जीन (Gene) और Genome (जीनोम) आपको सुनने में एक ही तरह के शब्द लगते हैं, लेकिन इनमें बहुत अंतर है. जहां जीन DNA का एक खंड है, वहीं जीनोम किसी जीव की संपूर्ण आनुवंशिक संरचना है. जीनोम के सीक्वेंसिंग के बाद उसके सारे डेटा का अध्ययन किया जाता है जिसे साइंस की भाषा में Genome Informatics कहते हैं.
हेल्थ एक्सपर्ट बताते हैं कि मानव स्वास्थ्य से जुड़े 30 प्रतिशत मामलों में आनुवंशिकता ज़िम्मेदार होती है, लेकिन बीमारियों की रोकथाम और मरीज़ों की देखभाल के लिए इसकी जानकरी का इस्तेमाल न के बराबर होता है.
ध्यान देने वाली बात यह कि हर व्यक्ति में 40-50 लाख जेनेटिक वैरिएंट होते हैं और हर वैरिएंट का हमारी हेल्थ से जुड़े लक्षणों पर अलग-अलग असर पड़ता है. जीनोम सीक्वेंस के डेटा का इस्तेमाल हेल्थकेयर के साथ-साथ एग्रीकल्चर के क्षेत्र में भी किया जा सकता है. हालांकि, इस डेटा को सही तरीके से पढ़ना, समझना, और इसका विश्लेषण करना अब भी एक चुनौती है. Genome Informatics कैसे हमारी हेल्थ और लाइफस्टाइल को प्रभावित करता है, इसे आसान भाषा में समझने के लिए हमने इसके एक्सपर्ट अमित सिन्हा से खास बातचीत की.
Genome Informatics से पहले जानते हैं अमित सिन्हा कौन हैं?
बिहार की राजधानी पटना से संबंध रखने वाले अमित सिन्हा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई डॉन बॉस्को से की. IIT Guwahati से इंजीयरिंग करने के बाद वह पहले यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी में पढ़े और फिर Harvard Medical School से अपनी PhD पूरी की. अमित सिन्हा ने 2002 में आईआईटी बॉम्बे में इंटर्नशिप करते हुए अपने करियर की शुरुआत की. 2004 में इन्होंने सिनसिनाटी चिल्ड्रन हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर में रिसर्च असिस्टेंट के रूप में अपनी सेवाएं दीं. अमित 2008 के दौरान Harvard Medical School में इंस्ट्रक्टर भी रहे. इस सफर के दौरान इनके दिमाग में एक आईडी ने जन्म लिया और इसको इन्होंने नाम दिया Basepair.
Basepair क्या है, Genome Informatics से इसका क्या कनेक्शन?
आसान भाषा में समझें तो Basepair एक प्लेटफॉर्म है, जिसकी मदद से जीनोम के सीक्वेंसिंग के बाद उसके डेटा का अध्ययन किया जाता है। यह Genome Informatics को आसान बनाने की दिशा में काम कर रहा है. Basepair की जरूरत क्यों पड़ीं? इस सवाल के जवाब में सिन्हा ने कहा, “जब मैं जीनोमिक्स में काम कर रहा था तब मैंने पाया कि पूरा डेटा जेनरेशन या एक्सपेरिमेंट तो फिजिशियन साइंटिस्ट या बायलॉजिस्ट करते हैं, लेकिन उनको प्रोग्रामिंग में अक्सर दिक्कत आती है. उनकी ट्रेनिंग में प्रोग्रामिंग, डाटा, एनालिसिस ये सब नहीं आता”
”परिणाम स्वरूप वे हमारे जैसे लोगों के साथ काम करते हैं. बिल्कुल वैसे ही जैसे कि वो कोई एक्सपेरिमेंट या किसी पेशेंट से डाटा कलेक्ट करते हैं, फिर हमें भेजते हैं. हम जितना समझ पाते हैं उस हिसाब से उसमें बदलाव करते हैं. फिर डेटा उनके पास जाता है और वे फिर दोबारा से किसी बदलाब के लिए हमारे पास भेजते हैं”
”ऐसी प्रक्रिया में बहुत समय लगता है. इसी को देखते हुए मुझे लगा कि एक ऐसा सिंपल सॉफ्टवेयर बनाया जाना चाहिए जो कॉम्प्लेक्स एनालिसिस को सिंपल कर दे. जिसको प्रोग्रामिंग या डाटा एनालिसिस नहीं आता वो भी ड्रैग एन ड्रॉप करके, पॉइंट इन क्लिक करके अपनी एनालिसिस कर पाए और सही रिजल्ट पा सके.”
Genome Informatics की मदद से क्या क्या बदलाव आए हैं?
Genome Informatics से आए बदलाव के बारे में बात करते हुए अमित बताते हैं कि मेडिकल की जो भी एस्पेक्ट है हर चीज डेटा ड्रिवन, एल्गोरिथमिविन ड्रिवन, मशीन लर्निंग ड्रिवन हो रही है. जैसे पहले कोई ऑर्थोपीडिक एक्सरे देखता था, तो एक्सरे निकलता था उसको लाइट में उठाकर देखता था कि कहां पर क्रैक है, वो चीज आज इमेज एनालिसिस से हो जाती है. आप एक्सरे की इमेज को अपलोड कीजिए, कंप्यूटर प्रोग्राम आपको बता देगा कि यहां पर ये क्रैक है, यहां पे डिफेक्ट है. कैंसर के लिए भी ऐसे ही काम होता है. पहले जो डॉक्टर था वो माइक्रोस्कोप में सेल्स को देखता है, उसका ग्रेडिंग करता था, फिर इलाज होता था. अब उसका डेटा एनालिसिस म्यूटेशन आ जाता है. इससे पता चल जाता है मरीज को जो म्यूटेशन है उसको उस हिसाब से दवा दी जाए.”
आइए अब एक्सपर्ट से Genome को आसान भाषा में समझते हैं
जीनोम को आसान भाषा में समझाते हुए अमित ने बताया कि, ”इंसान से लेकर बैक्टीरिया तक हर सजीव के अंदर DNA होता है, जो एक तरह से उसका सोर्स कोड होता है, उसका सेट ऑफ इंस्ट्रक्शन होता है, उसके हिसाब से वो चीज चलती है. बैक्टीरिया साइज में छोटा है. उसकी कॉम्प्लेक्सिटी कम है लेकिन उसके अंदर भी डीएनए में एक इंस्ट्रक्शन है. ह्यूमन बीइंग ज्यादा बड़ी चीज है, उसके अंदर भी इंस्ट्रक्शन है.”
” बीस साल पहले तक यूएस, जापान जैसे देशों के पास भी ये इंस्ट्रक्शन नहीं थी. फिर ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट शुरू हुआ, जहां पूरी दुनिया के साइंटिस्ट एक साथ आए और ये फैसला किया कि इतनी बड़ी समस्या के निवारण के लिए वे एक साथ काम करेंगे, इससे अकेले नहीं निपटा जा सकता. तब उन्होंने ऐसा प्रोजेक्ट शुरू किया जिसके लिए दुनिया भर के साइंटिस्ट ने अपना योगदान दिया.”
“आज उसी इंस्ट्रक्शन को एक टेक्नीशियन एक दिन में कर सकता है. बीस साल में इतनी तरक्की हुई है इस फील्ड में. तो आज हमारी इतनी कैपेबिलिटी हो गई है, चाहे वो यूएस हो, यूरोप हो, इंडिया हो, थाईलैंड हो, जापान हो हर जगह लोग इस अंदर के इंस्ट्रक्शन को पढ़ सकते हैं, इसी को जनॉमिक्स बोलते हैं.”
Genome Editing को भी समझ लीजिए काम आएगी
जिनोम एडिटिंग के बारे में जानकारी देते हुए अमित सिन्हा कहते हैं, “जेनॉमिक्स में पढ़ कर हम जब प्रॉबलम के बारे में बताते हैं तो निश्चित रूप से ये सवाल सामने आता है कि क्या इसमें बदलाव किए जा सकते हैं?”
”वैसे तो साइंटिस्ट काफी पहले से इसपर काम कर रहे थे मगर वो टेक्निकस उतनी असरदार नहीं थीं मगर एक नई टेक्नोलॉजी आई है जिसका नाम Crispr, जिससे चीजें काफी सिंपल और काफी फ्लैक्सेबल हो जाती हैं. दो चीज चाहिए, पहले तो हमें एक इंस्ट्रक्शन का कैटलॉग बनाना पड़ेगा क्योंकि हो सकता है हमें आज यह ना पता हो कि लंग्स कैंसर किस जेनेटिक इफेक्ट से हो रहा है या किसी को ब्लड प्रेशर है तो क्या डिफेक्ट है.”
”पहले तो हमें काफी रिसर्च करके, काफी जेनॉमिक सीक्वेंसिंग करके समझना पड़ेगा कि कौन सी डिजीज किस प्रॉब्लम से आती है. एक बार वो हमें पता चल गया फिर हमारे पास एक मौका है कि उसको हम जीनोम एडिटिंग या Crispr से इंस्टक्शन को चेंज कर सकें.”
जीनोम एडिटिंग में आने वाली दिक्कतों के बारे में बात करते हुए अमित ने कहा कि, “लेकिन इसमें कुछ एथिकल प्रॉब्लम्स भी आती हैं. जैसेकि किसी ने कहा मेरा बच्चा इंटेलिजेंट हो, उसकी आंखों का रंग नीला चाहिए, उसकी हाइट छः फिट होनी चाहिए. तो उससे कुछ नेगेटिव भी हो सकता है. जब हम जीनोम एडिटिंग की बात करते हैं तो इसमें एक एथिक्स भी आ जाती है.”
अमित सिन्हा के साथ हुई खास बातचीत का वीडियो यहां है: