अगर आप मेहनत करने से नहीं डरते तो आपकी ज़िंदगी बदलने के लिए एक सोच ही काफी है. आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं जिनकी एक सोच ने उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया. हालांकि उनके लिए ये सब आसान नहीं था. अपने एक सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़, घर घर जा कर लोगों को अपना सपना का हिस्सेदार बनाया. साइकिल पर अपना प्रोडक्ट बेचने वाले उस शख्स ने देखते ही देखते देश के सबसे धनी लोगों की सूची में अपना नाम दर्ज करा लिया. आइए बताते हैं कि वो शख्स कौन हैं.
निरमा वाशिंग पाउडर की कहानी
गुजरात के अहमदाबाद के एक शख्स ने अपने घर के पीछे डिटर्जेंट पाउडर यानी कपड़े धोने वाला सर्फ बनाना शुरू किया. सर्फ बनाने के बाद वह इसे घर घर जा कर बेचा करता था. इतना ही नहीं, वह शख्स सर्फ के हर पैकेट के साथ ये गारंटी भी देता था कि अगर सर्फ सही ना हुआ तो वह पैसे वापस कर देगा. दूसरी बड़ी बात थी उस शख्स द्वारा बेचे जाने वाले सर्फ का दाम. उन दिनों बाज़ार में जो सबसे सस्ता सर्फ बिक रहा था उसकी कीमत भी 13 रुपये किलो थी मगर यह शख्स अपने सर्फ को मात्र 3 रुपये किलो दाम पर बेच रहा था. नतीजन शख्स का सर्फ मध्यवर्गीय तथा निम्न मध्यवर्गीय परिवारों में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा.
1969 में केवल एक व्यक्ति द्वारा शुरू की गयी कंपनी में आज लगभग 18000 लोग काम करते हैं और इस कंपनी का टर्नओवर 70000 करोड़ से भी ज़्यादा है. उस शख्स का नाम है करसन भाई पटेल और जो वाशिंग पाउडर इन्होंने बनाया वो है निरमा. निरमा वाशिंग पाउडर ने किस तरह से बाज़ार में अपनी जगह बनाई इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि आज भी कई लोग जब सर्फ खरीदने जाते हैं तो दुकानदार को यही कहते हैं कि ‘भइया एक पैकेट निरमा देना.’
किसान के बेटे ने खड़ी कर दी अरबों की कंपनी
करसनभाई पटेल का जन्म 13 अप्रैल 1944 को गुजरात के मेहसाणा शहर के एक किसान परिवार में हुआ था. करसन पटेल के पिता खोड़ी दास पटेल एक बेहद साधारण इंसान थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने बेटे करसन को अच्छी शिक्षा दी. करसनभाई पटेल ने अपनी शुरुआती शिक्षा मेहसाणा के ही एक स्थानीय स्कूल से पूरी की. 21 साल की उम्र में इन्होंने रसायन शास्त्र में बी.एस.सी की पढ़ाई पूरी की. वैसे तो अधिकतर गुजरातियों की तरह करसन भी नौकरी ना कर के खुद का व्यवसाय करना चाहते थे लेकिन घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह खुद के दम पर कोई नया काम शुरू कर सकें. यही वजह रही कि उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्रयोगशाला में सहायक यानी लैब असिस्टेंट की नौकरी कर ली. कुछ समय तक लैब में नौकरी करने के बाद उन्हें गुजरात सरकार के खनन और भूविज्ञान विभाग में सरकारी नौकरी मिल गई.
बेटी को हमेशा के लिए खो दिया
वैसे एक आम इंसान के नजरिए से देखा जाए तो करसन भाई की ज़िंदगी अच्छी कट रही थी. एक सरकारी नौकरी और अपने परिवार के साथ उन्हें खुश रहना चाहिए था. वह खुश तो थे लेकिन सतुष्ट नहीं थे. कुछ अपना और कुछ बेहतर करने की ख्वाहिश उनके दिल में लगातार मचल रही थी लेकिन वह किसी तरह अपनी इच्छा को मार कर नौकरी करते रहे. करसन पटेल अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे. वह चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ लिख कर कुछ ऐसा करे कि पूरा देश उसका नाम जाने. शायद ऐसा संभव भी हो पाता अगर उनकी बेटी ज़िंदा रहती तो. जब वह स्कूल में पढ़ती थी तभी एक हादसे में उसकी मौत हो गई. बेटी की मौत ने कुछ समय के लिए करसन भाई को अंदर से तोड़ दिया लेकिन इसी हादसे ने उन्हें जीवन की एक नई राह भी दिखाई.
एक सुबह करसन भाई एक नई सोच के साथ जागे. उन्हें एक ऐसा उपाय सूझा था जिससे वह अपनी बेटी को वापस ला सकते थे और उसे लेकर देखा हुआ सपना भी पूरा कर सकते थे. उन्होंने खुद से वाशिंग पाउडर यानी कि सर्फ बना कर बेचने का फैसला किया . यह सोचने वाली बात है कि एक सर्फ बनाने से वह अपनी बेटी को वापस कैसे ला सकते थे और कैसे इस आइडिया से पूरे देश में उनकी बेटी के नाम को प्रसिद्धि मिल सकती थी. बात कुछ ऐसी थी कि करसन पटेल की बेटी का नाम निरुपमा था और प्यार से सब उसे निरमा कहते थे. इस तरह करसन पटेल ने अपने इस सर्फ का नाम निरमा रखा जिससे कि उनकी बेटी इस नाम के साथ हमेशा ज़िंदा रहे.
निरमा कंपनी का उदय
यह साल 1969 था जब करसन पटेल ने अपने घर के पीछे वाशिंग पाउडर बनाना शुरू किया. वह एक साइंस ग्रेजुएट थे इसीलिए यह काम उनके लिए इतना कठिन नहीं था. उन्होंने सोडा ऐश के साथ कुछ अन्य समग्रियां मिला कर वाशिंग पाउडर बनाने की कोशिश शुरू की और एक दिन उन्हें पीले रंग के पाउडर के रूप में अपने सर्फ का फार्मूला मिल गया. जिस दौर की ये बात है उस समय हिंदुस्तान के आम लोगों के पास वाशिंग पाउडर को लेकर ज्यादा विकल्प नहीं थे. हिंदुस्तान लीवर या फिर विदेशी कंपनियां सर्फ बेचती थीं लेकिन इनके दाम इतने ज्यादा थे कि मध्यवर्गीय और निम्न मध्यवर्गीय परिवार इसे अपने बजट में शामिल नहीं कर पाते थे. ऐसे लोग साबुन का इस्तेमाल करते थे जिससे कि हाथ खराब होने का डर रहता था. ऐसे में करसन भाई पटेल के के लिए ये सुनहरा अवसर था. और इस अवसर को भुनाने के लिए उन्होंने कोई कमी भी नहीं छोड़ी.
अपने काम से लौटने के बाद वह अपने सर्फ को पड़ोस के घरों में बेचते. इसके बाद उन्होंने इसे साइकिल पर लेकर बेचना शुरू किया. वह लोगों के घर जा कर सर्फ बेच रहे थे. जिस समय अन्य ब्रांड के सर्फ की कीमत 15 रुपए से 30 रुपए तक थी उस समय में करसन पटेल मात्र 3 रुपए में अपना सर्फ बेच रहे थे. सर्फ की अच्छी क्वालिटी और इसके कम दाम ने अपना जादू दिखाया और देखते ही देखते ये सर्फ मध्यवर्गीय से लेकर निम्न मध्यवर्गीय परिवारों तक की पहली पसंद बन गया.
पूरे देश ने किया पसंद
करसन पटेल ने जब देखा कि उनका सर्फ लोगों के बीच अपनी जगह बना रहा है तो उन्होंने अपने इस व्यापार को बढ़ाने का सोचा लेकिन अपनी नौकरी के चलते वह इस पर ज्यादा समय नहीं दे पा रहे थे. हालांकि एक जमी जमाई सरकारी नौकरी को छोड़ना जोखिम भरा कदम था लेकिन करसन भाई को अपने फार्मूले पर विश्वास था और उन्होंने फैसला कि कि वह नौकरी छोड़ कर सारा समय इस सर्फ और अपने व्यापार पर देंगे. करसन भाई ने नौकरी छोड़ दी और सर्फ बना कर उसे घर घर जा कर बेचने लगे. कुछ ही समय में उनका सर्फ अहमदाबाद के लोगों की पसंद बन गया. करसन पटेल के लिए अब नई चुनौती ये थी कि वह कैसे अपने सर्फ को पूरे देश तक पहुंचाएं.
ऐसे में उन्होंने विज्ञापन और असरदार जिंगल का सहारा लिया. उनके निरमा ब्रांड को देश भर में प्रसिद्धि दिलाने में ‘सबकी पसंद निरमा’ जैसे टेलीविजन विज्ञापन का बहुत बड़ा हाथ रहा. इस विज्ञापन के बाद निरमा सर्फ को खरीदने के लिए स्थानीय बाजारों में ग्राहकों की भीड़ लगने लगी. लेकिन ये एक अलग तरह का बिजनेस खेल था, मांग के हिसाब से जहां करसन पटेल को अपने प्रोडक्ट की सप्लाई मार्केट में बढ़ानी चाहिए थी वहीं उन्होंने चालाकी दिखाते हुए 90% स्टॉक वापस ले लिए.
सबसे अलग थी सोच
एक महीने तक ग्राहक केवल निरमा को टीवी विज्ञापन में ही देख पाए क्योंकि जब वह बाजार से इसे खरीदने जाते तो उन्हें कहीं भी ये सर्फ ना मिलता. बाद में खुदरा विक्रेताओं ने जब इस सर्फ की आपूर्ति के लिए करसन भाई से अनुरोध किया तब जा कर एक महीने बाद बाज़ार में निरमा सर्फ आया. इस देरी से करसन पटेल को को यह फायदा हुआ कि सर्फ की मांग बढ़ने के कारण बाजार में आते ही निरमा ने बड़े अंतर से सर्फ के अन्य ब्रांड्स को पीछे छोड़ दिया. उस साल निरमा भारत में सबसे अधिक बिकने वाला वाशिंग पाउडर था. यह सर्फ इतना कामयाब हुआ कि अगले एक दशक तक इसने किसी अन्य सर्फ को अपने आसपास भी नहीं भटकने दिया.
सर्फ को लेकर बाजार के उतर चढ़ाव के कारण दिक्कत ना हो इस वजह से करसन पटेल ने अपने सर्फ के साथ साथ टॉयलेट सोप, सौंदर्य साबुन, शैंपू और टूथपेस्ट जैसे प्रोडक्ट भी लॉन्च कर दिए. इनमें से कुछ सफल भी रहे और कुछ लोगों की पसंद ना बन पाए. हालत चाहे जैसे भी हों लेकिन निरमा एक ब्रांड के रूप में हमेशा बना रहा.
यूनिवर्सिटी की स्थापना
1995 में करसन पटेल ने निरमा को एक अलग पहचान तब दी जब उन्होंने अहमदाबाद में निरमा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की. इसके बाद 2003 में उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और निरमा यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की स्थापना भी की.
फोर्ब्स ने यह जानकारी दी थी कि एक साल में निरमा पाउडर की सेल आठ लाख टन है. 2005 में फोर्ब्स के अनुसार करसन पटेल की कुल संपत्ति 640 मिलियन डॉलर थी जो जल्द ही 1000 मिलियन डॉलर को छूने वाली थी. वहीं फोर्ब्स के अनुसार करसन पटेल की संपत्ति आज की तारीख में 4.1 बिलियन है. अपने घर से सर्फ कंपनी की शुरुआत करने वाले करसन भाई पटेल आज दुनिया के बिलिनीयर्स की सूची में 775वें तथा भारत के सबसे धनी लोगों की सूची में 39वें स्थान पर हैं. इन सब में सबसे बड़ी कामयाबी इनके लिए ये है कि इन्होंने अपनी बेटी के नाम को दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया. आज निरमा को हर कोई जानता है.