शहर भर के सभी बाजार दुल्हन की तरह सजे हुए थे. लोगों की भीड़ ने बाजार में खड़े होने जितनी जगह नहीं छोड़ी थी. रंगबिरंगे लिबास में मुस्कुराते चेहरों ने ये ऐलान कर दिया था की कल भाई बहन रक्षाबंधन मना कर श्रावण को विदाई देंगे.
मेन सड़क पर पुराने ट्रांसफार्मर से अन्दर की तरफ मुड़ने पर शुरू होने वाले गोले बाजार की भीड़ के तो क्या ही कहने, यहां लोग चलते नहीं रेंगते हैं. आज तो ऐसा लग रहा था की जैसे आसमान के सारे सितारे तोड़ कर दुकानदारों ने अपनी दुकानों पर सजा लिए हों. लेकिन ये त्योहारों में सजने वाले सभी बाजार खुद को कितना भी सजा लें शहर के उस बाजार से कम ही लगेंगे जहां सिसकियां बिका करती हैं.
ये गोला बाजार से कुछ ही दूर तो है. मगर जितना सजीला है ये बाजार उतना ही बदनाम भी. इसकी बदनामी का ये आलम है कि कोई सफेदपोश इंसान ‘दिन’ में इधर से गुजरना तक पसंद नहीं करता. पर इस बदनामी से फर्क किस कमबख्त को पड़ता है. बाजार हमेशा लहलहाता रहता है.
इसे शहर समाज के त्योहारों से कुछ लेना देना नहीं है, यहां हर रोज उत्सव होता है. जिन्दा लाशों को यहां मुस्कुराहटों के जामे पहनाए गए हैं. हर मन दुखी है लेकिन मुस्कुराहटें किसी के चेहरे की कम नहीं, जो जितना व्यथित है वो उतना मुस्कुरा रहा है. मुस्कुराने के सिवा और चारा भी क्या है इनके पास. ये वो बाजार है जहां आने के बाद बाहरी दुनिया को जाने वाला हर रास्ता अपने आप बंद हो जाता है.
जो यहां की जान हैं असल में वही सब बेजान हैं. वो तो लिपस्टिक सुर्खी और सस्ते क्रीम पाउडर की मेहरबानी है जो ये जिन्दा दिख रही हैं वरना इनकी जानें तो तभी सोख ली गयी थीं जब इन्हें यहां लाया गया था. कभी जो कलियां थीं आज कागज के बनावटी फूल बन गई हैं, जिन्हें बस शोभा के लिए इस्तेमाल किया जाता है. न कोमलता है, न वो खुशबू, है तो बस क्षणिक सुन्दरता, जिसे शोभा के लिए सजाया जाता है फिर नोच कर फेंक दिया जाता है.
यहां हर कागजी फूल ग्राहकों को अपनी बनावटी सुन्दरता की तरफ आकर्षित कर रहा था. सभी चेहरे मुस्कुरा रहे थे. कुछ अपनी भूख मिटने की खुशी में मुस्कुरा रहे थे, कुछ रोमांचित होने के कारण हंस रहे थे और बाकी बचे चेहरों का तो काम ही मुस्कुराना था. लेकिन इन्हीं चेहरों में एक चेहरा बड़ा चिंतित था. उसके माथे पर इधर से उधर नाच रही पसीने की बूंदें उसके विचलित मन का हाल बयां कर रही थीं. चकरघिन्नी की तरह घूमती उसकी आंखों की पुतलियां बता रही थीं कि उसे किसी की तलाश है. इस हुस्न के बाजार में एक से एक हसीन चेहरे उसे आवाज दे कर अपनी तरफ बुला रहे थे मगर उसे तो बस उसी चेहरे की तलाश थी जिसके पास वो कल ही कुछ घंटे बिता कर गया था.
उसके कपड़े मैले कुचैले से थे, लग रहा था जैसे किसी काम में लगा हो और अचानक से कुछ याद आते ही वो इस हालत में इधर दौड़ा चला आया हो. ये भी कैसी जिस्मानी भूख है जिसने उसे नहाने और कपड़े बदलने तक का समय नहीं दिया! खैर ये उसकी अपनी सोच और पसंद है, वैसे भी यहां हर किसी को सिर्फ अपने दाम से मतलब है. उसकी घूमती हुई पुतलियों ने आखिर उस चेहरे को ढूंढ ही लिया. वही है, हां वही तो है, उसके दाहिने आंख के पास एक निशान है, शायद कट गया था कभी जिसका घाव भर गया मगर निशान नहीं, हां यही है.
“सुनिए?” उसने उस चेहरे के करीब जा कर थोड़ी जोर से कहा, जोर से बोलने का कारण था वहां का शोर.
“सुनाइए साहब.” उसने बिना पीछे मुड़े ही अनोखी अदा में कहा.
“हम कल आए थे आपके पास.”
“कल तो बीत गया, आज हमारे पास आए हैं तो हम कुछ दाम की अरे माफ़ करिए काम की बात करें.”
“आपने हमको पहचाना नहीं?” उस घबराए इंसान ने सामने वाली बेपरवाह लड़की को कुछ याद कराने की कोशिश की.
“अरे साहब हमारे पास तो दिन भर में कई प्यासे आते हैं, ये बेचारा कुआं किस किस का चेहरा याद रखे.” उसकी इस बात पर एक साथ कितने ठहाके गूंजे.
“हम वही हैं जो कल यूं ही चले गए थे.”
“यूं ही चले गए थे? जनाब हमारे यहां से तो पत्थर भी पानी पानी हो कर जाते हैं और आप कह रहे हैं कि यूं ही चले गए थे.” इस बार लड़की ने शरारती आंखों के साथ मजाक किया. किसी का मजाक उड़ता देख आस पास भीड़ तमाशे का मुफ्त में आनंद लेने के लिए इकट्ठी हो गयी.
“यूं का मतलब…खैर ये सब जाने दीजिए आप बस हमारा ऊ लिफाफा दे दीजिए जो कल आपके यहां रह गया था.” लड़के की बेचैनी बढती जा रही थी.
“हद करते हैं साहब, लोग हमें दिलों की चोरनी कहते हैं और आप हैं की लिफाफा चुराने का इल्जाम लगा रहे हैं.”
“नहीं नहीं हम इल्जाम नहीं लगा रहे, हम तो बस इतना कह रहे…” लड़का अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही किसी के मजबूत पंजें ने उसकी गर्दन पर मजबूत पकड़ बना ली. लड़का अपनी गर्दन छुड़ाने का प्रयास करता उससे पहले ही घर्राई हुई एक आवाज गूंजी जिसने माहौल में गूंज रहे सभी ठहाकों का मुंह बंद कर दिया.
“ऐ नगमा तुम्हें कोई काम नहीं क्या. आज क्यों बाजार मंदा करने पर लगी हो. कौन हैं ये बाबू साहेब.” ये घर्राई हुई आवाज एक साठ-पैंसठ वर्षीय महिला की थी, जिसके चेहरे की झुर्रियों ने अपने भीतर क्रूर अनुभवों को समेट रखा था. बीड़ी के धुएं के कारण उसके मुंह के अन्दर घुट रही पान की पीक ने होंठों के किनारों को खोद कर चुपके से बाहर निकलने की कोशिश तो की थी मगर गालों पर सूख कर रह गई. उसके दाएं गाल और बाजू पर छपा सिरहाने के प्रिंट का छाप ये बता रहा था वो गहरी नींद में सोई थी और इस शोर ने उसकी नींद में खलल डाला है.
“हमको क्या पता जिज्जी, ये साहब पता नहीं हमसे क्या क्या पूछे जा रहे हैं. हम तो बस समझा रहे थे.” नगमा ने भोला सा मुंह बना कर कहा.
“सुनो तुमको बस इतना समझना है कि कैसे तुम्हारा ग्राहक बढ़ेगा बाकी कुछ समझने बुझने की जरूरत नहीं है. और इस लौंडे से पूछ लो कोई पसंद हो तो खोली में घुस जाए और नहीं हो तो तित्तर हो जाए यहां से. नहीं तो ऐसा चिकेन फ्राई बनेगा कि जब जब घुसलखाने में घुसेगा तब तब बांग देने लगेगा.” वो अधेड़ औरत जिसे नगमा ने जिज्जी कहा था अपना फरमान सुना कर जाने के लिए पल्टी.
“ऐ चाची, हमारा लिफाफा दिलवा दीजिए हम चले जाते हैं.” अभी भी लड़के की गर्दन मजबूत पंजों में जकड़ी हुई थी, लेकिन वो लिफाफे को नहीं भूला था.
“ऐ पहलवान इनको इनका लिफाफा दे दो तो जरा. अच्छे से देना कोई कोई कमी न रहे.” बिना लड़के की तरफ देखे जिज्जी ने उस शख्स को आदेश दिया जिसके मजबूत हाथों में उस लड़के का सर जकड़ रखा था.
उस अधेड़ औरत की बात से लड़के के चेहरे की चिंता ने थोड़ी चैन की सांस ली लेकिन नगमा की चिंता अचानक से बढ़ गई क्योंकि वो जिज्जी का इशारा समझ रही थी. उसे पता था कि अगर वो पहलवान के साथ गया तो फिर चल के घर जा नहीं पाएगा.
“अरे जिज्जी छोड़ो न, आप भी क्या छोटी छोटी बातों के लिए…” उस अधेड़ उम्र की औरत ने पलट कर घूरा और इसी के साथ नगमा की बात बीच में ही रह गई.
“ठीक है तो हम कुछ बोलेंगे ही नहीं अभी से, जा रहे हैं सोने हमको बुखार है.” इतना कह कर नगमा अपने कमरे की और जाने को हुई.
वो औरत जानती थी नगमा के रूठने का मतलब है बाजार की आधी रौनक का रूठ जाना. स्वाभाव से चंडालिन इस औरत की बात काटने या इसके सामने नखरे दिखाने की हिम्मत सिर्फ नगमा के पास थी. हो भी कैसे न, बनाने वाले ने उसे रूप ही इतना गजब का दिया था. जो उसके पास से हो कर जाता वो लौट कर जरूर आता. नगमा असल में एक बुरी लत का नाम थी. सात साल हो चले थे उसे इस बाजार का हुए लेकिन आज भी वो वैसी ही थी जैसे उसका कोई अपना उसे यहां छोड़ कर गया था. जिज्जी कई बार दूसरों के सामने उसकी तारीफ करते हुए कह चुकी थी “करम फूटे थे इसके और जागे थे हमारे जो यहां पहुंच गयी. बंबई भेज दो तो आज की सभी हीरोइनों को बेरोजगार कर दे ई लौंडिया.”
ऐसे में उस औरत को डर रहता था कि कहीं वो रूठ गयी तो उसका धंधा मंदा पड़ जाएगा. इसलिए वो उसकी हर जिद्द के आगे झुक जाया करती थी. आज भी झुक गयी वो और बिना पीछे मुड़े, आगे बढ़ते हुए कहा “छोड़ दे इसको.”
पहलवान ने अपने पंजों से उस लड़के की गर्दन को आजाद कर दिया और उसे घूरता हुआ अपनी मालकिन के पीछे चल दिया. गर्दन में असहनीय पीड़ा के बाद भी लड़का लिफाफे को नहीं भूला था. उसने मकसूद के पंजों से छूटते ही नगमा से फिर गुहार लगानी शुरू कर दी “मेरा लिफाफा दे दीजिए मैं चला जाऊंगा, फिर कभी लौट कर नहीं आऊंगा.”
“क्या बाबू अभी अभी मरने से बचे हो, तुम मकसूद को नहीं जानते. उसके हाथ की मार खाने वाला इंसान अपना नाम तक भूल जाता है. अपनी जान बचने का शुकर मानाने की बजाए तुम फिर से लिफाफे की रट लगाए हो.” नगमा ने अपने कमरे की तरफ कदम बढ़ाते हुए इठला कर कहा.
वैसे तो इस नरक की सुंदरी को देख कर एक बार इसका रचयिता भी इसे खुद से दूर कर के कई दिनों तक विरह की आग में जला होगा. मगर ये लड़का था, जिसके ऊपर उसके खोये लिफाफे का ऐसा नशा चढ़ा था कि इसके आगे इस रूपसी के रूप का कोई जादू काम नहीं कर रहा था.
“वो लिफाफा हमारे लिए बहुत जरुरी है. नहीं मिला तो हम ग्लानि से मर जाएंगे.” लड़के ने सारी शर्म छोड़ कर घुटनों पर आ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा.
“ऐसा क्या है भला उसमें जो आपको जान तक की परवाह नहीं.”
“उसमें जो है वो भले ही किसी के लिए वो कुछ भी न हो मगर हमारे लिए कीमती है.”
“राखी कहने में इतना हिचकिचा क्यों रहे हैं आप ?” नगमा जहरीली हंसी के साथ उस लड़के की तरफ ये सवाल उछालते हुए अपने कमरे में प्रवेश कर गई.
“इसका मतलब वो लिफाफा आपही के पास है. मुझे वो लिफाफा दे दीजिए. हम भीख मांगते हैं आपसे.” लिफाफे का जिक्र सुन कर लड़का तेजी से नगमा के पीछे उसके कमरे में जा घुसा.
“लिफाफा तो हम आपको दे ही देंगे लेकिन ये बताइए कि अगर अपनी बहन के बारे में इतना सोचते हैं आप फिर इस गंदी जगह पर क्यों आते हैं और आते भी हैं तो बहन की सबसे पवित्र निशानी ले कर क्यों? अरे हम तो भूल ही गए आप भाई लोग भी तो मर्द होते हो और मर्दों का तो काम ही है…” लड़के बीच में से ही बात काट दी.
“आप गलत समझ रही हैं.”
“14 साल के थे, तब से समझते आ रहे हैं, अब अच्छे से जानते हैं सही और गलत का फर्क.”
“फिर भी आप गलत समझ रही हैं. हम जान बूझकर नहीं आए थे यहां. तीन साल से हैं इस सहर में लेकिन हमको इस जगह के बारे में पता भी न था. ये सब छोड़िए आप बस हमारा लिफाफा दे दीजिए.”
“छोड़िए” हां छोड़ना ही तो आता है तुम मर्दों को. बस छोड़ दो. जहां अपना मतलब निकले बस वहीं छोड़ दो. मेरा वो बाप जिसे हमसे ज्यादा दारू प्यारी थी वो भी हमारे हाल पर हमें छोड़ गया. वो हमारा चचेरा भाई जो कुछ रुपयों के लिए हमें इस नर्क में छोड़ गया. वो ग्राहक जो हर रोज हमें यहां से ले जाने के सपने दिखा कर हमारे जिस्म के साथ साथ हमारा प्यार भी लूटता रहा, मन भर जाने पर वो भी छोड़ गया. तुम सबको बस छोड़ देना आता है.” नगमा आज से पहले इतना टूट कर कभी नहीं रोई थी. ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर दबा गुबार आज धीरे धीरे बाहर निकलने को मचल रहा हो. हालांकि वो लड़का समझ नहीं पा रहा था कि नगमा इतना क्यों भड़क रही है फिर भी पता नहीं क्यों ये बातें सुन कर उसके मन में नगमा प्रति सहानुभूति उठने लगी थी.
“हम आपके जज्बातों को अच्छे से समझ रहे हैं लेकिन क्या है न नगमा जी ऐसा नहीं कि जितने लोगों को हमने जाना समझा बस दुनिया उतनी सी ही है. माना कि बुरे लोगों की संख्या ज्यादा है मगर ऐसा नहीं कि सब बुरे ही हैं. हम खुद को अच्छा नहीं कहते लेकिन कम से कम इतने गिरे तो नहीं हैं. उस दिन हमारा एक दोस्त हमको यहां ले आया था. इस उम्र में भला कौन नहीं ये सब पसंद करता. हर इंसान यहां जानवर है, सबके अंदर वासना है लेकिन जो अपनी वासना को जितना दबा लेता है वो अच्छा कहलाता है. अगर ये इस तरह की इच्छा लोगों के अंदर से मर जाए तो ये दुनिया रहेगी ही कहां. हमने कभी किसी लड़की पर बुरा नजर नहीं रखा. लेकिन हम मानते हैं कि जब हमारा दोस्त हमको यहां लाया तो हम मना नहीं कर पाए. ऐसे तो हम सो गए थे, हमने कुछ नहीं किया लेकिन कर भी लेते तो क्या था! यहां तो जो होता है सबकी मर्जी से होता है.” लड़का जैसे अपने अंदर की सारी भड़ास निकाल देना चाहता था! वो बोलते जा रहा था और नगमा आँखों में अथाह दर्द लिए उसे देखे जा रही थी.
“सही कह रहे हैं आप, यहां सब कुछ तो हमारी मर्जी से होता है. आप जैसे लोग नहीं आएंगे तो भला हमारा पेट कैसे भरेगा. लेकिन एक बात कह कर छोटी सी गुस्ताखी करना चाहूंगी. वो लड़की जिसे आप अपनी बहन बता रहे हैं उससे अलग नहीं है हमारा जिस्म, हम सब उसके जैसी ही हैं. यहां जितनी भी लड़कियां आपको दिखती हैं वो सब किसी न किसी की बहनें ही हैं, मगर यहां लाई भी वो अपने ही सगे सम्बन्धियों द्वारा हैं. ऐसा नहीं कि हमारा जिस्म पत्थर का हो चुका है, हमें पीड़ा महसूस नहीं होती. हम तो बस हार चुकी हैं, इसलिए बस चुप चाप सब सहती हैं. यहां बहुत कीमती है हमारा वक़्त, ये भूखे भेड़िये हमारे इस वक़्त को मुंहमांगी रकम दे कर खरीदते हैं लेकिन फिर भी आपको समझा रहे हैं हम, जानते हैं क्यों ? क्योंकि हम जबसे यहां हैं तब से देखा है कि लोगों के हजारों से भरे बटुए छूट जाते हैं यहां मगर कोई वापस नहीं आता. उन्हें पता है कि यहां से पैसे मिलेंगे नहीं और बदनामी होगी वो अलग से. आप पहले हैं जो वापस आये और बस इसलिए कि आपकी बहन की राखी यहां छूट गई थी. आप इस भीड़ से अलग लगे. लगा कि आप अपनी बहन की फिक्र करते हैं तो बाकी औरतों की तकलीफ भी आपको महसूस होती होगी. उस रात आप नशे में थे, कुछ किए बिना चुप चाप एक मासूम बच्चे की तरह सो गए. आपको देख कर लगा था कि दूसरों से अलग हैं आप और अब जब अपनी बहन की राखी के लिए वापस आये तो यकीन हो चला था मगर आपकी ये बात सुन कर……खैर ये बेतुकी बातें हैं, न जाने आपसे क्यों कह रहे हैं. ये लीजिये आपका लिफाफा. और सुनिए दोबारा कभी यहां आएं तो हमें मत खोजिएगा. मर्दों से तो हमें पहले ही बहुत नफरत है लेकिन आप से घिन सी आने लगी है.” इतना कह कर नगमा ने उस लड़के के हाथों में उसका लिफाफा थमा दिया और उठा कर अपने कमरे से बाहर चली गई. नगमा तो चली गई मगर उसकी आंख से आजाद हुआ एक आंसू लड़के की हथेली पर सिमट गया. कुछ देर अपनी हथेली पर नज़र टिकाए वो लड़का देखता रहा और फिर भारी मन के साथ वहां से चला गया.
उस दिन से सात दिन बाद
राखी बीत गई, शहर के अन्य बाजारों की भीड़ कम हो गई थी लेकिन इस बाजार की रौनक कभी बूढी नहीं होती. “ऐ नगमा.” बाहर से जिज्जी की कड़कती आवाज ने नगमा का ‘अभी तो रात ही है’ का भ्रम तोड़ दिया.
“ऊं” अपने एक आंख को जबरदस्ती खोलते हुए नगमा ने मुंह से अजीब सी आवाज निकली जिसका मतलब शायद यही था कि ‘हां, भौंको.”
“जल्दी से तैयार हो जा. एक सेठ फोन किया था, लेने आ रहा तेरे को.”
“जिज्जी आप जानती हैं मैं बाहर नहीं जाती, वैसे भी दिन मेरा अपना होता है.” नगमा ने लेटे लेटे कहा.
“इस बाजार में किसी का कुछ भी अपना नहीं. और पहले नहीं जाती होगी मगर आज जाना पड़ेगा. कोई बड़ी पार्टी लगती है. दिन भर के पूरे 10 हजार दिए हैं.” जिज्जी ने अपना फरमान सुनाया.
“किसी और को भेज दो.”
“तेरे को पता है कि मैं तेरे पास तभी आती हूं जब कुछ खास हो. मैंने किसी और के लिए कहा था मगर कोई तगड़ा आशिक लगता है तेरा, बोला नगमा ही चाहिए. बोला है एक घंटे में लेने आएगा. चल अब तैयार हो जा.” इतना कह कर जिज्जी चली गई. इधर नगमा ने जिज्जी को मन में तरह तरह की गालियां सुनाते हुए बिस्तर छोड़ा. उसे गुस्सा भी आ रहा था इसी के साथ दिमाग में ये सोच भी चल रही थी कि आखिर वो कौन होगा जिसे बस मेरी ही चाहत है.
इस बाजार से बाहर जाने का सोच कर ही नगमा का मन घबराने लगता था. कभी जिस बाहरी दुनिया के लिए वो तरसती थी आज वही दुनिया उसको डरा रही थी. उसे लगता था जैसे उसके अंदर इस बाजार की बू बस गई है जिसकी भनक लगते ही लोग उसको अपनी नजरों से ऐसे घायल करेंगे जैसे पत्थर चला कर मार रहे हों. इसी भ्रम में उसने आज साबुन की पूरी टिकिया अपने बदन पर घिस दी थी. ये वो नगमा नहीं थी जो यहां रहती है ये वो थी जिसे 7 साल पहले यहां ला कर पटक दिया गया था.
नगमा तैयार हो कर अपनी खोली में बैठी अपने आज के खरीददार का इंतजार कर रही थी. इतने में जिज्जी ने बताया कि वो नीचे उसका इंतजार कर रहा है. नगमा डगमगाते हुए क़दमों के साथ बाहर की तरफ बढ़ी. सड़क पर आ कर देखा तो कोई गाड़ी नजर नहीं आ रही थी. वही आने जाने वाले ऑटो रिक्शा और पैदल लोग थे वहां.
“अरे इधर उधर कहां देख रही हैं, हम यहां हैं.” ये आवाज कुछ सुनी सी लगी नगमा को उसने पीछे मुड़ कर देखा तो वही लिफाफे वाला लड़का एक ऑटो में पीछे बैठा हुआ था.
“आप क्या कर रहे हैं यहां. आपको कहा था न मेरे आसपास भी नहीं दिखिएगा.” नगमा की त्योरियां चढ़ गईं.
“अरे अरे, गुस्सा क्यों हो रही हैं. मैंने ही आपको बुलाया है.”
“मुझे लगा था उस दिन के बाद आपको कुछ शर्म आएगी मगर आप तो एकदम बेशर्म हो गए. खैर मुझे आपकी शर्म और हया से क्या वास्ता, हम लोग तो खुद बेहयाई के बाजार की रौनक हैं. चलिए कहां चलना है.” लड़का नगमा के इस कटाक्ष पर कुछ नहीं बोला. उसके बैठते ही ऑटो चल पड़ा, शायद ऑटो वाले को पहले ही निर्देश मिल चुका था कि उसे जाना कहां है.
ऑटो में दोनों खामोश बैठे रहे, शहर के बड़े बाजारों और छोटी तंग गलियों से गुजरता हुआ ऑटो कुछ ही देर बाद एक गली में रुका जहां ज्यादा भीड़ नहीं थी बस इक्का दुक्का लोग आ जा रहे थे. लड़के ने अपना थैला उठाया जिसके अंदर कुछ था जो उसने नगमा को लेने जाने से पहले खरीदा था और नगमा को ऑटो से उतरने का इशारा किया. नगमा के उतरते ही वो ऑटो वहां से चला गया. लड़के ने इशारे में नगमा को समझाया कि वो उसके पीछे आए. इसके साथ ही वो गली के दाईं तरफ वाली उस दुकान की तरफ बढ़ा जिसका शटर बंद था और उसके साथ ही ऊपर की तरफ जाने के लिए सीढियां बनी हुई थीं.
हालांकि नगमा के लिए ये कोई नयी बात नहीं थी मगर न जाने क्यों उसे उस लड़के पर गुस्सा आ रहा था. उसे लग रहा था कि समाज का वो दोगला चेहरा जो आम चेहरों के बीच छुपा औरतों पर एक के बाद एक हमले करता है वो इसी लड़के जैसा है. नगमा भारी क़दमों के साथ उसके पीछे चल दी. उन तंग सीढ़ियों पर चढ़ते हुए नगमा बड़बड़ाई “कहने को हम बाजारू हैं, लेकिन दोगलापन इन जैसों में भरा पड़ा है.” लड़का चुपचाप चलता रहा. अब वो दोनों एक कमरे में पहुंच गए थे. कमरा अच्छे से सजाने की कोशिश की गई थी.
लड़का अपना थैला बिस्तर के पास पड़े टेबल पर रखते हुए कहा “हमारी मां कहा करती थीं कि लोगों का गंदा उठाने वाला इंसान गंदा नहीं होता, काहे कि वो तो अपना मजदूरी करता है. सबसे ज्यादा गंदा वो हो है जिसकी अपने लिए ही खुद की नजरों में कोई इज्जत नहीं रह जाती. लोग आपको बुरा क्यों न कहें, आप तो खुद को ही बुरा बनाए बैठी हैं. आपको हम बुरे लग रहे हैं न तो हमको बुरा कहिये खुद को क्यों बार बार बाजारू कह रही हैं? अब चुपचाप वहां बैठ जाइए. ज्यादा बोलीं तो बगल में का कमरा में बहुत चूहा है आप पर छोड़ देंगे.” लड़के के चेहरे पर गुस्सा था लेकिन उसमें एक अपनापन सा था. नगमा को याद ही नहीं कि आखिरी बार उसे इतने हक से किसी ने डांटा हो या इस तरह डराया हो. और दूसरी बात उसे चूहों से बहुत डर लगता था, यही कारण था कि वो अपनी पाजेब छमकती हुई चुप चाप पलंग पर बैठ गई.
लड़का बगल के कमरे में चला गया. नगमा खुद को समझाने में लग गई कि ये उसका पेशा है. उसका काम अपने ग्राहक के बारे में सोचने का नहीं बल्कि उसको संतुष्ट करने का है. यही सोच कर नगमा खुद को तैयार करने लगी. इतनी देर में लड़का उस कमरे में आ गया. उसके हाथों में खाने की दो थालियां थीं. बिस्तर पर पेपर बिछा कर खाने की थालियां रखने के बाद लड़का भी वहीं बैठते हुए बोला “जानते हैं आपके मन में अभी बहुत से सवाल चल रहे होंगे और उनका जवाब भी आपको मिलेगा लेकिन पहले खाना खा लेते हैं और हां हम आपको बता दें कि हम खाना बहुत अच्छा बनाते हैं.” नगमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था.
यहां रहते हुए नगमा बहुत अक्खड़ स्वाभाव की हो गई थी. जिज्जी के सिवा कोई दूसरा नहीं था जो उससे अपने मन का करा लेता मगर न जाने क्यों आज वो लड़का जैसे बोल रहा था नगमा चुपचाप वही सब कर रही थी.
नगमा ने पहला निवाला मुंह में डाला तभी वो समझ गई कि लड़का अपनी झूठी तारीफ नहीं कर रहा था. आज बरसों बाद घर के खाने जैसा स्वाद मिला था उसे. नगमा खाने के स्वाद में इतना खो गई थी कि लड़के की लगातार उसके चेहरे पर जमी निगाहों का भी पता न चला उसे. खाना खत्म हो चुका था. नगमा को देख कर ही बताया जा सकता था कि उसका पेट तो भर गया मगर मन नहीं भरा था.
“अब जो काम है वो निपटा लीजिए. फिर मुझे वापस भी जाना है.” नगमा ने डरते हुए ये बात कही. असल में उसे ये सब सपने जैसा लग रहा था और वो चाहती नहीं थी कि उसका सपना टूटे मगर लड़का आज के लिए उसका मालिक था इसीलिए उसका मन जानना भी जरुरी था.
“काम इतनी जल्दी कैसे निपटेगा, ये तो बस अभी का खाना हुआ है. थोड़ी दे आराम कर लीजिए, फिर आपको झील पर ले चलेंगे. वहां आप कुदरत का नजारा देखिएगा. झील के पानी के संग कुछ देर खेलिएगा. फिर आपका जहां मन हो चलने का मुझे बताइए मैं आपको वहां ले चलूंगा. इसी के लिए तो आपको बुलाया है” नगमा हैरान हो गई लेकिन उसने अपनी हैरानी दिखाई नहीं.
“लेकिन इतनी मेहरबानी क्यों, हमारे लिए ये सब खुशियां नहीं बनी हैं.” नगमा ने कहा.
“खुशियां किसी की बपौती नहीं होतीं, इस पर तो सबका अधिकार है. आपको मैं लेकर आया हूं, और मैं चाहता हूं कि आप आज का दिन ख़ुशी से बिताएं. और हां, ये कोई मेहरबानी नहीं. कहते हैं बिना दक्षिणा के शिक्षा नहीं लेनी चाहिए. आपने उस दिन मुझे बहुत बड़ी सीख दी जिसकी दक्षिणा के रूप में मैं आपको आज भर की खुशियां देना चाहता हूं.”
“और कल ? फिर तो कल से वही सब होगा. आप बेकार में वक्त बर्बाद कर रहे हैं.”
“कल आपने देखा है ?”
“नहीं मगर…”
“जब नहीं देखा तो फिर कैसे कह सकती हैं आप कि कल वही सब होगा?” नगमा इस पर कुछ न बोली…
“नगमा जी, हम छोटे थे तभी हमारे माता पिता हमें छोड़ कर चले गए. मेरे लिए छोड़ गए एक छोटी सी दुकान और एक प्यारी सी बहन. पेट को भरने के लिए रोटी नहीं मिलती थी तो भला किताबें कहां से मिल पातीं. जैसे तैसे उस छोटी सी दुकान के सहारे हमने खुद को और अपनी बहन को पाला. ईश्वर ने कुछ दिया तो हमारे हाथ में बरकत दी. हम जिस भी काम को हाथ लगते हैं वो सफल हो जाता है. उम्र के साथ साथ ये बात समझ आई हमें. हमने दूकान से थोडा बहुत कमाया मगर फिर सोचा कि इसके सहारे हम बस जिन्दगी काट सकते हैं अपनी बहन का बियाह नहीं कर सकते इसीलिए तीन साल पहले अपना जमा पूंजी ले के हम इस शहर में आ गए. नया काम शुरू किया. काम भी अच्छा चल गया. लगा कि अब हम अपना मुनिया का शादी अच्छे से कर सकेंगे. लेकिन हमारे हाथ में बरकत तो है लेकिन किस्मत में खुशियां नहीं हैं. एक दिन जब हम दोपहर में खाना खाने घर गए तो देखे कि हमारी बहिन घर नहीं लौटी थी अभी कॉलेज से. हमने हर तरफ खोजा, पुलिस में रिपोट भी लिखाये लेकिन उसका कुछ पता न चला….” लड़के ने जिन आंसुओं को अब तक रोके रखा था वो अपनी हदें तोड़ बैठे. वो फूट कर रो पड़ा. नगमा अचेत सी हो गई. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कहे.
“न जाने हमारी फूल सी बहन कहां खो गई इस भीड़ में. उसकी बची आखरी निशानी हमारे पास वही राखी थी जो उस लिफाफे में रह गई थी. अपनी बहिन के खो जाने के बाद हम पागल से हो गये थे. सारा दिन भूत की तरह कमान और शाम होते खुद को शराब के नशे में डुबो देना बस यही था हमारे पास करने को. इसी बीच एक दोस्त हमको आपके यहां ये कह कर ले आया कि यहां इंसान अपने सारे दुःख भूल जाता है. नशे की हालत हमको उसकी बातों में सच्चाई दिखी. हमारे अंदर का जानवर आजाद होना चाहता था. हम उसकी बात को सही मान रहे थे लेकिन जब हमने आपकी बातों में दर्द महसूस किया तो यही सोचते रहे कि हममें और उन दरिंदों में क्या फर्क जो औरत का जिस्म पाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं. हत्या तो हत्या है भले ही जबरदस्ती करो या किसी की सहमती से. हम उस दिन जैसे नींद से जागे.” लड़के के हाथ अपने आप जुड़ गए थे. जहां नगमा को लोगों ने वैश्या, रंडी, बाजारू और न जाने कौन कौन सी उपमाएं दी थीं वहीं आज वो लड़का उसके सामने हाथ जोड़े था ये देख कर नगमा की आंखें भी भीग गई. इसके साथ ही वो अफसोस से भर गई अपने उस दिन के रवैये के लिए. आज वो उस लड़के का दर्द महसूस कर रही थी.
“मैंने उस दिन आपसे बहुत बुरे तरीके से बात की थी. मैं नहीं जानती थी आपकी बहन के बारे में. हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए.” नगमा ने लड़के के बंधे हाथों पर अपने हाथ रखते हुए कहा.
“आपने तो बहुत बड़ा अहसान किया है हम पर. अच्छा लीजिए इसमें आपके लिए कुछ है.” लड़के ने जो थैला टेबल पर रखा था उसी में से एक गिफ्ट पैक निकल कर नगमा को देते हुए कहा.
“क्या है इसमें?”
“खोल कर देखिए.” नगमा ने उसे खोला तो उसमें एक गणेश जी की प्यारी सी मूर्ति थी. नगमा एक बार मूर्ति को देख रही थी एक बार लड़के को.
“कहते हैं किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा होती है. आज हमने आपके लिए एक दिन की आजादी खरीदी है. इस आजादी की शुरुआत पर आपको गणेश जी भेंट कर रहे हैं इस वादे के साथ कि जल्द ही आपके जीवन की आजादी आपकी झोली में डाल देंगे. हमने कहा न हमारे हाथ में बरकत है. जो सोचा है जल्दी पूरा होगा.”
नगमा को हमेशा से लगता था कि उसका इस दलदल से निकल पाना अब नामुमकिन है लेकिन फिर भी आज न जाने क्यों उसे इस अनजान की बातों पर यकीन सा हो रहा था. यही वजह थी कि उसके आंसुओं से भीगे होंटों पर एक मुस्कान सी तैर गई.
इसके बाद लड़के ने नगमा को पूरा शहर घुमाया. आज पहली बार ऐसा हुआ था कि नगमा को पता ही न चला कब शाम घिर आई वरना वो हर वक़्त घडी के काँटों को ऐसे देखती जैसे अपनी उम्र का बीतता एक एक पल उसे मौत की ओर जाने की ख़ुशी दे रहा हो. मगर आज जब इसे थाम लेना चाहती थी तो कमबख्त रुका ही नहीं.
“गलत कहा था आपने कि कल नहीं देखा किसी ने, आपने मेरा आज इतना खूबसूरत बना दिया है कि मैं अपना कल क्या परसों और उसके बाद के भी कई दिन इसी के सहारे ख़ुशी में काट दूंगी.” अपने बाजार में ऑटो से उतारते हुए नगमा ने कहा.
“ज्यादा दिन नहीं काटने पड़ेंगे आपको यहां. और हां आके चेहरा पर ये निश्चल मुस्कान बहुत सोभता है, इसे सजाये रखा करिए. जल्दी मिलते हैं आपकी पूरी आजादी के साथ.” नगमा की मुस्कराहट पहले से ज्यादा गहरा गई जो आम दिनों से एकदम अलग और बहुत ज्यादा सुंदर थी.
लड़के ने ऑटो वाले से चलने का इशारा किया तब तक नगमा को कुछ याद आया, वो हडबडा कर बोली “अरे रुकिए, अपका नाम क्या है.”
लड़का ठहाका लगा कर हंस पड़ा “अभी तक जो नाम आपने मन में सोचा होगा उसी से काम चलिए. जब आपकी आजादी लेकर आऊंगा तब बता दूंगा नाम भी.” ऑटो ने स्पीड पकड़ ली. नगमा ऑटो को जाते देखती रही. ये तो पता नहीं कि ये खुशियां कितनी देर की महमान थीं नगमा की जिंदगी में लेकिन जितनी देर भी थीं उसे सब खूबसूरत लग रहा था. उसे समझ आ चुका था कि कल न जाने अपनी मुट्ठी में कौन सी बात छुपाये है सो आज को जी लो. यही सोचते हुए वो चहकती हुई सीढियां चढ़ने लगी.