भारत में चाट-पकोड़ी की दुकान पर खड़े होकर हम बड़े ही हक से समोसा मांगते हैं. इतने सालों में समोसा भारत से पूरी तरह से जुड़ गया है. इसे भारत की ही एक डिश माना जाता है और हर कोई इसपर अपना हक दिखाता है. हमने समोसे को कुछ इस तरह से अपनाया कि आज लोग भूल ही गए हैं कि ये समोसा कभी भारत का था ही नहीं!
इतने सालों के दरम्यां समोसा दुनिया का एक बहुत बड़ा चक्कर लगाकर भारत तक आया था. जब ये यहां आया, तो लोगों ने इसे इतना पसंद किया कि आज तक हर कोई इसका दीवाना है. तो चलिए एक बार इतिहास के पन्नों से जानते हैं कि आखिर कैसा था समोसे का लावाजाब सफर..
भारत का नहीं तो फिर कहां से आया समोसा?
समोसा भारत से काफी दूर मध्य पूर्व देशों में जन्मा था. कहते हैं कि 10वीं सदी में जब मध्य पूर्व देश विकसित हो रहे थे, तो उस दौरान समोसे की खोज की गई. अब यह असल में कब बना और किसने इसकी शुरुआत की इसका कोई पक्का प्रमाण मौजूद नहीं है. हालांकि, कहते हैं कि ईरान के पास के किसी इलाके में इसकी खोज की गई थी.
आज तो समोसा एक स्नैक्स के रूप में जाना जाता है मगर कभी ये इससे बहुत बढ़कर था. कहते हैं कि 10वीं सदी में मध्य पूर्व देशों के लोग काफी दूर-दूर तक सफर किया करते थे.
ऐसे में उन्हें अपने साथ खाने की चीजें रखनी होती थी. ऐसे में समोसा उनके लिए काफी काम की चीज हुआ करता था. रात में जब वह आग लगाकर एक जगह पर बैठते थे, तो सोमसे के उस आग के सहारे ही पकाते थे.
माना जाता है कि उस समय के समोसे आज के समोसे से थोड़े अलग होते थे. आज तो समोसे को तेल में तला जाता है मगर तब उस समय उसे आग पर पकाया जाता था. उस समय यात्रियों को इस समोसे ने ही लंबे-लंबे सफर करने में मदद की थी. कई फारसी किताबों में भी इस बात का ज़िक्र किया गया है.
कभी समोसा ‘संबोसग’ नाम से जाना जाता था
उन किताबों के मुताबिक़ उस समय समोसा ‘संबोसग’ नाम से जाना जाता था. हाँ, इसके आकार बिलकुल आज की तरह ही त्रिकोण होता था. इन समोसों को अपने एक छोटे से थैले में लेकर यात्री मध्य पूर्व से भी काफी दूर-दूर तक चले गए थे. जितना ज्यादा वह सफर करते थे उतना ज्यादा ये लोगों के बीच प्रसिद्ध होता जाता था.
बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगा इसे मध्य पूर्व के रेगिस्तान से निकलकर अफ्रीका और एशिया तक पहुँचने में. जो भी इसे खाता वह इसका दीवाना हो जाता था. यही कारण है कि बड़ी तेजी से लोगों ने इसे अपनाना शुरू किया.
वक्त के साथ समोसा आगे बढ़ता ही जा रहा था. मध्य पूर्व के लोग जहां भी जाते वहां लोगों को लज़ीज़ समोसा बनाने का तरीका जरूर बताते. बाकी देशों में इसे पसंद तो किया जा रहा था मगर बड़ी तादात में लोगों को यह पसंद नहीं आया. इसलिए सिर्फ मध्य पूर्व तक ही इसकी प्रसिद्धी रही.
वह 13वीं और 14वीं शताब्दी का समय था और दिल्ली पर मुस्लिम शासक मुहम्मद बिन तुग़लक़ का राज था. कहते हैं कि उन दिनों मुहम्मद बिन तुग़लक़ कई प्रकार के व्यंजन खाया करते थे. उनके लिए ये चीजें बनाने के लिए कई देशों से खानसामे भी आया करते थे. ऐसे ही कुछ खानसामे उस समय दिल्ली सल्तनत में खाना बनाने के लिए आए थे. माना जाता है कि यहीं से समोसे का भारत में आगमन हुआ था.
मुहम्मद बिन तुग़लक़ भी इसका दीवान था
मुहम्मद बिन तुग़लक़ के लिए रोज कई प्रकार के व्यंजन बनते थे. जब मध्य पूर्व के खानसामों को सुलतान के लिए कुछ नया बनाने के लिए कहा गया, तो उन्होंने उनके लिए समोसा बनाया. तुगलक के खाने में उस दिन बहुत सारी चीजें पेश की गई थीं मगर जिस चीज ने उनका दिल सबसे ज्यादा जीता वह था समोसा.
पहले स्वाद में ही उन्हें समोसे से प्यार हो गया. इसके बाद, तो देखते ही देखते समोसा शाही व्यंजनों में गिना जाने लगा. न सिर्फ सुलतान बल्कि उनके मेहमानों को भी खाना के साथ समोसा पेश किया जाने लगा.
जो भी इसे खाता था वह इसके स्वाद को जुबां से दूर नहीं कर पाता था. भारत में आते ही समोसा जैसे यहीं के बने एक व्यंजन की तरह हो गया. हर किसी को ये अपना सा लगाने लगा मगर अभी भी आम लोगों तक इसका स्वाद नहीं पहुंचा था. वक्त के साथ समोसे में काफी बदलाव आया है.
आज तो हम आलू वाले समोसे को जानते हैं मगर एक समय पर समोसे में आलू इस्तेमाल नहीं होता था. माना जाता है कि पहले के समय में इसे मीट, घी और प्याज का इस्तेमाल करके बनाया जाता था. मांस खाने वालों को तो ये बहुत पसंद आता था मगर शाकाहारी लोग इसके कारण समोसे का मजा नहीं ले पाते थे.
शाही लोगों ने लंबे समय तक आनंद उठाया
यही वो समय था जब अमीर खुसरो ने अपने कोरे कागजों पर समोसे के बारे में लिखा ताकि हर कोई इसके बारे में जान पाए. माना जाता है कि अमीर खुसरो ने अपनी लिखी बात में कहा की बड़े लगो ही इसे खाया करते हैं. हालांकि, उनके ये लिखने के कुछ वक्त बाद ही समोसा आम लोगों के बीच भी पसंद किया जाने लगा था.
14वीं शताब्दी में मशहूर यात्री इब्न बतूता भी भारत आए थे. वह मुहम्मद बिन तुग़लक़ से मिले और तुगलक ने उन्हें शाही भोजन के लिए आमंत्रित किया. अपने उस शाही भोजन को ज़िक्र इब्न बतूता ने अपनी किताबों में भी किया. उन्होंने बताया कि शाही भोजन में उन्हें समोसा नाम की भी एक चीज दी गई थी.
यही एक बड़ा कारण बना की सिर्फ शाही लोगों ने ही लंबे समय तक समोसे का आनंद उठाया. हालांकि, और भी लोग इसका स्वाद लेना चाहते थे. इसलिए उन्होंने मीट वाले इस समोसे में थोड़ा बदलाव करने की सोची.
इसी के साथ माना जाता है कि सबसे पहले उत्तर प्रदेश में आलू वाला शाकाहारी समोसा बनाया गया. यहां से समोसे को वो प्रसिद्धी मिली जिससे ये जल्द ही आम लोगों के बीच भी छा गया. देखते ही देखते समोसा एक शाही पकवान से गलियों में बेचे जाने वाला एक नया स्नैक्स बन गया. हर कोई इसे खाने के लिए बेताब रहता था.
एक बार जैसे ही समोसे में आलू मिल गया वह हर किसी के बीच प्रसिद्ध हो गया और मीट वाले समोसे वक्त के साथ ख़त्म होते चले गए. यही कारण है कि आज अधिकाँश आलू वाले समोसे ही दिखाई देते हैं.
देश से लेकर विदेशों तक हिट है समोसा
आज इतने सालों के बाद भी समोसा पहले जैसा प्रसिद्ध स्नैक्स बना हुआ है. आज इसके साथ कई तरह के एक्सपेरिमेंट भी किए जाते हैं. इतना ही नहीं देश भर में समोसे के अलग-अलग प्रकार देखने को मिलते हैं.
जहां हैदराबाद में आज भी मीट वाले समोसे मिलते हैं, वहीं दक्षिण भारत में समोसे में कई प्रकार की सब्जियां डाली जाती हैं. सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी आज समोसा काफी पसंद किया जाता है. इजराइल, पुर्तगाल, ब्राज़ील और अरब में आज भी समोसा कई प्रकार की फिलिंग के साथ पाया जाता है. वहां भी इसे बड़े चाव से खाया जाता है. यह दर्शाता है कि समोसा एक आम स्नैक्स से कहीं बढ़कर है. इसका स्वाद जुबां से हटता ही नहीं है.
समोसे का सफर वाकई में काफी दिलचस्प है. मीलों दूर बना ये स्नैक्स आज भारत के प्रसिद्ध स्नैक्स के रूप में जाना जाता है. ये भी भारत की एक पहचान बन चुका है, जो आने वाले कई और सालों तक बनी रहेगी.