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Parle-G कैसे बना दुनिया में सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला बिस्किट, आजादी से पहले रखी गई थी नींव

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G माने Genius’. यह एक लाइन सुनते ही हर कोई जान जाता है कि आखिर यह किसके लिए है. भारत में आज शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने कभी ‘पार्ले-जी’ के बारे में नहीं सुना होगा. यह ही वह बिस्किट है, जो आजादी के पहले से लोगों की चाय का साथी बना हुआ है. बच्चों से लेकर बड़ों तक हर किसी के लिए यह खास है.

लोगों की कितनी ही यादें इससे जुड़ी हुई हैं. इतना ही नहीं पार्ले-जी ही वह पहला बिस्किट था, जो भारत में बना और आम भारतीयों के लिए बना. तो चलिए जानते हैं कि आखिर पार्ले-जी कैसे बना देश का लोकप्रिय बिस्किट

भारत की आजादी से पहले रखी गई थी नींव

पार्ले-जी आज या कल का नहीं बल्कि कई सालों पुराना प्रोडक्ट है. भारत की आजादी से पहले इसकी नींव रखी गई थी. हालांकि, पार्ले-जी के आने से पहले इसकी कंपनी पार्ले शुरू की गई थी. भारत की आजादी से पहले देश में काफी अंग्रेजों का दबदबा था. विदेशी चीजें हर जगह भारतीय मार्किट में बेचीं जाती थीं.

इतना ही नहीं उनके दाम भी काफी ज्यादा होते थे इसलिए सिर्फ अमीर ही उनका मजा ले पाते थे. उस समय अंग्रेजों द्वारा कैंडी लाई गई थी. मगर वह भी सिर्फ अमीरों तक ही सीमित थी.

ये बात मोहनलाल दयाल को पसंद नहीं आई. वह स्वदेशी आंदोलन से काफी प्रभावित थे और इस भेदभाव को खत्म करने के लिए उन्होंने उसका ही सहारा लिया. उन्होंने सोच लिया कि वह भारतीयों के लिए भारत में बनी कैंडी लाएंगे ताकि वह भी इसका मजा ले सके. इसके लिए वह जर्मनी निकल गए थे. वहां उन्होंने कैंडी बनाना सीखा और 1929 में 60,000 रूपए में खरीदी कैंडी मेकर मशीन को अपने साथ भारत वापस लेकर आए.

यूं तो मोहनलाल दलाल का अपना खुद का रेशम का व्यापार था मगर फिर भी उन्होंने भारत आकर एक नया व्यापार शुरू किया. उन्होंने मुंबई के पास स्थित इर्ला-पार्ला में एक पुरानी फैक्ट्री खरीदी.

कंपनी के पास शुरुआत में सिर्फ 12 कर्मचारी थे

कंपनी के पास शुरुआत में सिर्फ 12 कर्मचारी ही थे और यह सब भी मोहनलाल दयाल के परिवार वाले ही थे. उन सब ने मिलकर दिन-रात एक किए और पुरानी सी उस फैक्ट्री को एक नया रूप दिया. हर कोई कंपनी को बनाने में इतना व्यस्त हो गया कि उन्होंने यह नहीं सोचा कि आखिर इसका नाम क्या रखा जाए. जब कोई भी नाम समझ नहीं आया, तो आखिर में कंपनी का नाम उस जगह के नाम पर रखा जहां उसकी शुरुआत हुई थी.

कंपनी पार्ला में खोली गई थी इसलिए इसका नाम थोड़े बदलाव के साथ ‘पार्ले’ रखा गया. इसके बाद फैक्ट्री में जो सबसे पहली चीज बनाई गई वह थी एक ‘ऑरेंज कैंडी’. इतना ही नहीं वह कैंडी काफी पसंद की गई और थोड़े ही वक्त में पार्ले ने कई और कैंडी बनाई. 1929 में पार्ले कंपनी शुरू करके मोहनलाल दयाल ने कैंडी को तो भारतीयों तक ला दिया था मगर अभी कई और चीजें लानी भी बाकी थी. इनमें जो सबसे ऊपर था, वह था बिस्किट.

अंग्रेज अपनी चाय के साथ बिस्किट खाया करते थे मगर यह भी सिर्फ अमीरों तक ही सीमित थे. इसलिए मोहनलाल दयाल ने सोचा क्यों न कैंडी की तरह बिस्किट भी भारत में ही बनाए जाए. इसके बाद 1939 में उन्होंने शुरुआत की ‘पार्ले-ग्लूको’ की. गेहूं से बना ये बिस्किट इतने कम दाम का था कि भारतीय इसे खरीद सकते थे.

देखते ही देखते आम लोगों के बीच लोकप्रिय हुआ

इसका सिर्फ दाम ही कम नहीं था बल्कि इसका स्वाद भी काफी बढ़िया था. देखते ही देखते आम लोगों के बीच ये काफी प्रसिद्ध होने लगा. माना जाता है कि न सिर्फ भारतीय बल्कि कई ब्रिटिशर्स भी पार्ले-ग्लूको का स्वाद लिया करते थे. जिस साल पार्ले-ग्लूको शुरू हुआ उसी साल दूसरे विश्व युद्ध का बिगुल भी बज गया था.

भारत के कई सैनिकों को दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटेन की तरफ से लड़ने के लिए भेजा गया. कहते हैं कि उस समय सैनिक आपातकालीन स्थिति के लिए अपने साथ पार्ले-ग्लूको के पैकेट ही ले गए थे. शायद वह भी जानते थे कि यह बिस्किट न सिर्फ उनकी मदद करेंगे बल्कि इसमें मौजूद ग्लूकोज उन्हें ताकात भी देगा.

पार्ले-ग्लूको इतनी तेजी से आगे बढ़ा कि मार्किट में मौजूद ब्रिटिश ब्रांड के बिस्किट पीछे होने लगे. हर कोई इसकी पॉपुलैरिटी के आगे झुकने लगा था. दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म होने तक पार्ले-ग्लूको एक काफी बड़ा ब्रांड बन चुका था. हालांकि, विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद पार्ले-ग्लूको को अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ा.

कुछ वक्त के लिए रोकना पड़ा था प्रोडक्शन

ऐसा नहीं था कि कंपनी घाटे में चल रही थी या उनके पास प्रोडक्शन के लिए पैसा नहीं था. प्रोडक्शन बंद करने की असली वजह थी कि देश में गेहूं की कमी. एक बार जैसे ही भारत 1947 में अंग्रेजों के राज से मुक्त हुआ और देश का विभाजन हुआ, तो ये कमी और भी बढ़ गई. पार्ले कंपनी को इतना रॉ मटेरियल मिल ही नहीं रहा था कि वह प्रोडक्शन जारी रख पाए. ऐसे में कुछ वक्त के लिए उन्हें अपना पूरा प्रोडक्शन रोकना पड़ा. प्रोडक्शन रुकने के कुछ समय बाद ही लोगों को पार्ले-ग्लूको की कमी सताने लगी थी. कंपनी को भी इसका एहसास हुआ.

इसलिए उन्होंने अपने ग्राहकों से कहा कि गेहूँ की कमी के कारण वह बिस्किट नहीं बना सकते हैं. कंपनी द्वारा यह वादा भी किया गया कि जैसे ही हालात सुधरेंगे प्रोडक्शन फिर से शुरू कर दिया जाएगा. इसके कुछ समय बाद ही सब फिर से ठीक हो गया और फिर से लोगों को अपना पसंदीदा पार्ले-ग्लूको मिलने लगा.

1982 वह साल था, जब पार्ले-ग्लूको का नाम बदलकर उसका नाम पार्ले-जी कर दिया गया. कंपनी का नाम बदलने का कोई इरादा नहीं था मगर उन्हें यह मजबूरन करना पड़ा. ग्लूको शब्द ग्लूकोज से बना था. पार्ले के पास इसका कोई कॉपीराइट नहीं था इसलिए कोई भी इसे इस्तेमाल कर सकता था.

बिस्किट ब्रांड्स ने फायदा उठाने की कोशिश की 

इसी चीज का फायदा उन बिस्किट ब्रांड्स ने उठाया, जो अभी तक पार्ले-ग्लूको से पीछे चल रहे थे. देखते ही देखते मार्किट में बहुत सारे ग्लूको बिस्किट आ गए. हर कोई अपने बिस्किट के नाम के पीछे ग्लूको या ग्लूकोज का इस्तेमाल करने लगा. इसके कारण लोग पार्ले-ग्लूको और बाकी बिस्किट के बीच में फंस गए. लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर उन्हें कौन सा बिस्किट चाहिए. वह दुकान पर बस ग्लूकोज बिस्किट मानते और दुकानदार उन्हें किसी भी कंपनी का बिस्किट दे देता. इसके कारण पार्ले-ग्लूको की सेल्स पर काफी असर पड़ा.

यही कारण रहा है कि 1982 में उन्होंने फैसला किया कि अब वह अपने नाम से ग्लूको हटाकर सिर्फ ‘जी’ को रखेंगे. इसके साथ ही उन्होंने नाम बदलकर एक और नई शुरुआत की. बदलते वक्त के साथ पार्ले-जी ने भी कई नई चीजों को अपनाया. इसमें सबसे पहले आया उनका पहला टीवी कमर्शियल.

भारत में टीवी बढ़ते जा रहे थे और विज्ञापनों के लिए यह एक बढ़िया माध्यम बन गया था. पार्ले-जी ने भी इसका फायदा उठाना चाहा और उन्होंने 1982 में ही अपना पहला टीवी कमर्शियल लांच कर दिया. उन्हें लगा नहीं था मगर इसके कारण देखते ही देखते उनकी सेल्स आसमान छूने लगी थी. 1991 तक तो पार्ले-जी भारत में बिस्किट की दुनिया का राजा बन चुका था. 1991 में बिस्किट मार्किट का 70% हिस्सा पार्ले-जी के नाम पर था.

जब लोगों की जुबां पर पार्ले-जी का ही स्वाद लगा

मार्किट में और भी बहुत से ब्रांड थे, बहुत से फ्लेवर थे मगर लोगों की जुबां पर तो सिर्फ पार्ले-जी का ही स्वाद लगा हुआ था. यह बहुत ही तेजी से खरीदा जा रहा था और इसकी एक वजह थी टीवी से खुद को जोड़ देना. इसके बाद तो पार्ले कंपनी को समझ आ गया कि टीवी पर विज्ञापनों से वह अपनी सेल्स काफी बढ़ा सकते हैं. इसलिए 1998 के दौरान जब उनकी सेल्स थोड़ी कम होने लगी, तो उन्होंने ‘शक्तिमान’ के साथ खुद को जोड़ने का फैसला किया.

उस वक्त पर शक्तिमान सबका पसंदीदा सुपरहीरो था. माना जाता है कि शक्तिमान की कही बात तो बच्चे झट से मान जाते थे. इसलिए जैसे ही शक्तिमान ने पार्ले-जी का विज्ञापन किया, तो हर किसी में पार्ले-जी बिस्किट खरीदने की होड़ लग गई. सिर्फ विज्ञापन ही नहीं अपनी आकर्षक लाइन्स के लिए पार्ले-जी काफी पसंद किया गया जैसे, G माने Genius, स्वाद भरे-शक्ति भरे पार्ले-जी, हिन्दुस्तान की ताकत और रोको मत, टोको मत आदि.

ऐसी ही कई लाइन्स के साथ पार्ले-जी अपने ग्राहकों को अपने साथ बनाए रख पाने में कामयाब हुआ. टीवी कमर्शियल ने वाकई में पार्ले-जी को फिर से शिखर पर पहुंचा दिया था. पार्ले-जी इतनी तेजी से आगे बढ़ने लगा था कि कोई और ब्रांड तो इसके आगे दिखाई भी नहीं देता था. इसकी सेल इतनी ज्यादा थी कि न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी कोई बिस्किट इतनी संख्या में नहीं बेचे जाते थे.

दुनिया में सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला बिस्किट बना

यही कारण रहा है कि 2003 में पार्ले-जी को दुनिया में सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला बिस्किट घोषित किया गया. जैसे-जैसे वक्त बीता पार्ले-जी एक साम्राज्य की तरह हो गया. 2012 में जब कंपनी ने बताया कि सिर्फ बिस्किट की उन्होंने करीब 5000 करोड़ की सेल की है तो हर कोई हैरान हो गया! पार्ले-जी भारत का पहला ऐसा FMCG ब्रांड बना जिसने यह आंकड़ा छुआ. तब से अब तक पार्ले-जी की प्रोडक्शन पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है.

आंकड़ों की माने तो हर साल कंपनी करीब 14,600 करोड़ बिस्किट बनाती है. ये सभी बिस्किट करीब 6 मिलियन स्टोर्स में भेजे जाते हैं. इसकी वजह से ही आज कंपनी करीब 16 मिलियन डॉलर का रेवेन्यू कमा पाती है. यह दर्शाता है कि भले ही इतने वक्त में मार्किट में कई बदलाव आ गए हैं मगर पार्ले-जी ने कैसे न कैसे खुद को आज भी बनाए रखा है. आज भी बच्चों से लेकर बड़ों तक हर किसी को ये पसंद आता है.

पार्ले-जी कल भी हिट था और आज भी हिट है

पार्ले-जी कल भी हिट था और आज भी हिट है. इतने सालों के बाद भी इसकी साख कम नहीं हुई है. आज भी यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है. यह दर्शाता है कि इसमें वह स्वाद है जिसे लोग अपनी जुबां से हटाना नहीं चाहते हैं

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ए.आर. रहमान और साइरा बानो का हुआ तलाक, सोशल मीडिया पर छलका बेटे का दर्द

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मशहूर संगीतकार ए.आर. रहमान और उनकी पत्नी साइरा बानो ने हाल ही में अलग होने का फैसला किया है। मंगलवार रात को उनके वकील वंदना शाह ने एक बयान जारी कर इसकी जानकारी दी।

बयान में कहा गया है, “कई सालों की शादी के बाद, श्रीमती साइरा ने अपने पति श्री ए.आर. रहमान से अलग होने का कठिन फैसला किया है। यह फैसला उनके रिश्ते में काफी भावनात्मक तनाव के बाद आया है। एक-दूसरे के लिए गहरे प्यार के बावजूद, दंपति ने पाया है कि तनाव और कठिनाइयों ने उनके बीच एक अपार खाई पैदा कर दी है, जिसे इस समय कोई भी पार्टी पाटने में सक्षम नहीं है। श्रीमती साइरा इस कठिन समय में जनता से गोपनीयता और समझदारी का अनुरोध करती हैं।”

इस घोषणा के कुछ समय बाद, दंपति के बेटे, ए.आर. अमीन ने इंस्टाग्राम पर इस मामले को संबोधित करते हुए गोपनीयता का अनुरोध किया और इस दौरान सभी की समझदारी के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने लिखा, “हम सभी से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करते हैं कि इस दौरान हमारी निजता का सम्मान करें। आपकी समझ के लिए धन्यवाद।”

नासरीन मुन्नी कबीर की किताब “ए.आर. रहमान: द स्पिरिट ऑफ म्यूजिक” के लिए एक पुराने साक्षात्कार में, रहमान ने अपनी पत्नी और उनके साथ की गई यात्रा को याद किया। उन्होंने साझा किया कि 1994 में, 27 साल की उम्र में, उन्होंने शादी करने का फैसला किया, मजाक में कहा कि उन्हें लग रहा था कि वे बूढ़े हो गए हैं। उन्होंने याद किया कि कैसे उनकी माँ और बहन, फातिमा ने पहली बार चेन्नई में सूफी संत मोती बाबा के मंदिर में साइरा से मुलाकात की थी, इस प्रक्रिया को बेहद सहज और आसान बताते हुए।

दंपति ने 1995 में शादी की और उनका एक बेटा अमीन और दो बेटियाँ खतीजा और राहीमा हैं। इस जोड़े के लंबे समय तक चले रिश्ते को देखते हुए, उनके अलग होने की खबर से प्रशंसक हैरान रह गए।

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Shinchan Cartoon की कहानी: कैसे असल जिंदगी की घटना बनी इस लोकप्रिय कार्टून की प्रेरणा?

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Favourite Cartoon: Shinchan

Shinchan Cartoon Real Story: शिनचैन कार्टून को देखकर हर कोई हंस पड़ा है और बच्चों के बीच यह बहुत ही लोकप्रिय रहा है। हंगामा टीवी पर आने वाला यह कार्टून न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में पसंद किया गया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिनचैन की कहानी सिर्फ एक काल्पनिक कहानी नहीं है?

इसके पीछे एक असली जिंदगी की घटना छिपी हुई है। यह कहानी एक मां और उसके बच्चों की दिल छूने वाली कहानी है, जो एक वास्तविक घटना से प्रेरित है। आइए, इस लेख में जानते हैं कि शिनचैन की असली कहानी क्या है और कैसे इस कार्टून का जन्म हुआ।

शिनचैन: जापान का प्रसिद्ध कार्टून

शिनचैन जापान के सबसे प्रसिद्ध कार्टून में से एक है। इसे न केवल जापान में, बल्कि भारत और अन्य देशों में भी बहुत सराहा गया है। यह कार्टून एक जापानी मंगा सीरीज पर आधारित है और 1990 में जापान की वीकली मैगजीन “मंगा एक्शन” में पहली बार प्रकाशित हुआ था, जिसे फ़ुतबाशा ने प्रकाशित किया था.

शिनचैन की असली कहानी क्या है?

शिनचैन की कहानी एक दिल दहला देने वाले सच पर आधारित है। असल में, शिनचैन की मौत हो चुकी है। यह कहानी जापान की है, जहां एक महिला मिसाई रहती थी। मिसाई के दो बच्चे थे। एक का नाम शिनचैन था और दूसरी का हिमावारी। कार्टून में अक्सर दिखाया जाता है कि शिनचैन की मां को शॉपिंग का बहुत शौक था, और असल में भी मिसाई को शॉपिंग करना बहुत पसंद था। एक दिन, मिसाई अपने दोनों बच्चों को लेकर शॉपिंग सेंटर गई।

शॉपिंग में व्यस्त होने के कारण उसने शिनचैन से हिमावारी का ध्यान रखने को कहा। दोनों बच्चे छोटे थे और शिनचैन को खिलौनों का बहुत शौक था, इसलिए वे दोनों टॉय सेक्शन में चले गए। जब शिनचैन ने देखा कि उसकी बहन हिमावारी टॉय सेक्शन में नहीं है, तो उसने उसे ढूंढना शुरू किया।

लेकिन हिमावारी स्टोर से बाहर निकल चुकी थी और सड़क पार कर रही थी, जहां तेज चलती हुई गाड़ियों का जमावड़ा था। शिनचैन ने देखा कि उसकी बहन अकेले सड़क पार कर रही है, तो वह उसे बचाने के लिए दौड़ा। इसी बीच एक तेज रफ्तार गाड़ी आई और दोनों का एक्सीडेंट हो गया, जिससे दोनों की मौत हो गई।

मां का दुख और शिनचैन का जन्म

बच्चों की मौत ने मिसाई को गहरा सदमा पहुँचाया। वह अपने बच्चों की याद में दिन-रात रोती रहती थी और उनके लिए डायरी लिखती थी, साथ ही उनकी पेंटिंग भी बनाती थी। जापान के प्रसिद्ध कार्टून लेखक योशिता ओतसोइ को इस दुखद घटना का पता चला और उन्होंने इस पर एक कार्टून बनाने का निर्णय लिया। इस तरह, शिनचैन का कार्टून दुनिया के सामने आया और लोगों ने इसे प्यार से स्वीकार किया।

शिनचैन की असली कहानी एक भावनात्मक यात्रा को दर्शाती है, जो बताती है कि एक साधारण कार्टून के पीछे एक गहरा और सच्चा दिल छिपा हुआ है।

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भारतीय इतिहास की 6 बेहतरीन पुस्तकें जिन्हें हर भारतीय को पढ़ना चाहिए

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best books on Indian history that every Indian should read

Best Indian History Books: भारत का इतिहास एक लंबे और गौरवशाली अतीत का गवाह है। यहाँ पर कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी हैं, जिनकी चर्चा हमेशा की जाती है। विशेष रूप से भारत में मुगलों और अंग्रेजों के शासन के दौरान हुए अत्याचार और गुलामी का इतिहास अब भी लोगों के बीच चर्चा का विषय है। इस लेख में हम आपको भारतीय इतिहास की कुछ प्रमुख किताबों के बारे में जानकारी देंगे, जिन्हें हर भारतीय को जरूर पढ़ना चाहिए। ये किताबें भारतीय इतिहास की सबसे बेहतरीन पुस्तकों में से हैं, जो आपके ज्ञान को बढ़ाने में मदद करेंगी।

1. हिंदुत्व (Savarkar)

हिंदुत्व एक ऐसा शब्द है जो आज भी मानवता के लिए प्रेरणादायक है। यह पुस्तक वीर सावरकर द्वारा लिखी गई है और इसमें हिंदुत्व की परिभाषा और इसका ऐतिहासिक महत्व बताया गया है। यह किताब केवल धार्मिक या आध्यात्मिक इतिहास नहीं, बल्कि एक व्यापक ऐतिहासिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक हिंदू जाति के अस्तित्व और पराक्रम को दर्शाती है और इसे भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण किताब माना जाता है।

2. भारत विभाजन

भारत विभाजन सरदार पटेल के जीवन और उनके विचारों पर आधारित एक महत्वपूर्ण किताब है। इस पुस्तक में 1947 के विभाजन की परिस्थितियों और कारणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह किताब बताती है कि कैसे विभाजन ने भारत की एकता को प्रभावित किया और इसके परिणामस्वरूप क्या हुआ। यह भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना की पूरी कहानी को प्रमाणित तथ्यों के साथ प्रस्तुत करती है।

3. भारतीय कला एवं संस्कृति

भारतीय कला एवं संस्कृति किताब भारतीय कला, चित्रकला, संगीत और वास्तुकला पर एक व्यापक विश्लेषण प्रदान करती है। यह विशेष रूप से सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए उपयोगी है। इस किताब में भारतीय कला और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिसमें नए अध्याय और परिशिष्ट शामिल हैं। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति की गहरी समझ के लिए एक अनूठा स्रोत है।

4. भारतीय संस्कृति और आधुनिक जीवन

भारतीय संस्कृति और आधुनिक जीवन पुस्तक में भारतीय समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि कैसे भारतीय समाज ने आधुनिक तकनीकों के साथ सामंजस्य बिठाया है और प्रौद्योगिकी के प्रभाव को समझाया है। यह पुस्तक कृषि प्रौद्योगिकी, पशुपालन, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बदलावों की चर्चा करती है।

5. भारत: गांधी के बाद

भारत: गांधी के बाद पुस्तक स्वतंत्रता के बाद भारत के विकास और चुनौतियों पर प्रकाश डालती है। इसमें भारतीय गणराज्य की उपलब्धियों, संघर्षों, और कुछ कम-ज्ञात व्यक्तित्वों का उल्लेख किया गया है जिन्होंने भारत की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह पुस्तक भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाओं और व्यक्तित्वों को एक नई रोशनी में प्रस्तुत करती है।

6. भारत का प्राचीन इतिहास

भारत का प्राचीन इतिहास किताब भारत की प्राचीन सभ्यताओं, धर्मों, और सामाजिक संरचनाओं का विस्तृत विवरण प्रदान करती है। इसमें नवपाषाण युग, ताम्रयुग, वैदिक काल, और हड़प्पा सभ्यता की विशेषताओं की चर्चा की गई है। लेखक ने जैन और बौद्ध धर्म के उद्भव, राज्यों के निर्माण, और अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया है।

ये भारतीय इतिहास की 6 बेहतरीन पुस्तकें हैं जिन्हें हर किसी को एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। ये किताबें न केवल ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत करती हैं बल्कि भारतीय इतिहास के विभिन्न पहलुओं को भी समझने में मदद करती हैं।

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