत्सुक होते हैं, क्योंकि हमें उस खास दिन उसे खुश करना होता है. उसकी ख़ुशी में अपनी जीत ढूंढनी होती है. मैं जो हर वक़्त तुम्हारी ख़ुशी चाहता हूं वो भला ऐसा कैसे सोच सकता है. मुझे सच में याद रखना चाहिए था ये खास दिन. कुछ नया न सही बस पहले की तरह तुम्हें गुलाब दे देता तो भी सब सही रहता. और यकीन मानों जब हम पहले जैसा कुछ करते हैं तो उसमें कुछ न कुछ नया अपने आप हो जाता है.

अब जैसे देखो न मैं तुम्हारे लिए गुलाबों का एक गुच्छा लेने गया था लेकिन मैंने वहां जा कर सोचा कि ये गुलाब सूख जाएंगे. तुम्हें छुपाने पड़ेंगे. गुलाब देख कर लोग भले कुछ न कहें लेकिन सूखे गुलाब अपने आप ही बहुत कुछ कह जाते हैं. तुम्हारी मम्मी उन्हें देख सकती थीं. तुमसे बेकार के सवाल हो सकते थे इसीलिए मैंने सोचा कि क्यों न मैं कुछ ऐसा करूं कि जो बे रोक-टोक हमेशा तुम्हारे सामने रहे.

श्रेया हमारे प्यार को चार साल हुए हैं इसीलिए मैंने आज के दिन गुलाब के चार पौधे लगाए हैं. ये हमेशा तुम्हारे सामने रहेंगे. तुम जब सुबह उठोगी तो इन गुलाबों को छू कर आने वाली हवा खुशबू बन कर तुम्हारी साँसों में समाएगी, तुम्हारे माथे को चूमते हुए याद दिलाएगी कि कोई दीवाना है जो तुम्हारा इंतजार कर रहा है. मैंने खुद से इस वादे के साथ ये चार पौधे लगाये हैं कि मैं हर साल एक पौधा लगाऊंगा और एक वक़्त होगा जब हम अपने इन्हीं गुलाब के पौधों से भरे खेत में खड़े हो कर एक दूसरे को गले लगाएंगे.

मैंने दिल दुखाया है तुम्हारा इसकी भरपाई तो नहीं कर सकता लेकिन मैं ये वादा कर सकता हूं कि आज के बाद मैं कभी इस तरह से दिल नहीं दुखाऊंगा तुम्हारा…मेरी जिंदगी में खुशबू फ़ैलाने वाले इस गुलाब को गुलाब डे मुबारक.

सिर्फ तुम्हारा

विनीत

श्रेया के बंजर चेहरे पर ख़ुशी के आंसुओं की बरसात हो चुकी थी, चेहरा मुस्कान की फसल से लहलहा चुका था. गुलाबों का ये दिन प्यार की खुशबू से महक उठा था ।

फिरदोबारा से

धीरज झा

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