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राम मंदिर की पूरी कहानी: बाबरी मस्जिद से प्राण प्रतिष्ठा तक, आयोध्या में कब-क्या हुआ?

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आखिरकार करीब 500 साल बाद अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो गई, और इसी के साथ 22 जनवरी, 2024 की तारीख भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गई. श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में भव्य राम मंदिर के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी गई, तो आइए जानते हैं कि बाबरी मस्जिद से प्राण प्रतिष्ठा तक, आयोध्या में कब-क्या हुआ, और क्या है राम मंदिर का कहानी?

राम मंदिर की जगह कैसे बनी बाबरी मस्जिद?

प्राचीन काल में उज्जैन के एक महाराज हुआ करते थे. नाम था विक्रमादित्य. ऐसी मान्यता है कि अयोध्या नगरी का पुनरुद्धार कराते वक्त उन्होंने रामजन्मभूमि पर एक भव्य राम मंदिर बनवाया था, जिसे 16वीं सदी की शुरुआत में मुगलों ने तोड़ दिया. इतिहासकारों के मुताबिक 1528-29 के बीच मुगल शासक बाबर के कमांडर मीर बाकी ने इस पुराण कालीन मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था.

उसने बाबर के सम्मान में इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद रखा था. हालांकि समय के साथ जब मुगलों का शासन कमजोर पड़ा तो रामलला के जन्मस्थल को वापस पाने की लड़ाई शुरू हुई. वो साल 1858 था, जब पहली बार परिसर में हवन, पूजन करने पर एक एफआईआर हुई. इसका हल निकालते हुए प्रशासन ने विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिंदुओं को अलग-अलग पूजा और नमाज की इजाजत दे दी. हालांकि, मसला हल नहीं हुआ और 1885 में राम जन्मभूमि के लिए लड़ाई अदालत पहुंची.

राम जन्मभूमि के लिए कब शुरु हुई कानूनी लड़ाई?

निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने फैजाबाद के न्यायालय में स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा दायर कर दिया. दास ने बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की मांग की. जज ने फैसला सुनाया कि वहां हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार है, लेकिन वे जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते.

आगे देश के आजादी के करीब दो साल बाद 1949 को ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे भगवान राम और माता सीता की मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ, जिसके बाद हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 को सिविल जज, फैजाबाद की अदालत में एक मुकदमा दायर करते हुए ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की. करीब 11 महीने बाद 5 दिसंबर 1950 को ऐसी ही मांग करते हुए महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दाखिल किया.

विवादित ढांचा और मुकदमों का एक लंबा दौर

मुकदमे में दूसरे पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग रखी गई. 3 मार्च 1951 को गोपाल सिंह विशारद मामले में न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी. ऐसा ही आदेश परमहंस की तरफ से दायर मुकदमे में भी दिया गया. 17 दिसंबर 1959 को रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के छह व्यक्तियों ने मुकदमा दायर कर इस स्थान पर अपना दावा ठोका. साथ ही मांग रखी कि रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर उन्हें पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए. यह उनका अधिकार है.

मुकदमों की कड़ी में एक और मुकदमा 18 दिसंबर 1961 को दर्ज किया गया. ये मुकदमा यूपी के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दायर किया. दावा किया गया कि यह जगह मुसलमानों की है. ढांचे को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को दे दिया जाए. ढांचे के अंदर से मूर्तियां हटा दी जाएं. इस तरह ये मामले न्यायालय में चलते रहे.

कानूनी लड़ाई के फलस्वरूप 1 फरवरी 1986 को एक बड़ा फैसला आया, जब फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पाण्डेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया. फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में दायर अपील खारिज हो गई.

आडवाणी ने शुरु की रथ यात्रा, विवादित ढांचा गिरा

90 के दशक में लाल कृष्ण अडवाणी राम जन्मभूमि में मंदिर की मांग करते हुए देशभर में एक रथ यात्रा शुरू की. परिणाम स्वरूप राम जन्मभूमि आंदोलन को धार मिलती है और 6 दिसंबर 1992 के दिन अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवक विवादित ढांचा गिरा देते हैं. इसके साथ ही उसी जगह पर एक अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर देते हैं. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान यूपी सहित देश में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई. इस मामले में भाजपा के कई नेताओं समेत हजारों लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया.

अप्रैल 2002 में उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू हुई. उच्च न्यायालय ने 5 मार्च 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया. 22 अगस्त 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी. इसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) होने की बात कही गई.

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया. न्यायाधीशों ने बीच वाले गुंबद के नीचे जहां मूर्तियां थीं, उसे जन्मस्थान माना. इसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा. 21 मार्च 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की. यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है. अयोध्या में राम जन्मभूमि की लड़ाई अब देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच चुकी थी.

134 साल से चली आ रही लड़ाई में अंतिम फैसला

21 मार्च 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की. यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है. 6 अगस्त 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की. 16 अक्तूबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई पूरी हुआ और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. इससे पहले 40 दिन तक लगातार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. 9 नवंबर 2019 को 134 साल से चली आ रही लड़ाई में अब वक्त था अंतिम फैसले का. 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना.

कोर्ट ने 2.77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी. वहीं, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया गया. इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को शामिल करे. इसके अलावा यह भी आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए. इसी के साथ दशकों से चली आ रही लंबी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई.

अयोध्या के मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा

कोर्ट के इस फैसले बाद श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया जाता है और 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रख दी गई. तब से लगातार मंदिर निर्माण का काम जारी है और अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर बन रहा है. राम जन्मभूमि पर मंदिर के पहले चरण का काम पूरा हो गया है. इसी क्रम में 22 जनवरी 2024 को मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई, और मंदिर आम लोगों को मिल गया.

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