कुल्लू-मनाली की यात्रा अत्यंत सुखद रही. लगभग तीन दिन वहां रहा. दिल्ली से मुरथल और फिर मुरथल से मनाली के लिए गाड़ी में सवार होकर पहाड़ों की वादियों के बीच जा पहुंचे.
रात हो रही थी इसलिए हमें जल्द ही कृत्रिम रोशनी से लतपथ कोई ठहरने की जगह ढूंढ लेनी चाहिए थी. काश कोई अपना होता जो हाथों में फूलों का हार लेकर हमारे स्वागत में खड़ा होता.
मन में ऐसा विचार आया ही था कि चालक महोदय गाड़ी में ब्रेक मारते हुए कहते हैं, ‘भैया मनाली में घुसने की फीस देनी है’. एक स्वर में हम सब कहते हैं एक और फीस. जितने की दाई नहीं उतने की. हम फीस देकर आगे बढ़ते इससे पहले एक और आवाज़ आई.
प्राकृतिक सुंदरता का उदहारण मनाली
बड़े भैया श्रवण कहते हैं, ”अब क्या हुआ?” मैंने कहा, ”भैया कोई बात करना चाहता है.” खिड़की खोलते ही सज्जन कहता है, ”भैया एक बहुत अच्छा होटल है आपके ठहरने के लिए अगर आप देखना चाहे”. इससे पहले कि हम कोई तर्क-बितर्क करते उसने हमे अपना भव्य प्रस्तुतिकरण दे डाला. हम उससे प्रभावित हुए और उसे अपनी सवारी गाड़ी में बिठाकर उसके बताये स्थान पर पहुंच गए. वक्त काफ़ी हो गया था इससे लिए देर न करते हुए हम तुरंत होटल के कमरों का निरीक्षण करने जा पहुंचे. होटल के कमरे जरूरत के अनुरूप थे.
कृत्रिम दूधिया रोशनी से पूरी तरह लतपथ. लेकिन किराया थोड़ा सा महंगा. हमने शुरुआत में थोड़ा आना-कानी की फिर बातचीत कर, बीच का रास्ता निकल ही लिया. हम सबने अब तय कर लिया था कि अब हम यहीं रहेंगे. इसलिए अपने समान के साथ हम सब अपने-अपने कमरों में पहुंच गए. हम एक लम्बा सफर तय कर चुके थे और सूर्य देवता भी अलविदा कह जा चुके थे. इसलिए हमने भी देरी नहीं की और अपनी प्रिय सखी रात्रि को शुभरात्रि कह निदियां एक्सप्रेस में सवार हो लिए, जो पलकों के प्लेटफॉर्म पर आ चुकी थी.
सुबह सवेरे ही हम सैर पर निकल पड़े. मनाली एक अत्यन्त सुन्दर शहर है. उत्तर प्रदेश से तुलना करता हूं, तो लगता है कि उत्तर प्रदेश को अभी अनेक अच्छी बातों को सीखना और अपनाना बाकी है. साफ़ सुथरा, प्राकृतिक सौंदर्यता और व्यवस्थित है मनाली. पर्यावरण और प्रकृति की सुंदरता से पूरित. वहां लोग साफ-सफाई और कानून के पालन में हमेशा तत्पर दिखे. एक जगह हमारे एक मित्र ने केले के छिकले सड़क पर फेक दिए तो एक सज्जन ने आगे बढ़कर केले के छिकले उठाये और उन्हें खोजकर कूड़ेदान में जगह दी.
फूहड़ व्यवहार मनाली में अकल्पनीय
मुझे व्यक्तिगत रूप से इस छोटी सी घटना ने बहुत प्रभावित किया पहली बार लगा कि मोदी जी का स्वच्छता अभियान सच में कामयाब हो रहा है. हां! रफ़्तार मंद जरूर हो सकती है. मनाली में एक बात और बहुत खास थी जिसमे वहां के लोग अपने काम को पूरी कुशलता के साथ संपन्न करते हैं. कामचोरी की प्रवृत्ति नहीं है. लोग सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि अपने आस-पड़ोस और जनहित का भी ध्यान रखते हैं. उत्तर प्रदेश में देखता हूं कि ड्राइवर तम्बाकू का गुटखा फाड़कर तम्बाकू मुंह में लेता है और गुटखे का कवर खिड़की से बाहर धड़ल्ले से फेंक देता है.
ऐसा फूहड़ व्यवहार मनाली में अकल्पनीय है अगर कोई ऐसा करता दिखता भी होगा तो वह बाहर से आये हम जैसे पर्यटक बंधु ही होते होंगे. उत्तर प्रदेश में आम आदमी को कौन कहे, तथाकथित बड़े लोगों के चाल – ढ़ाल में भी उज्जडता और फूहड़ता दिखाई देती है. गांधी जी कहते थे कि एक आदमी जानवरों के साथ कैसा व्यवहार करता है, इससे उस देश की चेतना के स्तर का पता चलता है. मनाली में लोग अपने पालतू जानवरों को बड़े ही प्यार से रखते हैं. उनकी सुख -सुविधा का भी ध्यान रखते हैं. ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं. क्योकि वहां हमें कोई भी ऐसा कुत्ता नहीं दिखा जो शारीरिक रूप से कमजोर हो. शाम के वक्त एक कुत्ते को देखकर हम सब सहम से गए.
एकदम शेर के तरह डील डॉल था उसका, जिसको देखकर तो कई मित्रों ने भ्रम फैलाना शुरू कर दिया कि यह कुत्ता नहीं है कोई पिशाच है. वो आया भी तो था पहाड़ों के बीच स्थित झाड़ियों से. गजब की बात तो यह थी क्या हम पढ़े लिखे युवाओं में से कुछ सच में मान गए कि वो पिशाच है. सच में हम भारतीय कितना भी आधुनिक होकर इंडिया बनने का दावा क्यों न करते हो लेकिन कही न कही आज भी हममें भारत बसता है. वही भारत जो भूत, पिशाच जैसी चीजों पर आज भी विश्वास करता है. खैर छोड़िये यह सब…!
दुकानें संस्कृति को संजोए हुए हैं
हम आगे बढ़ते हैं और बात करते है मनाली के बाजारों में बसी दुकानों की जो अपने आंचल में कुल्लू की संस्कृति को संजोए हुए हैं, जिनमें यहां के लोगों की कारीगरी साफ तौर पर देखने को मिलती है और मोदी जी के स्किल इंडिया अभियान को कहीं न कहीं उड़ान देती है. मैं एक दुकान में गया , जहा ढेर सारे ऊनी कपड़ें लदे पड़े थे.
जिनमें वहां के लोगों के हाथों की कारीगरी देखते ही बनती थी. एक चीज तो आज भी हमारे चेहरे पर मुस्कान ला देती है. एक दुकान पर रखी एक टोपी के ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था की टोपी पहनकर तस्वीर खिचाना मना है. यकीन मानिये अगर वहां ऐसा न लिखा होता तो पक्का हम सब सेल्फ़ी के खुमार में टोपी पहनकर फोटो जरूर खिचाते. मनाली में बने होटलों की बात करें तो वह वास्तुशिल्प और सुंदरता के अनूठे नमूने हैं.
मैं जहां था, वह मनाली का एक अंश मात्र था. पर हर ओर पूरी सम्पन्नता और सुघड़ता व्याप्त थी. कोई भी दृश्य ऐसा नही था, जो आंखों को खटके या जिससे मन का स्वाद बिगड़े. मनाली से हम रोहतांह भी गए.
रोहतांग जाना एक अद्भुत अनुभव रहा
रोहतांक जाने की इच्छा बहुत पहले से थी. कई मित्रों के मुह से रोहतांग के बारे में सुना था. जितना सुना था रोहतांग उससे भी जादा खूबसूरत था. गजब की सौम्यता, गजब का सुकून. ठंडी हवाए तो मनो तन-बदन को चीर सी रही थी फिर भी हमने खड़े रहने का साहस दिखाया और प्रकृति के हर एक मंजर का लुप्त लिया. कुछ एक घंटे में तेज हवाओं का कहर बढ़ गया और हमें न चाहते हुए भी वापस आना पड़ा. रोहतांग जाना एक अद्भुत अनुभव रहा.
रोहतांग के बाद हमारा काफिला कुल्लू-कसोल होते हुए मणिकरण मंदिर पंहुचा. मणिकरण के बारे में एक बात सुनी थी कि वहां जमीन के अंदर से गरम पानी निकलता है. यहां छोटे-छोटे कुण्ड बने हुए हैं, जिनको देखने के लिए हम सब बहुत उत्साहित थे और हमारा यही उत्साह हमे वहां ले गया था. पहुंचते ही हम तेजी से गाड़ी से उतरे और वह स्तिथि श्री राम मंदिर के दर्शन करते हुए वह आयोजित भंडारे में भोज किया. वक्त कम था. इसलिए हमने ज्यादा वक्त वहां नहीं गुजारा और मणिकरण साहब की गुरूद्वारे की ओर बड़ गए.
मणिकरण गुरूद्वारे से पहले हम उस कुण्ड पर जा पहुंचे जिसका हमे एक अरसे से इंतजार था. कुण्ड का पानी हमारी उम्मीद से बहुत जादा गरम था. इतना कि हम अधिक देर तक अपने हाथ भी उसमें नहीं रख सकते थे. पर जब सुना कि कुण्ड में नहाने से त्वचा सबंधी सारे रोग दूर होते है तो हमने साहस दिखाते हुए वहां स्नान करने का मन बनाया और कुण्ड में डुबकी लगा ही दी. कुछ देर तक हमारा बदन पानी की गर्माहट महसून नहीं कर पाया, लेकिन कुछ देर बाद हमें आनंद आने लगा. अचानक हमारी नजर दीवार पर लिखे हुए सावधानी सन्देश पर गई, जिस पर लिखा था की ज्यादा देर तक कुण्ड में रहना हानिकारक हो सकता है.
वापसी में गूंजते रहे अनुभवों के किस्से
यह पढ़ते ही हम तुरंत कुण्ड से बहार आ गए और मनिकरण साहब के गुरूद्वारे में मत्था टेकते हुए वापसी के लिए अपनी गाड़ी में सवार हो गए. वापसी में हमारी जुबान पे बस इन अनूठे अनुभवों के किस्से ही गूंजते रहे. साथ ही वहां की बहुचर्चित चीज लुघड़ी की खोज के लिए जगह-जगह रुकते रहे.
लुघड़ी एक पेय पदार्थ था जिसको चावल आदि से बनाया जाता है. हमें लुघड़ी नहीं मिल रही इसलिए हम निराश थे. लेकिन फिर कहीं न कहीं आशाएं जिन्दा थीं और इन्हीं जीवित आशाओं ने हमें लुघड़ी तक पंहुचा ही दिया. एकदम छोटे से अर्ध निर्मित छत के नीचे हमने लुघड़ी का खूब आनंद लिया और जब आत्मा तृप्ति हो गई तो हम बड़ चले.
अब शरीर जवाब दे रहा था. इसलिए हम चुपचाप गाड़ी में सवार हो गए और दिल्ली की और बड़ चले. रास्ते में सिर्फ भोजन के लिए चंडीगढ़ की आस-पास कहीं रुके और अर्धनिद्रा में भोजन के साथ चाय की चुस्कियां लेते हुए अपने गन्तव्य की और बढ़ चले. अंत में मैं यही कहूंगा कि हमारी संस्कृति जरूर महान है, पर हम अपनी संस्कृति के अनुकूल सभ्य नहीं बन पाये हैं. यदि हम मनाली के सौम्यता जैसे कुछ एक गुणों को अपने दैनिक जीवन में शुमार कर ले, तो हमारे क़दमों में सारी दुनिया झुक सकती है.
कैसे पहुंचे कुल्लू मनाली, कौन-कौन से हैं तरीके?
कुल्लू-मनाली की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से मई और अक्टूबर से नवंबर के बीच माना जाता है. दरअसल, इन महीनों में यहां का मौसम बेहद सुहावना होता है. मनाली सीधे रूप से हवाई और रेल मार्ग के जरिए नहीं जुड़ा है, फिर भी प्रमुख टूरिस्ट डेस्टिनेशन होने के कारण यहां यातायात के साधनों की कमी नहीं है. अधिकतर पर्यटक यहां सड़क के रास्ते ही आते हैं. मनाली के लिए कई शहरों से सीधी बस सेवा उपलब्ध हैं.
आप चाहें तो अपनी निजी गाड़ी, या कैब भी ले सकते हैं. ट्रेन के सफर की बात करें तो मनाली आप लास्ट चंडीगढ़ तक जा सकते हैं. इसके आगे सड़क का रास्ता चुनाना होगा. फ्लाइट भी एक ऑप्शन है. मनाली से करीब 52 किलोमीटर दूर भुंतर एयरपोर्ट पड़ता है, दिल्ली से यहां फ्लाइट चलती है.