GW Originals

अब मैं चॉकलेट खाती हूं! धीरज झा की कलम से निकली वैलेंटाइन डे की कहानी

Published

on

उसकी और उसके चॉकलेट वाले की कहानी

‘चॉकलेट’ भला किसे पसंद नहीं होता ये स्वाद. हम लड़कियां तो पागल होती हैं इसके लिए. एक चॉकलेट हमारे आंसू रोक देता है, चेहरे पर मुस्कान ला देती है. मीठा सा ये स्वाद ‘आह’ यही तो ज़िंदगी है. मगर मुझे नहीं पसंद थी, बिलकुल भी नहीं. इसे देखते ही सिर नाचने लगता था, नाक में शराब की गंध चढ़ने लगती, शरीर में एक साथ हज़ारों मधुमक्खियों का डंक महसूस होता. मन करता चिल्ला दूं चॉकलेट देख कर. मेरी उम्र की लड़कियां कॉकरोच, चूहों, छिपकली से डरती थीं और मुझे डर लगता था इस चॉकलेट से.

उसे भला कहां पता था कि मुझे चॉकलेट पसंद नहीं. वो तो आता और रोज़ मेरी डेस्क पर एक चॉकलेट इस उम्मीद में रख जाता कि मैं उसे देख कर मन ही मन खुश हो जाऊंगी. मैंने किसी से नहीं कहा था कि मुझे चॉकलेट पसंद नहीं. सब पूछने लगते थे ना, कि ‘चॉकलेट नहीं पसंद? पर क्यों ?’

अब इस क्यों का जवाब मैं किस किस को देती. इसीलिए मैं सारे चॉकलेट रख लेती और उमा की बेटी को दे देती थी. उसने तो मेरा नाम ही चॉकलेट दीदी रख दिया था. उसे क्या पता ये कमाल तो किसी चॉकलेट भइया का है. हालांकि, उसे यही लगता रहा कि उसके सारे चॉकलेट मैं ही खाती हूं. तीन साल तक ये सिलसिला चला, बिना रुके. छुट्टी से एक दिन पहले दो चॉकलेट रखता. लंबी छुट्टियों में तो एक एक पैकेट रख जाता था.

शुरू में गुस्सा आया, बहुत गुस्सा. मन हुआ ज़ोर से चिल्ला कर पूछूं ये हरकत किसकी है. लेकिन फिर किसे क्या बताती कि कोई भला मानस हर रोज़ मुझे चॉकलेट देता है मैं इसलिए गुस्सा हूं? तीन साल में ना मैंने जानने की कोशिश की और ना उसने खुद सामने आ कर कहा कि ये मैं ही हूं जो तुम्हारे लिए चॉकलेट रखता हूं.

तीन सालों में बिना परपोज़, प्रॉमिस, किस, हग के वो सिर्फ चॉकलेट डे ही मनाता रहा. अब तो कभी कभी मुस्कुराने का दिल कर देता था. एक दिन मुस्कुरा भी दी तो अगले दिन चॉकलेट के साथ एक छोटा सा कार्ड मिला. जिस पर लिखा था ‘थैंक्यू’ बस इतना ही. मतलब वो देखता है मुझे, हर समय.

कितना धैर्य है उसमें तीन साल तक वो बस मुझे इस उम्मीद में चॉकलेट देता रहा कि मैं कभी तो मुस्कुराउंगी।कॉलेज के आखिरी दिन तक चॉकलेट मिला मुझे उसका. अब भला कैसे देता मुझे चॉकलेट. अब तो कोई चांस ही नहीं था. मगर ये शख्स सच में किसी पहेली से कम नहीं था. मुझे चॉकलेट मिलते रहे. कभी घर के बाहर, कभी ऑफिस के रस्ते में कभी गार्डन की बेंच पर. हां अब ये सिलसिला रेगुलर नहीं था मगर चल ज़रूर रहा था.

मुझे डरना चाहिए था ये सोच कर कि कोई मेरा पीछा कर रहा है, मगर मुझमें तो उल्टा हिम्मत आ गयी थी. अब ना मुझे चॉकलेट से डर लगता था और ना ही किसी इंसान से. मुझ में एक विश्वास आ गया था कि हर समय वो मेरे साथ है. हालांकि, चॉकलेट मैं अभी भी खा नहीं पाती थी, अभी तक ये सब उमा की बेटी के हिस्से ही जाती थीं.

कोई रिश्ता आया था मेरे लिए. घरवालों के हिसाब से अच्छा रिश्ता था इसलिए उन्होंने अब शादी की ज़िद्द पकड़ ली. मैं अब और मना भी तो नहीं कर सकती थी. पढ़ाई, जॉब, करियर सब बहाने अब खत्म हो गये थे. सो मैं कुछ ना बोली और कुछ ना बोलने को यहां हां ही माना जाता है. लड़के की तस्वीर देखी थी.

अच्छा लगा था मुझे. वैसे भी मैं बहुत नीरस किस्म की हूं, किसी चीज़ में पसंद ना पसंद ज़्यादा नहीं देखती । घर वालों ने कह दिया तो मैंने भी कहा ‘जैसा आपको ठीक लगे’. बचपन में बहुत चंचल थी, जब तक चॉकलेट खाती थी. जब से चॉकलेट का डर शुरू हुआ तब से ज़िंदगी से मिठास गायब ही हो गयी.

यकीन तो नहीं होता मगर इस गुमनाम चॉकलेट वाले की वजह से अब मिठास लौट रही थी. अब मन में ये चाहत उठने लगी थी कि उसे सामने देखूं, उसे छू लूं, उसका हाथ पकड़ कर शुक्रिया कहूं. मगर वो तो खुशी की तरह था बस महसूस होता था. शादी की तैयारियों के बीच भी उसकी चॉकलेट मुझे मिल जाया करती थीं.

कोई वादा नहीं था, कोई इज़हार नहीं, कोई प्यार नहीं फिर भी ना जाने क्यों उसकी चॉकलेट मुझे ये अहसास करा रही थी कि मैं धोखा कर रही हूं. मगर मैं करती भी क्या? शादी की रात आ गयी थी. हर कोई खुश था लेकिन मैं फिर से डरी हुई थी. वो चॉकलेट, वो शराब की गंध, वो गंदी सी छुअन सब ताज़ा हो गया था. उस बूढ़े शख्स को देख कर. वो अब पैरों पर नहीं था. मगर उसका मेरे सामने होना ही मुझे डराने के लिए काफी था.

मैं चक्कर खा के गिर ही पड़ती तभी मैंने अपने सामने चॉकलेट को मुस्कुराते देखा. जैसे कह रही हो ‘डरो मत, मैं यहीं हूं.’ मैंने बड़ी बेचैनी से अपनी नज़रें चारों तरफ घुमाईं मगर कोई चेहरा उतना भरोसेमंद नहीं दिखा. शादी हो गयी. जिसकी मैं हो चुकी थी वो शख्स भी बहुत अच्छा था. शायद उम्मीद ना लगाओ तो ज़िंदगी आपको अच्छा ही देती है. बहुत कुछ बुरा तो हमारी ये उम्मीदें कर देती हैं. अब डर नहीं लगता था, उनसे हिम्मत मिलती थी मुझे.

अपने अतीत का हर पन्ना उनके सामने खोल दिया था मैंने और उन्होंने हर पन्ने को पलटने के लिए अपनी ज़ुबान से उंगली सटा कर मुझे सहलाया था. आप चॉकलेट के बारे में सोच रहे हैं ना?

जी वो अभी भी मिलती है मुझे. उमा की बेटी बड़ी हो गयी है लेकिन मेरे चॉकलेट अभी भी उसे याद हैं. लेकिन अब वो मेरे पास नहीं होती तो मैं अब इन्हें इकट्ठा करती हूं और फिर दूसरे बच्चों में बांट आती हूं. अब मेरे दो बच्चे हैं. ज़िंदगी बहुत खुशहाल है. इतनी खुशहाल कि डर मेरे आसपास भी नहीं फटक पाता.

अब तो ये जानने की इच्छा भी नहीं रही कि ये चॉकलेट कौन भेजता है. शायद इन खुशियों ने मुझे मतलबी कर दिया है, या फिर मुझे ये छुपा हुआ अनजान रिश्ता ही पसंद आने लगा है. ख़ैर वक्त बीत रहा है तेज़ी से. ऐसा लग रहा है मानो कोई फिल्म चल रही है. देखते देखते बच्चे बड़े हो गये उनकी शादियां भी हो गयीं.

अब निश्चिंत हूं. जिस तरह शुरू हुई थी ज़िंदगी उससे बहुत बेहतर अंत होगा इसका. उस चॉकलेट ब्वॉय के बाद सबसे ज़्यादा शुक्रगुज़ार हूं मैं इनकी. जिन्होंने ने मुझे मेरी उम्मीदों से बहुत ज़्यादा दिया. जो दोस्त प्रेमी पिता पति सब बने. लेकिन साथ अब यहीं तक था. वो अचानक से बीमार हुए और फिर एक दिन अचानक से चले गये, हमेशा के लिए. मैं आज बहुत रोना चाहती थी. शायद उनसे कभी खुल कर कह नहीं पाई लेकिन उनसे बहुत प्यार था मुझे. मैं आज अपने अंदर का सैलाब बाहर निकाल देती उससे पहले ही मुझे चॉकलेट मिल गयी.

मेरे सामने पड़ी वो चॉकलेट मुझे दिलासे दे रही थी. मानो जैसे उस चॉकलेट ब्वॉय की तरफ से कह रही हो कि जैसे मैं साथ ना हो कर भी तुम्हारे साथ हूं हमेशा, वैसे ही ये भी तुम्हारे साथ रहेंगे, हमेशा. मैं मुस्कुरा तो ना सकी मगर मेरे आंसू थम गये. उनके बाद ये चॉकलेट ही मेरा सहारा थी. लेकिन सहारे के दम पर ज़िंदगी की गाड़ी भला कितनी देर चलती. उनके जाने के साल भर बाद से ही तबियत खराब रहने लगी.

देखते-देखते बिस्तर से चिपक गयी. अब भला यहां तक चॉकलेट कैसे पहुंती. मैंने सोच लिया कि अब आंखें मूंदने में ही भलाई है. मैं हार चुकी थी. ज़िंदगी तो अभी बहुत बची है मगर अब जीने की चाहत नहीं रही. चुप रहने वालों के साथ यही सबसे बड़ी दिक्कत है कि वे जब टूटते हैं तो किसी से संभाले भी नहीं जाते.

मैं अब हमेशा के लिए सो जाना चाहती थी, मगर कहा ना चाहने से क्या होता है. मेरे हाथ में किसी ने चॉकलेट रख दी. पहले मैंने चॉकलेट को देखा फिर उन चॉकलेट पकड़ाने वाले हाथों को. वो हाथ तो मेरे बेटे के थे. वो मुस्कुरा रहा था. मैं हैरान थी. मैं कुछ बोलना चाहती थी, बहुत से जवाब चाहिए थे. मुझे मगर उसने चुप रहने का इशारा करते हुए एक चिट्ठी थमा दी. अपना चश्मा लगा कर मैंने चिट्ठी को पढ़ना शुरू किया.

प्यारी अन्नू,

लोग कहते हैं इंसान को उसके सोचे मुताबिक कभी नहीं मिलता लेकिन मैं अपवाद साबित हुआ. ऐसा लगा जैसे मेरी किस्मत लिखने वाली कलम ईश्वर ने खुद मेरे हाथों में थमा दी हो. मैं अपने जीवन को जैसा चाहता था मैंने वैसा ही लिखा. वो तुम्हारे कॉलेज का पहला दिन था जब मैंने तुम्हें देखा था. तुम्हें शायद पता भी ना हो कि मैं तुम्हारे कॉलेज में कभी था भी. सिर्फ एक महीने के लिए था मैं वहां फिर मैंने कॉलेज बदल लिया.

लेकिन वो एक महीना ही मेरी ज़िंदगी का मकसद दिखा गया. पहले दिन तुम्हारी सीट पर ये सोच कर चॉकलेट रखी थी कि तुम इसे देख कर खुश होगी या फिर गुस्सा करोगी, जो भी हो लेकिन मुझे खोजोगी ज़रूर.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मगर मैंने हार नहीं मानी. कॉलेज छोड़ने के बाद भी मैं हर रोज़ पहले तुम्हारे कॉलेज आता फिर अपने कॉलेज जाता. कुछ समय बाद ही ये समझ आ गया कि बात तुम्हारी मोहब्बत से उठ कर तुम्हें ये अहसास दिलाने पर आ गयी है कि तुम डरो मत, मैं हर जगह तुम्हारे साथ हूं. तीन साल लगे थे.

तुम्हें उस चॉकलेट को देख कर मुस्कुराने में. मैंने पहली बार ये नोटिस किया था कि मुस्कुराते हुए तुम सुकून सी लगती हो. तुम्हें पलक झपकाए बिना घंटों देखते रहने का मन करता है. एक बार को सोचा था कि ज़िंदगी भर ऐसे ही रहेंगे. तुम्हें पाने की कोई लालसा नहीं थी. मगर फिर ये मन। यही सारे फसाद की जड़ होता है.

ख़्वाब पलने लगे तुम्हारे साथ होने के. मैंने सोचा एक कोशिश तो कर ही सकते हैं. मेहनत की मैंने, खुद को इस काबिल बनाया कि तुम्हारे घर रिश्ता भेजूं तो उसे नकारा ना जाए. हालांकि, ये अंधेरे में तीर मारने जैसा था. मगर कहा ना ईश्वर ने किस्मत लिखने वाली कलम मेरे ही हाथों में थमा दी थी. मैंने सोचा कि शादी की पहली रात को ही तुम्हें सच बता दूं लेकिन जब कमरे में आया तो तुम मंडप पर मिले चॉकलेट को किसी बच्चे की तरह हाथों में दबाए चैन से सो रही थी. मैं समझ गया कि मेरा ये सच तुम्हारी सबसे बड़ी हिम्मत और खुशी को छीन लेगा.

उस दिन मैंने फैसला किया कि ये सब ऐसे ही चलता रहेगा. मैं जा रहा था तब भी मन डोला. मन हुआ कि तुम्हें बता दूं मगर तुम्हारा सफर अभी बाक़ी था अन्नु . इसीलिए ये ज़िम्मेदारी मैं रोहन को सौंप गया और कहा कि तुम जब तक रहो तब तक ये सिलसिला चलता रहे . आज जब तुम ये चिट्ठी पढ़ रही होगी तब ज़रूर तुम्हारी स्थिति ठीक नहीं होगी. मैं जानता हूं तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो, अब तो इस चॉकलेट वाले से भी ज़्यादा.

इसीलिए मेरे बाद तुम अपना ध्यान नहीं रखोगी. मगर मैं चाहता हूं कि तुम उठो और उसी हिम्मत से फिर लड़ो जैसे तुम पहले लड़ी थी. तुम्हें अभी और बहुत कुछ देखना है. अब ये चॉकलेट खा लेना. देखना अच्छा लगेगा.

तुम्हारा

चॉकलेट वाला

मेरी आंखें धुंधली पड़ चुकी थीं, दिल की धड़कन तेज़ हो गयी थी, मानों जैसे मैंने समंदर के दो किनारों को एक कर दिया हो. मैं हवा में उड़ रही थी. मेरा बेटा मुझे देख मुस्कुरा रहा था और मैं अपनी खुशी को संभालने की नाकाम कोशिश कर रही थी. मैं इतनी खास थी कि कोई शख्स अपनी सारी ज़िंदगी मेरे नाम कर गया था.

उस दिन मैं फिर से जी उठी थी. चॉकलेट अब भी मिलती रहती है, हर रोज़. जानती हूं अब ये चॉकलेट बेटा रखता है लेकिन मेरे लिए तो अब भी ये उन्हीं की दी खुशी है, और हां अब तो मैं इसे खा भी लेती हूं. शराब की गंध नहीं बल्कि उनकी खुश्बू आती है इसमें से. मधुमक्खियों का डंक नहीं बल्कि उनकी छुअन का मीठा सा अहसास होता है. मैं अपना वो बचपन इनकी वजह से फिर जी रही हूं जो किसी के कारण मैंने गंवा दिया था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Trending

Exit mobile version