एक ऐसी झील जो सर्दियों के मौसम में पूरी तरह से बर्फ से ढक जाती है. फिर गर्मियों का मौसम आता है, और धीरे-धीरे बर्फ पिघलने लगती है. आप सोच रहे होंगे कि भला इसमें क्या रॉकेट साइंस है? जी बिलकुल नहीं है!
यह तो प्रकृति का नियम है. लेकिन, यहां धीरे-धीरे बर्फ पिघलने लगती है और उसी के साथ सैकड़ों नरकंकाल उभर आते हैं. इस झील का मंजर कुछ ऐसा होता है कि आप देखकर चौंक उठेंगे.
यहां चारों तरफ मानव हड्डियां और खोपड़ियां बिखरी होती हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इतनी भारी मात्रा लोगों के साथ क्या हुआ होगा, जो आज कंकालों की झील में बदल गए हैं.
इसके पीछे बहुत सी थ्योरी हैं, लेकिन आखिरकार इसके पीछे की वजह को भी खोज लिया गया है. तो आइये जानते हैं इस झील की कहानी जिसमें दफन हैं सैकड़ों कंकाल!
1942 में मिली नरकंकालों से भरी ये झील
रूपकुंड झील उत्तराखंड के चमोली जिले में हैं. यह हिमालय में बसी एक छोटी-सी घाटी में मौजूद है. यह 16499 फिट ऊंचे हिमालय पर है. यह चारों तरफ से बर्फ और ग्लेशियर से घिरी हुई है.
यह झील बहुत ही गहरी है. इसकी गहराई लगभग 2 मीटर है. यह झील टूरिस्टों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है. यहां रोमांचक यात्रा के शौक़ीन लोगों का तांता लगा रहता है.
टूरिस्ट यहां ट्रैकिंग करते हुए पहुँचते हैं और इस जगह पर मौजूद नरकंकालों को देख अचंभित होते हैं. रूपकुंड झील में मौजूद नरकंकालों की खोज सबसे पहले 1942 में हुई थी.
इसकी खोज एक नंदा देवी गेम रिज़र्व के रेंजर एच.के माधवल द्वारा की गई थी. इस जगह के बारे में नेशनल जियोग्राफी को पता चला तो, उन्होंने भी यहां अपनी एक टीम भेजी.
उनकी टीम ने इस जगह पर 30 और कंकालों की खोज की थी. साल 1942 से हुई इसकी खोज के साथ आज तक सैकड़ों नरकंकाल मिल चुके हैं. यहां हर लिंग और उम्र के कंकाल पाए गए हैं.
इसके अलावा यहां कुछ गहने, लेदर की चप्पलें, चूड़ियां, नाख़ून, बाल, आदि अवशेष भी मिले. जिन्हें संरक्षित करके रखा गया है. ख़ास बात यह है कि कई कंकालों के सिर पर फ्रैक्चर भी है. जिसके पीछे भी थ्योरी हैं.
इस अनोखी झील से जुड़ी हैं कई किवदंतियां
इस झील से कई सारी कहानियां और किवदंतियां जुड़ी हुई हैं. जिसमें से एक थ्योरी ये मानी गई कि यहाँ पर मौजूद यह खोपड़ियाँ कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह और उनके आदमियों की है.
यह बात 1841 की मानी जाती है जब वह तिब्बत युद्ध के बाद वापिस लौट कर आ रहे थे. माना जाता था कि वह बीच में ही हिमालय क्षेत्र में अपना रास्ता भटक गए. इस पर और भी ज्यादा तब बुरा हुआ, जब मौसम भी ख़राब हो गया. जिसके बाद वो लोग वहीं फंस गए और उनकी भारी ओलों की वजह से मौत हो गई.वहां दूर-दूर तक भी कहीं छिपने की जगह नहीं थी. हिमालय में आये भीषण तूफ़ान की वक़्त से वे लोग अपनी जान नही बचा पाए.
वहीं एक कहानी ये भी थी कि ये नरकंकाल जापानी सैनिकों के हैं, जो भारत में प्रवेश की कोशिश कर रहे थे. कहा जाता था कि इसके बाद इस पर रिसर्च की गई. जिससे पता चला कि यह हड्डियां जापानी लोगों की नहीं हैं बल्कि यह सैकड़ों साल पुरानी हैं. इन कंकालों के पीछे जहाँ सैनिकों और युद्ध से जुड़ी हुई कहानी है. तो वहीं दूसरी ओर स्थानीय लोगों का विश्वास कुछ और ही रहा है. वहां के लोकल लोग इससे जुड़ी हुई एक किवदंती को मानते हैं.
स्थानीय लोगों के अनुसार, कन्नौज के राजा जसधवल अपनी गर्भवती पत्नी रानी बलाम्पा के साथ यहाँ तीर्थ यात्रा पर पर निकले थे. दरअसल, वह हिमालय पर मौजूद नंदा देवी मंदिर में माता के दर्शन के लिए जा रहे थे. वहां हर 12 साल पर नंदा देवी के दर्शन की बड़ी महत्ता थी. राजा बहुत जोरो-शोरों के साथ यात्रा पर निकले थे.
लोगों का कहना था कि बहुत मना करने के बावजूद राजा ने दिखावा नही छोड़ा और वह पूरे जत्थे के साथ ढोल नगाड़े के साथ इस यात्रा पर निकले. मान्यता थी कि देवी इससे से नाराज हो जायेंगी. हुआ भी वही उस दौरान बहुत ही भयानक और बड़े-बड़े ओले और बर्फीला तूफ़ान आया, जिसकी वजह से राजा और रानी समेत पूरा जत्था रूपकुंड झील में समा गया. हालांकि, इस बात की कोई भी आधिकारिक पुष्टि नहीं है.
एक रिसर्च में यह कहा गया कि यहां एक ट्रेकर्स का समूह निकला हुआ था. यह समूह अपने रास्ते म ही था कि अचानक बर्फीला तूफ़ान आ गया. इस दौरान, गेंद जितने बड़े- ओले आसमान से बरस रहे थे.
इस भयानक तूफ़ान से कोई इसी लिए भी नहीं बच पाया, क्योंकि 35 किलोमीटर तक दूर -दूर तक सिर छिपाने की जगह ही नहीं थी. जिसकी वजह से लोगों ने छटपटा कर दम तोड़ दिया. लोगों के सिर और आदि हड्डियों में फ्रैक्चर मिले हैं. जब इन अवशेषों का एक्स-रे किया गया तब इनमें फ्रैक्चर के होने की बात पता चली. यही वजह रही कि इसके ओलों की बात की थ्योरी दी गई थी. साथ उस समय यह माना गया कि यह कंकाल 850AD के दौरान के हैं.
आखिर सुलझ ही गई ‘कंकालों की गुत्थी’
इतनी सारी कहानियों और थ्योरी के बाद आखिरकार अब वैज्ञानिकों ने इसके पीछे के रहस्य को खोज ही लिया है. पहले वैज्ञानिकों ने इस बात पर इस जगह के रहस्य को खत्म कर दिया था कि रूपकुंड झील में करीब 200 नरकंकाल पाए गए हैं. यह सभी नरकंकाल 9वीं शताब्दी के समय के हैं, जो कि भारतीय आदिवासियों के हैं.
इसके अलावा यह कहा गया कि इन सभी लोगों की मौत भीषण ओलों की बारिश होने की वजह से हुई है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने शोध से यह निष्कर्ष निकाला कि ये कंकाल दो ग्रुप्स के हैं. जिसमें से एक ग्रुप में तो एक ही परिवार के सदस्य हैं. जबकि दूसरे समूह के लोग अलग हैं, क्योंकि इनके कद छोटे हैं.
साथ ही, वैज्ञानिकों यह भी कहा कि इन लोगों की मौत किसी हथियार या लड़ाई में नहीं हुई है. इन सभी लोगों की मौत भीषण ओलों के इनके सिर बहुत तेजी से टकराने की वजह से हुई है, जिनका आकार बहुत ही बड़ा था.
तो इस तरह इस रहसयमयी रूपकुंड झील की गुत्थी को सुलझा लिया गया. इसे आज भी लोग एडवेंचर करने के लिए बेहतरीन जगह मानते हैं. अगर आप भी रोमांचक यात्रा के बड़े शौक़ीन हैं तो इस बार बैग पैक करके इस जगह आना न भूलें. अगर आप इस इस झील के बारे में कुछ जानते हैं, तो कमेंट बॉक्स में जरूर शेयर करें.